कॉलेजियम सिस्टम जजों को अत्यधिक व्यस्त रखता है, उनके कर्तव्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू

Shahadat

14 Jan 2023 9:08 AM GMT

  • कॉलेजियम सिस्टम जजों को अत्यधिक व्यस्त रखता है, उनके कर्तव्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू

    पब्लिक प्लेटफॉर्म पर कॉलेजियम सिस्टम के बारे में अपनी राय देना जारी रखते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को कहा कि कॉलेजियम सिस्टम जजों को 'बेहद व्यस्त' कर रहा है, जिससे उनका कीमती समय बर्बाद हो रहा है, जिससे न्यायाधीशों के रूप में उनके कर्तव्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

    केंद्रीय कानून मंत्री ने यह भी कहा कि साल 1993 में सेकेंड जजेस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम बनाकर संवैधानिक प्रावधानों को खत्म कर दिया।

    उन्होंने यह भी कहा कि भारत का संविधान बहुत स्पष्ट है कि जजों को नियुक्ति प्रक्रिया (न्यायाधीशों की) में शामिल नहीं होना चाहिए, सिवाय परामर्श के। हालांकि, अब न्यायपालिका जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में पूरी तरह से शामिल है।

    संदर्भ के लिए वह सेकेंड जजेस केस (1993) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसने कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत की और यह फैसला सुनाया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 में "परामर्श" शब्द का अर्थ "सहमति" है। इसलिए भारत के राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के परामर्श के आधार पर (न्यायाधीशों की नियुक्ति पर) निर्णय लेने के लिए बाध्य हैं।

    केंद्रीय कानून मंत्री 'न्यूज़ ऑन एआईआर' (ऑल इंडिया रेडियो) को इंटरव्यू दे रहे थे, जिसमें उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम की समस्याओं के बारे में अपनी राय देने के लिए कहा गया था।

    केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने कहा,

    "जजों की नियुक्ति के संबंध में मुख्य समस्या न्यायपालिका और अन्य हितधारकों के बीच संविधान की भावना के बारे में समझ की कमी है ... संविधान बहुत स्पष्ट है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे। चीफ जस्टिस...अन्य हितधारकों के साथ कुछ विचार-विमर्श हो सकता है...1993 में सेकेंड जजेस केस में सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों को रद्द कर दिया और कॉलेजियम सिस्टम बनाई।"

    गौरतलब है कि उन्होंने यह भी कहा कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम प्रचलित है, सरकार इसका पालन करेगी। हालांकि, उन्होंने कहा कि कभी-कभी मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के संबंध में सवाल उठते हैं, जो न्यायपालिका और सरकार के बीच समझौता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में नियुक्तियां करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

    उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट फैसले के जरिए एमओपी को बदलने या कमजोर करने की कोशिश करता है तो यह सरकार के लिए समस्या होगी और सरकार सुप्रीम कोर्ट से ऐसा नहीं करने का अनुरोध कर रही है।

    हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे मतभेदों के बीच केंद्रीय कानून मंत्री का ये बयान आया। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की।

    न्यायिक नियुक्तियों के लिए समय-सीमा का उल्लंघन करने के लिए केंद्र के खिलाफ बैंगलोर एडवोकेट्स एसोसिएशन द्वारा दायर अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों को अस्वीकार कर दिया।

    सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि कॉलेजियम सिस्टम "लॉ ऑफ लैंड" है, जिसका "सख्ती से पालन" किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "सिर्फ इसलिए कि समाज के कुछ वर्ग हैं, जो कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ विचार व्यक्त करते हैं, यह देश का कानून नहीं रहेगा।"

    उल्लेखनीय है कि हाल ही में कम से कम 3 मौकों पर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम को अपारदर्शी और गैर-जवाबदेह, भारत के संविधान से अलग और नागरिकों द्वारा समर्थित नहीं कहकर इसके खिलाफ हमले शुरू किए हैं।

    यह भी उल्लेखनीय है कि राज्यसभा के सभापति और भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणी की, जिसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) लाने के लिए पारित संवैधानिक संशोधन को पलट दिया।

    हाईकोर्ट के जजों के ट्रांसफर के संबंध में कॉलेजियम द्वारा की गई दस सिफारिशों के मुद्दे को केंद्र सरकार के पास लंबित होने पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा था कि सरकार द्वारा इस तरह की देरी से यह धारणा बनती है कि सरकार के साथ इन जजों की ओर से मामले में 'तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप' है।

    सुप्रीम कोर्ट ने एमओपी के संबंध में हाल ही में स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूदा मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) से संबंधित मुद्दे का समाधान हो गया और इसका अनुपालन किया जाना चाहिए।

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