आपराधिक मुकदमे विवादित बकाये की वसूली के लिए नहीं होते : सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
LiveLaw News Network
21 March 2021 12:25 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि आपराधिक मुकदमे विवादित बकाये की वसूली के लिए नहीं होते हैं।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने कहा कि जमानत / अग्रिम जमानत देने के लिए अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल कर रही आपराधिक अदालत से शिकायतकर्ता के बकाए वसूली के लिए रिकवरी एजेंट के तौर पर कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती और वह भी बगैर किसी ट्रायल के।
इस मामले में, झारखंड हाईकोर्ट ने एक अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया था, लेकिन इसके लिए उसे ट्रायल कोर्ट में 53 लाख 60 हजार रुपए की बैंक गारंटी जमा करानी थी।
इस अपील में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले के तथ्यों का संज्ञान लिया और कहा कि मौजूदा मामला सिविल प्रकृति की है और शिकायतकर्ता ने हिमाचल प्रदेश में स्थित संपत्ति की बिक्री के लिए अभियुक्त द्वारा किए गए कथित समझौते की विशिष्ट अदायगी के लिए दीवानी मुकदमा ही दर्ज किया था, जिसका निर्धारण लंबित है।
कोर्ट ने कहा,
" हमारा मानना है कि हाईकोर्ट ने जमानत के लिए बैंक गारंटी जमा करने की शर्त रखकर त्रुटिपूर्ण निर्णय किया है। बैंक गारंटी नकद जमा कराने के समान है क्योंकि बैंक गारंटी जारी करने के लिए बैंक नकद राशि जमा कराते हैं। "
बेंच ने " श्याम सिंह बनाम सरकार (सीबीआई के जरिये) (2006) 9 एस सी सी 169" मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अदालत जमानत देने या इनकार करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन यह कहना कि जमानत देने के चरण में भी अपराध किया गया है और कोई भी राशि का पुनर्भुगतान करने का निर्देश देना, दोनों ही अनुचित और अवांछित हैं।
53 लाख 60 हजार रुपये की बैंक गारंटी के निर्णय को दरकिनार करते हुए कोर्ट ने कहा,
" इस कोर्ट के विभिन्न फैसलों के जरिये यह स्थापित हो चुका है कि आपराधिक मुकदमे विवादित बकाये की वसूली के लिए नहीं होते हैं। खास मुकदमे के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर कोर्ट जमानत याचिका मंजूर करने या ठुकरा देने के लिए स्वतंत्र है।
जमानत याचिका पर विचार करते वक्त जिन तथ्यों पर विचार किया जाता है उनमें अभियोग की प्रकृति, दोषसिद्धि की स्थिति में सजा की गंभीरता, अभियोजन द्वारा जिन तथ्यों पर भरोसा किया गया उसकी प्रकृति, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने की तार्किक आशंका अथवा शिकायतकर्ता या गवाहों को खतरे की आशंका अथवा ट्रायल के समय अभियुक्त की उपस्थिति की तार्किक संभावना या उसकी फरारी की आशंका; आरोपियों का आचार व्यवहार और समझ; जनता या सरकार के व्यापक हित और इस तरह के अन्य विचार शामिल होते हैं।
जमानत / अग्रिम जमानत देने के लिए अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल कर रही आपराधिक अदालत से शिकायतकर्ता के बकाए वसूली के लिए रिकवरी एजेंट के तौर पर कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, और वह भी बगैर किसी ट्रायल के। "
केस: मनोज कुमार सूद बनाम झारखंड सरकार [ एसएलपी (क्रिमिनल) 1274 / 2021]
कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस कृष्ण मुरारी
वकील : वरिष्ठ वकील राणा मुखर्जी, एडवोकेट विष्णु शर्मा
साइटेशन: एल एल 2021 एस सी 171