'20 साल बाद बलात्कार में मामले में बरी हुए अभियुक्त को मुआवजा दिया जाए': भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने झूठे आपराधिक मामलों से निपटने के लिए सिस्टम बनाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
LiveLaw News Network
14 March 2021 11:30 AM

भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करते हुए मांग की है कि बीस साल जेल में बिताने के बाद बलात्कार के मामले में बरी हुए विष्णु तिवारी को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तिवारी को बलात्कार के मामले में बरी किया था।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर की गई मिश्रा की याचिका में यह भी मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह इस संबंध में गाइडलाइन बनाए और झूठी शिकायत दायर करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और मुकदमा चलाने के लिए एक सिस्टम स्थापित करें। वहीं झूठे मुकदमों के पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा देने की व्यवस्था की जाए।
महत्वपूर्ण रूप से, याचिका में कहा गया है,
''झूठी और दुर्भावनापूर्ण शिकायतें दर्ज करके कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है और अनिवार्य प्रतिपूरक राहत प्रदान करने के लिए प्रभावी वैधानिक/ कानूनी योजना के अभाव में अपराधी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, वही विशेष अधिनियमों के तहत झूठी शिकायत दायर करने यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 व यौन उत्पीड़न के मामलों में झूठी शिकायत करने वालों के खिलाफ भी कोई मुकदमा नहीं चल पाता है और झूठे मुकदमों के शिकार पीड़ितों को मौद्रिक लाभ भी नहीं दिया जाता है। इन सबके कारण संविधान के आर्टिकल 14 व 21 के तहत गांरटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।''
याचिका में विष्णु तिवारी के मामले का भी उल्लेख किया गया है, जिसे बलात्कार और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों के तहत लगाए गए आरोपों के लिए गलत तरीके से बीस साल जेल में रहना पड़ा और अपने जीवन के इतने वर्ष जेल में बिता दिए।
विष्णु तिवारी केस
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया था। इस आरोपी के खिलाफ एक महिला ने कथित भूमि विवाद के चलते झूठा बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया था,जिस कारण उसे बीस साल जेल में बिताने पड़े।
न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक विष्णु की रिहाई का आदेश पारित करते हुए,वर्ष 2003 में एक ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 और 506 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (2) (वी) रिड विद 3 (1) (xii) के तहत विष्णु को दोषी करार दिया था।
कोर्ट ने माना था कि,
''हम राज्य की तरफ से पेश एजीए द्वारा प्रस्तुत दलीलों के साथ खुद को सहमत करने में असमर्थ हैं कि वह अत्याचार के साथ-साथ बलात्कार का शिकार हुई है और इसलिए, आरोपी के साथ नरमी से नहीं पेश आना चाहिए।''
न्यायालय ने आगे कहा था कि पीड़िता की एकमात्र गवाही, यदि विश्वसनीय हो तो अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है। हालाँकि,वर्तमान मामले में यह देखा गया है कि पीड़िता को स्टर्लिंग गवाह नहीं कहा जा सकता है और वह अदालत के विश्वास को प्रेरित नहीं कर पाई है।
मिश्रा की दलील
याचिका में यह भी मांग की गई है कि उन अंडर-ट्रायल कैदियों से संबंधित मामलों के त्वरित निपटान के लिए एक सिस्टम बनाया जाना चाहिए, जिन पर विशेष अधिनियमों के मुकदमा चलाया जाता है और अंडर-ट्रायल कैदियों के मामलों को समयबद्ध तरीके से निपटाने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं।
वहीं दुर्भावनापूर्ण और अस्पष्ट अभियोजन के शिकार उन गरीब व्यक्तियों को रिहा करने के लिए नियम बनाए जाएं,जिनको पर्याप्त मुचलका/बांड प्रस्तुत न करने के अभाव में जेल में रहना पड़ता है।
इसके अलावा, यह कहते हुए कि झूठे मामलों में तेजी आई है, याचिका में कहा गया है कि,
''निर्दोष व्यक्तियों पर गलत तरीके से मुकदमा चलाने और निर्दोष को जेल में ड़ालने के साथ ही इन सबसे निपटने के लिए निर्दोष लोगों के पास कोई प्रभावी वैधानिक और कानूनी सिस्टम का उपलब्ध न होना मिसकैरेज ऑफ जस्टिस का कारण बन रहा है और इसने हमारे देश के आपराधिक न्याय में एक ब्लैक-होल बना दिया है।''
यह भी इंगित किया गया है कि झूठों मामलों के चलते पुलिस और अभियोजन पक्ष के कदाचार का शिकार हुए निर्दोष लोग कई बार आत्महत्या भी कर लेते हैं क्योंकि वह उम्मीद छोड़ देते हैं और गैर-प्रभावी मशीनरी की वजह से मामलों की सुनवाई में होने वाली बरसों की देरी उनके परिजनों के जीवन को भी नष्ट कर देती है।
याचिका में कहा गया है कि,''राज्य अपने कर्मचारियों के अत्याचारपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार है और उसे अपने अधिकारियों द्वारा नागरिकों को पहुचांए नुकसान की भरपाई पर्याप्त मौद्रिक और गैर मौद्रिक क्षतिपूर्ति द्वारा करनी चाहिए।''