CSR Funds Scam मामले में पूर्व हाईकोर्ट जज को राहत, FIR से बाहर करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Shahadat

15 July 2025 5:29 AM

  • CSR Funds Scam मामले में पूर्व हाईकोर्ट जज को राहत, FIR से बाहर करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने CSR Funds Scam मामले में केरल हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस सीएन रामचंद्रन नायर का नाम आरोपियों की सूची से बाहर करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ जॉइंट वॉलंटरी एक्शन फॉर लीगल अल्टरनेटिव्स (JVALA) नामक संगठन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केरल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें संबंधित जांच अधिकारी को जस्टिस नायर का नाम आरोपियों की सूची से बाहर करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया गया था।

    संक्षेप में मामला

    यह मामला नेशनल एनजीओ कॉन्फेडरेशन से संबंधित है, जिसने कथित तौर पर कई व्यक्तियों और 200 से अधिक धर्मार्थ संगठनों/एनजीओ से करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी की। आरोपों के अनुसार, कॉन्फेडरेशन ने लैपटॉप, घरेलू उपकरण आदि जैसे यह दावा करते हुए सामान रियायती दरों पर उपलब्ध कराने की पेशकश की कि ये निजी कंपनियों के सीएसआर फंड से प्राप्त किए गए।

    परिसंघ और उसके पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायत अंगदिप्पुरम किसान सेवा समिति द्वारा दर्ज कराई गई। इसमें आरोप लगाया गया कि आरोपियों ने अप्रैल, 2024 से नवंबर, 2024 के बीच आधी कीमत पर दोपहिया वाहन, लैपटॉप और सिलाई मशीन उपलब्ध कराने का वादा करके 34 लाख रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की।

    जस्टिस नायर को राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन परिसंघ के ट्रस्टी के रूप में आरोपी बनाया गया था।

    इसके बाद हाईकोर्ट के पाँच वकीलों ने जनहित याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि बिना किसी प्रारंभिक जांच के एक तुच्छ शिकायत के आधार पर अपराध दर्ज किया गया। जनहित याचिका में आगे दावा किया गया कि रिटायर जज के खिलाफ अपराध दर्ज करने से लोगों के मन में न्यायपालिका की प्रतिष्ठा धूमिल होगी।

    फरवरी में हाईकोर्ट ने जस्टिस नायर के खिलाफ FIR दर्ज करने पर चिंता व्यक्त की। उसने जांच अधिकारी से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या पूर्व जज को आरोपी बनाने से पहले उचित विवेक का प्रयोग किया गया था।

    अंततः अभियोजन महानिदेशक के लिखित बयान को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने रिटायर जज का नाम सभी FIR से हटाने का आदेश दिया।

    उक्त बयान इस प्रकार था:

    “उन्होंने आगे कहा कि माननीय जस्टिस (रिटायर) सी एन रामचंद्रन नायर की राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन परिसंघ के दैनिक कामकाज या वित्तीय लेन-देन में कोई भूमिका या जानकारी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि माननीय रिटायर (रिटायर) सी एन रामचंद्रन नायर को राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन परिसंघ या इससे जुड़ी किसी अन्य संस्था से कोई भुगतान नहीं मिला। मुख्य अभियुक्त और राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन परिसंघ के बैंक अकाउंट्स के प्रारंभिक सत्यापन पर माननीय जस्टिस (रिटयर) सी एन रामचंद्रन नायर को कोई भुगतान प्राप्त नहीं हुआ। यह प्रस्तुत किया गया कि CSR Funds Scam से जुड़े मामलों की जांच प्रारंभिक चरण में है। वर्तमान में उपरोक्त मामलों में माननीय जस्टिस (रिटायर) सी एन रामचंद्रन नायर को शामिल करने के लिए कोई ठोस सामग्री सामने नहीं आई।”

    निराश होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके वकील ने तर्क दिया कि जस्टिस नायर का नाम केवल अभियोजन महानिदेशक द्वारा दायर लिखित बयान के आधार पर हटा दिया गया, जिसमें कहा गया कि पूर्व जज की भूमिका केवल सलाहकारी थी।

    जवाब में खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से उसके अधिकार क्षेत्र के बारे में पूछा और टिप्पणी की,

    "आपकी प्रार्थना खारिज नहीं की गई।"

    जस्टिस मेहता ने आगे कहा,

    "आपने बदला लेने के लिए ही उस व्यक्ति का नाम लिया।"

    इससे असहमत होते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि वह जस्टिस नायर की भूमिका साबित कर सकते हैं।

    उन्होंने कहा,

    "मैं 161 एनजीओ का शिकार हूं। मैंने इस एनजीओ (राष्ट्रीय एनजीओ परिसंघ) को भी पैसे दिए। वह (जस्टिस नायर) रोज़मर्रा की गतिविधियों में हस्ताक्षर करते रहे हैं। सभी पत्राचार, सभी पत्र..."।

    हालांकि, अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार किया।

    Case Title: JOINT VOLUNTARY ACTION FOR LEGAL ALTERNATIVES (JVALA) AND ORS. Versus STATE OF KERALA AND ORS., Diary No. 27747-2025

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