केवल गैर-प्रतिनिधित्व या अभियुक्त के वकील की चूक के लिए आपराधिक अपील खारिज नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

LiveLaw News Network

18 Aug 2021 4:52 AM GMT

  • केवल गैर-प्रतिनिधित्व या अभियुक्त के वकील की चूक के लिए आपराधिक अपील खारिज नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई कोर्ट किसी आरोपी द्वारा दायर अपील को केवल इसलिए खारिज नहीं कर सकता कि आरोपी की ओर से प्रतिनिधित्व नहीं किया गया या उसके वकील ने कोई चूक की है।

    न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि यदि आरोपी अपने वकील के माध्यम से पेश नहीं होता है, तो कोर्ट न्याय मित्र नियुक्त करने के बाद ही मामले की सुनवाई के लिए बाध्य है।

    इस मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने गैर-अभियोजन के लिए अभियुक्त की आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता की ओर से या तो व्यक्तिगत रूप से या रिकॉर्ड पर वकील के माध्यम से कोई प्रतिनिधित्व नहीं आया था।

    पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा,

    "8. यह अच्छी तरह से तय है कि यदि अभियुक्त उसके द्वारा नियुक्त वकील के माध्यम से पेश नहीं होता है, तो कोर्ट न्याय मित्र की नियुक्ति के बाद ही मामले की सुनवाई के लिए आगे बढ़ने को बाध्य है, लेकिन केवल गैर प्रतिनिधित्व या अभियुक्त के वकील की चूक के कारण अपील खारिज नहीं कर सकता है।"

    इसने 'कबीरा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार 1981 (सप्लीमेंट) एससीसी 76' और 'मो. सुकुर अली बनाम असम सरकार (2011) 4 एससीसी 729' के मामले में दिये गये फैसले का हवाला दिया।

    अपील स्वीकार करते हुए, पीठ ने हाईकोर्ट को आपराधिक अपील को उसके गुण-दोष और कानून के अनुसार नए सिरे से सुनने का निर्देश दिया।

    पूर्व उद्धरण

    मो. सुकुर अली के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया था कि यदि किसी आपराधिक मामले में अभियुक्त का अधिवक्ता किसी भी कारण से उपस्थित नहीं होता है, तो क्या अभियुक्त के विरुद्ध अधिवक्ता की अनुपस्थिति में मामले का निर्णय किया जाना चाहिए या न्यायालय को आरोपी के बचाव के लिए न्याय मित्र नियुक्त करना चाहिए? न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा की बेंच मिश्रा ने कहा था, "हमारा मानना है कि यह मानकर भी कि आरोपी का वकील लापरवाही या जानबूझ कर पेश नहीं होता है, तब भी अदालत को आरोपी के वकील की अनुपस्थिति में उसके खिलाफ आपराधिक मामले का फैसला नहीं करना चाहिए, क्योंकि एक आरोपी को उसके वकील की गलती के लिए नुकसान नहीं उठाने देना चाहिए और ऐसी स्थिति में अदालत को आरोपी के बचाव के लिए एक अन्य वकील को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) के रूप में नियुक्त करना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। अनुच्छेद 21 जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की गारंटी देता है, संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद 21 को मौलिक अधिकारों का 'दिल और आत्मा' कहा जा सकता है।" अदालत ने आगे कहा था: किसी भी कारण से एक वकील की अनुपस्थिति में, आरोपी के खिलाफ मामले का फैसला तुरंत नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसी स्थिति में कोर्ट को आपराधिक मामलों के वकील को न्याय मित्र नियुक्त करना चाहिए और एक और तारीख तय करने और उसे सुनने के बाद मामले का निर्धारण करना चाहिए। अगर सुनवाई की अगली तारीख को वह वकील पेश होता है, जिसे पिछली तारीख को पेश होना चाहिए था, लेकिन पेश नहीं हुआ था, लेकिन पहले की तारीख में अपनी गैर-उपस्थिति के लिए पर्याप्त कारण नहीं दे पाता है, तो उसे पेश होने और आरोपित की ओर से मामले की पैरवी करने से रोक दिया जाएगा। लेकिन, ऐसी स्थिति में, अभियुक्त इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह या तो किसी अन्य वकील को नियुक्त करे या न्यायालय न्याय मित्र के रूप में नियुक्त वकील द्वारा मामले की सुनवाई के लिए आगे बढ़ सकता है।

    पिछले साल भी, कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें चूक के लिए दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ एक आपराधिक अपील खारिज कर दी गई थी। उसमें यह कहा गया था कि दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ अपील को चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसकी सुनवाई की जानी चाहिए और योग्यता के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए, भले ही अपीलकर्ता व्यक्तिगत रूप से या उसका प्रतिनिधित्व करने वाला वकील मौजूद न हो। वर्ष 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने, 'शंकर बनाम महाराष्ट्र सरकार' के मामले में कहा था कि दोषसिद्धि के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर अपील को अपीलकर्ता या उसके वकील को सुनने के बाद ही योग्यता के आधार पर निपटाया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा था,

    "जहां अपीलकर्ता के लिए वकील सुनवाई की तारीख में अनुपस्थित है, न्यायालय या तो एक न्याय मित्र नियुक्त करेगा और फिर अपील पर फैसला करेगा। एक बार दोषसिद्धि के खिलाफ अपील सुनवाई के लिए स्वीकार किए जाने के बाद, यह अपीलीय न्यायालय का कर्तव्य है कि वह या तो एक अधिवक्ता को न्याय मित्र के रूप में या कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से एक वकील को नामित करे और मामले को गुणदोष के आधार पर सुने, उसके बाद ही अपील का निपटारा करे। जब अधिवक्ता द्वारा अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व नहीं किया गया था, तो हमारे विचार में, हाईकोर्ट को गुणदोष के आधार पर मामले का फैसला नहीं करना चाहिए था और आक्षेपित आदेश रद्द किये जाने लायक है और मामला उच्च न्यायालय को वापस भेजा जाता है।"

    'क्रिस्टोफर राज बनाम के. विजयकुमार' मामले में, उसी पीठ ने माना था कि हाईकोर्ट एक आपराधिक अपील में, अभियुक्त को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना या उसकी ओर से मामले पर बहस करने के लिए एक न्याय मित्र की नियुक्ति के बिना बरी आदेश को पलट नहीं सकता है, यदि वह उपस्थित नहीं होता है।

    केस: के. मुरुगनंदम बनाम सरकार [एसएलपी (क्रिमिनल) डायरी 8150/2021]

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 384

    कोरम: न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना

    वकील: अपीलकर्ता के लिए एओआर टी. अर्चना, प्रतिवादियों के लिए एओआर डॉ. जोसेफ अरस्तू एस., एओआर राहुल श्याम भंडारी

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