फांसी पर लटकाने के बजाय अन्य तरीकों से मौत की सजा की मांग: केंद्र सरकार जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाने पर विचार कर रही है, सुप्रीम कोर्ट में एजी ने बताया
Shahadat
2 May 2023 12:12 PM IST
सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार ने मंगलवार को सूचित किया कि वह यह निर्धारित करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाने पर विचार कर रही है कि क्या फांसी पर लटकाने से मृत्युदंड का निष्पादन आनुपातिक है और क्या मृत्युदंड को निष्पादित करने के लिए अन्य बेहतर अनुकूल विकल्प हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मौत की सजा के दोषी को फांसी पर लटकाने की वर्तमान प्रथा को खत्म करने की मांग की गई, जिससे "लंबे समय तक दर्द और पीड़ा" होती है और इसे अंतःशिरा घातक इंजेक्शन, शूटिंग, इलेक्ट्रोक्यूशन या गैस चैंबर जिसमें कुछ ही मिनटों में अपराधी की मौत हो सकती है।
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी बनाने पर विचार किया और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि को फांसी से मौत के प्रभाव, दर्द के कारण, ऐसी मौत होने में लगने वाली अवधि और संसाधनों की उपलब्धता के आंकड़ों का पता लगाने के लिए कहा था।
एजी ने पीठ को सूचित किया कि उन्होंने यह तय करने के लिए एक्सपर्ट कमेटी के गठन की सिफारिश की कि क्या मृत्युदंड को निष्पादित करने के लिए बेहतर विकल्प मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि सरकार उक्त एक्सपर्ट कमेटी के लिए सदस्यों पर विचार कर रही है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने एजी की दलील को ध्यान में रखते हुए कहा कि मामले की सुनवाई अब छुट्टियों के बाद जुलाई में होगी।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिका एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा ने दायर की है।
याचिका द्वारा निम्नलिखित प्रार्थनाएं की गईं-
1. सीआरपीसी, 1973 की धारा 354(5) के तहत निहित प्रावधानों को संविधान से परे और विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन में संविधान के अनुच्छेद 21 के भेदभावपूर्ण और उल्लंघनकारी और संविधान पीठ के उल्लंघन में भी घोषित करें। जियान कौर के मामले में फैसला;
2. भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिभाषित मृत्यु की गरिमापूर्ण प्रक्रिया द्वारा मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करें।
याचिका में कहा गया कि जहां फांसी पर लटकाने की पूरी प्रक्रिया में कैदी को मृत घोषित करने में 40 मिनट से अधिक का समय लगता है, वहीं गोली मारने की प्रक्रिया में कुछ मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता। अंतःशिरा घातक इंजेक्शन के मामले में यह 5 मिनट में खत्म हो जाता है।
मल्होत्रा का तर्क है कि सीआरपीसी की धारा 354 (5) के तहत निष्पादन न केवल बर्बर, अमानवीय और क्रूर है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ईसीओएसओसी) द्वारा अपनाए गए प्रस्तावों के खिलाफ भी है। इसने स्पष्ट रूप से संकल्प लिया कि "जहां मृत्युदंड दिया जाता है, उसे न्यूनतम संभव पीड़ा देने के लिए लागू किया जाएगा।"
केस टाइटल : ऋषि मल्होत्रा बनाम भारत संघ डब्लू.पी.(क्रिमिनल) नंबर 145/2017