'बेटियां दायित्व नहीं हैं; आर्टिकल 14 ध्यान से पढ़ें': जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

Avanish Pathak

23 July 2022 10:08 AM GMT

  • जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक वकील ने दलील दी कि महिलाओं के अधिकारों को दोहराते हुए कई कानून और निर्णय पारित किए गए हैं, हालांकि यह कितना अचरज भरा है कि ये सभी 2022 में भी कई लोगों की मानसिकता को बदल नहीं सकते।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की खंडपीठ एक बेटी लतिका* (याचिकाकर्ता संख्या 2) की ओर से दायर अपनी मां के निधन के बाद अपने पिता राव* (प्रतिवादी) से भरण-पोषण की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दरमियान राव के वकील ने कहा, ''लड़की एक दाय‌ित्व है।''

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने वकील की टिप्‍पणी पर पलटवार करते हुए कहा कि एडवोके को संविधान के अनुच्छेद 14 को ठीक से देखना चाहिए।

    उन्होंने कहा, "बेटियां दायित्व नहीं हैं।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "उसे न्यायिक सेवा परीक्षा पर ध्यान लगाने दें, फिर वह पिता पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं रहेगी। उसे न्यायिक परीक्षा कैसे देनी है, इस पर मार्गदर्शन करें।"

    जज ने कहा कि लतिका एक वकील है। लतिका की ओर से पेश एडवोकेट ने बताया कि वह पहले ही परीक्षा दे चुकी है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा, "क्या वह एक जज है?"

    वकील ने स्पष्ट किया, "उसने प्रीलिम्स क्लियर कर लिया है, और परिणाम प्रतीक्षित हैं।"

    "परीक्षा कब है?" उन्होंने पूछा। जवाब में बताया गया कि अक्टूबर में।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने लतिका को सलाह दी, "मैडम, अब खूब पढ़ाई करो। इस आदमी पर निर्भर मत रहो। बेहतर होगा कि आप खूब मेहनत से पढ़ाई करें और अपने लिए अच्छा करें।"

    पिता की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा,

    "आपको ऐसी बेटी पर गर्व होना चाहिए, जो बहुत प्रतिभाशाली है। आप केवल उसकी शिकायत कर रहे हैं कि वह मुझसे बात नहीं कर रही है, यह, वह ....."

    बेंच ने तब पूछा कि क्या दोनों ने एक-दूसरे से बात की है।

    "क्या आप अपने पिता से मुलाकात की? क्या आपने उनसे बात की? नहीं? ठीक है, उन्हें उन दोनों को बात करने दो।" जज ने आग्रह किया।

    यह सुनकर एडवोकेट ने पिता को अपनी बेटी की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। राव के वकील ने अदालत को बताया कि पिछले 33 वर्षों में उन्होंने एक-दूसरे के साथ बातचीत नहीं की है।

    "कोर्ट के आदेश से इतना हो सकता है", जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की।

    पीठ ने मामले की सुनवाई खत्म करने से पहले अनुरोध किया, "दोनों वकील, उन दोनों को कैंटीन में ले जाएं, कृपया हमारे अधिकारियों के रूप में कार्य करें न कि पक्षों के वकीलों के रूप में।"

    5 अक्टूबर 2020 को, सुप्रीम कोर्ट ने राव को लतिका और उसकी मां दोनों को दो सप्ताह के भीतर 2,50,000 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। लेकिन 6 सितंबर, 2021 को उसकी मां की मृत्यु हो गई।

    याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि भरणपोषण के बकाया के लिए किसी राशि का भुगतान नहीं किया गया था, यानी लतिका के लिए 8,000 रुपये प्रति माह और उसकी मां के लिए 400 रुपये का भुगतान नहीं किया गया था।

    राव के वकील ने अदालत को बताया कि उन्होंने भरण-पोषण के बकाया का भुगतान कर दिया है और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के स्टेटमेंट भरोसा किया है।

    इस विसंगति को देखते हुए अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी की ओर से पेश वकील से स्थिति का पता लगाने के बाद एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करने को कहा था।

    कोर्ट ने पिछले आदेश में कहा था, "प्रतिवादी रजिस्ट्रार (न्यायिक) के समक्ष सहायक दस्तावेज और सबूत प्रदान करेगा। इसी तरह, याचिकाकर्ता के वकील को दूसरे याचिकाकर्ता के बैंक स्टेटमेंट पेश करने के लिए स्वतंत्र होगा जो यह प्रमाणित करेगा कि भुगतान प्राप्त हुआ है या नहीं। रजिस्ट्रार (न्यायिक) की रिपोर्ट आठ सप्ताह की अवधि के भीतर तैयार की जाए।",

    *पक्षकारों के नाम बदल दिए गए हैं**

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