भ्रष्टाचार के मामलों में लोक सेवकों को केवल साधारण कारावास क्यों,जब पीसी एक्ट में इसका विशेष उल्लेख नहींः सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
9 April 2021 7:00 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राय व्यक्त की है कि भ्रष्टाचार के मामलों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए और दोषी पाए गए लोकसेवकों के लिए यह जरूरी नहीं है कि उन्हें साधारण कारावास ही दिया जाए, खासतौर पर जब भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 इस संबंध में कोई विशेष उल्लेख नहीं करता है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के सितंबर, 2020 के फैसले के खिलाफ दायर एक एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने विशेष कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया था,जिसके तहत याचिकाकर्ता को पीसी एक्ट की धारा 7(असंशोधित खंड 7 ,जो कि प्रासंगिक समय पर लागू था,एक सरकारी कार्य के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा परितोषण लेने वाले लोक सेवक के अपराध के लिए दंड),धारा 13(1)(डी) और 13(2) (असंशोधित खंड 13 ,जो कि प्रासंगिक समय पर लागू था,एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार करना) के तहत दोषी ठहराया गया था। इसी के साथ धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध के लिए छह महीने की अवधि के साधारण कारावास व जुर्माने की सजा के आदेश की भी पुष्टि की थी, लेकिन उसकी वृद्धावस्था को देखते हुए, धारा 13 (1) (डी) रिड विद धारा 13 (2) के तहत दी गई दो साल के साधारण कारावास की सजा को कम करके डेढ़ साल कर दिया था।
एसएलपी को खारिज करने के बाद जस्टिस शाह ने कहा कि, ''बस एक विचार है- मैंने सभी हाईकोर्ट व सभी अदालतों को देखा है, वो उन मामलों में केवल साधारण कारावास की सजा देती करती हैं, जिसमें सार्वजनिक अधिकारी आरोपी होते हैं ... धारा 7 में केवल सजा की बात की गई है, इसमें 'साधारण कारावास' के बारे में कुछ नहीं कहा गया है... ये भ्रष्टाचार के मामले हैं, इनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए!''
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इससे सहमति जताते हुए कहा कि,''हम इसे विचार के लिए ध्यान में रख सकते हैं।''
पीसी एक्ट की धारा 7, जो ''लोक सेवक को रिश्वत दिए जाने से संबंधित अपराध'' से संबंधित है, इस बारे में उल्लेख करती है कि दोषी पाए गए किसी भी लोक सेवक को एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी जो तीन साल से कम नहीं होगी परंतु ऐसी सजा सात साल तक की हो सकती है और आरोपी जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
धारा 13, यह निर्धारित करती है कि कोई भी लोक सेवक जो आपराधिक कदाचार करता है, उसे ऐसे कारावास की सजा दी जाएगी जो चार साल से कम नहीं होगी, लेकिन जो दस साल तक बढ़ सकती है और आरोपी जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता/आरोपी कवलगा गांव के ग्राम पंचायत सचिव के रूप में काम कर रहा था। यह कहा गया था कि शिकायतकर्ता की पत्नी को घर के निर्माण की मंजूरी के लिए वर्ष 2006-07 के दौरान आश्रय योजना के तहत चुना गया था, और इस तरह सरकार ने उसकी पत्नी को देने के लिए 3,5,000 रुपये की राशि मंजूर की थी और उक्त राशि चार किस्तों में वितरित करने का आदेश दिया गया था और तदनुसार, उसे दो किस्त की राशि दी गई थी।
तीसरी किस्त की राशि के वितरण करने के समय, याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता की पत्नी के पक्ष में चेक देने के लिए 500 रुपये की मांग की। रिश्वत राशि देने से अनिच्छुक होने के कारण, शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त पुलिस से संपर्क किया और शिकायत दर्ज की और इस प्रकार पीसी एक्ट की धारा 7, 13 (1) (डी) रिड विद धारा 13 (2) के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता/अभियुक्त के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया।
इसके अलावा यह कहा गया कि शिकायत मिलने पर प्रतिवादी/पुलिस ने एक जाल बिछाया और इस प्रकार एक पंचनामा तैयार किया। याचिकाकर्ता/अभियुक्त को सफलतापूर्वक फँसाया गया, उसे रंगे हाथ पकड़ा गया और फिर ट्रैप पंचनामा दर्ज किया गया और फिर सक्षम अधिकारी से अभियोजन की मंजूरी प्राप्त करने के बाद, याचिकाकर्ता/ अभियुक्त के खिलाफ पीसी एक्ट की धारा 7, 13(1) (डी) रिड विद 13 (2) के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।
मुकदमा पूरा होने के बाद, विशेष कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त पीसी एक्ट की धारा 7, 13(1) (डी) रिड विद 13 (2) के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है और उसी अनुसार उसे सजा सुनाई गई। याचिकाकर्ता/अभियुक्त को धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध के लिए छह माह के साधारण कारावास और 1,000 रुपये के जुर्माने की सजा दी गई। इसके अलावा धारा 13(1) (डी) रिड विद 13 (2) के तहत दो साल की अवधि के लिए साधारण कारावास व दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। यह आदेश दिया गया था कि सभी सजा एकसाथ चलेंगी।
डायरी नंबर- 5215 - 2021
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