'जानवरों के अधिकारों की रक्षा करना कोर्ट का कर्तव्य': दिल्‍ली हाईकोर्ट ने हाथी को पेश करने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

22 Jan 2020 9:45 AM GMT

  • जानवरों के अधिकारों की रक्षा करना कोर्ट का कर्तव्य: दिल्‍ली हाईकोर्ट ने हाथी को पेश करने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महावत (हाथी मालिक) को अपने हाथी से मिलने की इजाजत नहीं दी है। महावत ने बंदी प्रत्‍यक्षीकरण याचिका दायार कर कोर्ट से हाथी को पेश करने की अपील की थी। कोर्ट ने याचिका खार‌िज कर दी है।

    जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संगीता धींगरा सहगल की खंडपीठ ने माना है कि जंगल हाथी का प्राकृतिक निवास है। उसे पर्याप्त पानी, आवास के के साथ चलने-फिरने और चरने के लिए बड़े इलाके की आवश्यकता होती है। इसलिए, जानवरों के अधिकारों का ध्यान रखने के लिए अदालत का कर्तव्य है कि वह पैरेन्स पैट्रिए के सिद्धांत के तहत काम करे।

    महावत ने कोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याच‌िका में मांग की थी कि उसके हाथी लक्ष्मी को हाथी पुनर्वास केंद्र की कथित अवैध हिरासत से र‌िहा किया जाए।

    महावत ने यह भी मांग की थी कि हाथी-लक्ष्मी को वापस दिल्‍ली लाया जाए और उसे हाथी से मिलने की इजाजत दी जाए और उक्त प्र‌‌क्रिया का खर्च प्रतिवादी वहन करे।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विल्स मैथ्यूज ने तथ्यों के आधार पर तर्क दिया कि हाथी-लक्ष्मी दिल्ली का निवासी था और 1995 से 2007 तक नियमित रूप से गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा ले चुका है। साथ ही विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी कार्यक्रमों, मंदिरों, विवाहों, खेलों, और उद्घाटन समारोहों में भी शामिल हो चुका है।

    उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना "हम" से शुरू होती है और इसमें कहीं यह निहित नहीं है कि इसमें केवल "लोग" शामिल हैं।

    यह भी कहा गया था कि बयान "यातना के अधीन नहीं होगा" का दायर इस तथ्य तक फैला है कि किसी को किसी ऐसे व्यक्ति से अलग नहीं किया जा सकता है, जिसके साथ वह बहुत करीब से जुड़ा हुआ है। इसलिए, वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता से हाथी-लक्ष्मी को अलग करना, यह देखते हुए कि वह अपने मालिक से किस हद तक जुड़ा है, उसके लिए मानसिक पीड़ा के बराबर होगा।

    सभी दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने कहा कि हाथी-लक्ष्मी को चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन, दिल्ली के आदेश के बाद हाथी पुनर्वास केंद्र ले जाया गया था, जब यह पाया गया कि वह हाथी, अन्य पालतू हाथियों के साथ, अपर्याप्त संसाधनों के साथ जीर्ण स्थिति में रह रहा था। 5 सितंबर, 2018 को दिल्‍ली हाईकोर्ट के एकल जज द्वारा उस आदेश को बरकरार रखा गया था।

    कोर्ट ने यह मानने के लिए कि चूंकि जानवर खुद को व्यक्त करने में असमर्थ है, इसलिए मौजूदा मामले में पैरेन्स पैट्र‌िए का सिद्धांत लागू होगा, एनिमल वेलफेयर बोर्ड बनाम ए नागराजा व अन्य (2014)7 एससीसी 547 के मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया।

    कोर्ट ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि यह स्थापित करने के लिए कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है कि महावत हाथी का मालिक है और / या हाथी- लक्ष्मी महावत के बिना नहीं रह सकता।

    इसके अलावा, भले ही महावत हाथी पर अपना स्वामित्व स्थापित करने में सक्षम हो, यह आधार नहीं हो सकता कि वह हाथी को अपने 'दास' के रूप में व्यवहार करे, उसके अधिकारों और हितों के खिलाफ उसे असहज वातावरण में स्थानांतरित किया जाए।

    कोर्ट ने कहा कि हाथी और महावत के कथित अधिकारों के बीच संघर्ष की स्थिति में, हाथी के अधिकारों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसलिए, अदालत की राय के अनुसार, हाथी पुनर्वास केंद्र एक महावत की तुलना में हाथी-लक्ष्मी की जरूरतों का ख्याल रखने के लिए बेहतर है।

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि हाथी-लक्ष्मी को स्थानांतरित करने दरमियान हुई क्रूरता के आरोपों को हेबियस कॉर्पस की रिट में तय नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अधिकार दिया कि वह हाथी से मिलने के लिए हाथी पुनर्वास केंद्र के समक्ष अपील करे।

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