विलंबित दावों के माध्यम से दुरुपयोग को रोकने के लिए पूर्व सैन्यकर्मियों के लिए दिव्यांगता पेंशन नीति में संशोधन पर विचार करें: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा
Shahadat
15 July 2025 12:46 PM

पूर्व सैन्यकर्मियों द्वारा दिव्यांगता पेंशन के लिए विलंबित दावों पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह अपनी नीति में संशोधन पर विचार करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कानून का दुरुपयोग न हो।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की खंडपीठ केंद्र सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में हाईकोर्ट ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के आदेशों को बरकरार रखा गया था, जिसने दो पूर्व सैन्यकर्मियों को विकलांगता पेंशन प्रदान की थी।
जस्टिस नरसिम्हा ने केंद्र सरकार की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सूचित किया कि अटॉर्नी जनरल को पहले ही वर्तमान दिव्यांगता पेंशन नीति पर विचार करने के लिए कहा जा चुका है, क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे मामले विलंबित चरण में दिव्यांगता पेंशन प्राप्त करने के लिए दायर किए जा रहे हैं।
उन्होंने मौखिक रूप से कहा:
"हमने अटॉर्नी जनरल से इस मामले पर गौर करने और इस नीति की जांच करने का अनुरोध किया। इतने सारे लोग क्यों आ रहे हैं और ये सब हो रहा है? 15-20 साल बाद, वे आ रहे हैं, यह (नीति का) दुरुपयोग है।"
हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि नए मामलों में भी सरकार AFT के फैसलों को चुनौती देती है, इसलिए नीति की समीक्षा ज़रूरी हो जाती है।
कहा गया,
"यहां तक कि किसी सामान्य मामले में भी, जहां कोई सियाचिन या किसी अन्य दुर्गम क्षेत्र में काम करता है...तब भी सरकार आ रही है। इसलिए हमने सोचा कि इस नीति में बदलाव की ज़रूरत है।"
एसजी ने जवाब दिया कि उनकी रक्षा सचिव के साथ एक बैठक हुई है और कहा,
"हम आपसे मानदंड निर्धारित करने का अनुरोध करेंगे।"
जस्टिस नरसिम्हा ने बीच में ही कहा,
"यह आपकी नीति है! हम मानदंड क्यों निर्धारित करें? हम इसे छू भी नहीं सकते।"
एसजी ने स्पष्ट किया कि विलंबित सेना पेंशन दावों के लिए न्यायालय का मार्गदर्शन अनिवार्य होगा।
जस्टिस नरसिम्हा ने सुझाव दिया कि केंद्र ऐसी नई नीति की संभावना तलाशे, जो पूर्व सैनिकों और संघ दोनों के हितों में संतुलन बनाए रखे।
उन्होंने कहा,
"एक बैठक करें और तय करें कि क्या आप नई नीति बना सकते हैं, जिससे दोनों के हितों का ध्यान रखा जा सके।"
इससे सहमति जताते हुए सॉलिसिटर जनरल ने आगे ज़ोर देकर कहा कि कुछ मामलों में पेंशन नीति का दुरुपयोग उन लोगों द्वारा किया जा रहा है, जिनके पास दिव्यांगता के लिए कोई वास्तविक दावा नहीं है।
उन्होंने कहा:
"हम यह भी दिखाएंगे कि कैसे इस अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग उन लोगों द्वारा किया जा रहा है, जो (दिव्यांगता पेंशन) के हकदार नहीं हैं। जो लोग इसके हकदार हैं, हमें (संघ को) उनके दावों को चुनौती देने के लिए आगे नहीं आना चाहिए... रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा इसमें चला जाता है। और ये सभी मुकदमेबाज़ी से पैदा हुए हैं।"
हालांकि, जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि दावेदारों ने भी देश की सेवा की।
उन्होंने कहा:
"ऐसा नहीं है, उन्होंने देश की सेवा की है... नीति पर पुनर्विचार करें और सुनिश्चित करें कि इसका दुरुपयोग न हो और साथ ही-"
सॉलिसिटर जनरल ने पूरा किया,
"उन्हें अनावश्यक रूप से अदालत में नहीं लाया गया, मैं नतमस्तक हूं।"
खंडपीठ ने केंद्र की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया और इसे अन्य समान मामलों के साथ 4 सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
Case Details : UNION OF INDIA vs. GAWAS ANIL MADSO| Diary No. - 28845/2025