चीफ जस्टिस बीआर गवई ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों की सराहना की

Shahadat

6 Sept 2025 5:23 PM IST

  • चीफ जस्टिस बीआर गवई ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों की सराहना की

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई ने हाल ही में इस बात पर प्रकाश डाला कि न्यायशास्त्र सीमाओं से परे कैसे कार्य करता है। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के उन ऐतिहासिक निर्णयों की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने कानून की विभिन्न शाखाओं में न्याय को आगे बढ़ाया है।

    नेपाल-भारत न्यायिक संवाद 2025 में बोलते हुए चीफ जस्टिस ने बताया कि नेपाल की न्यायपालिका ने समाज के विभिन्न वर्गों के अधिकारों की रक्षा में परिवर्तनकारी भूमिका निभाई है।

    उन्होंने कहा:

    “इसलिए मैं लैंगिक न्याय, निजता, पर्यावरण और स्वदेशी लोगों के अधिकारों से संबंधित मामलों में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रयासों की हार्दिक सराहना करता हूं।”


    सीमा पार न्यायिक संवाद को अपनाने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए चीफ जस्टिस ने आगे कहा:

    “मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूंगा कि आज की वैश्वीकृत दुनिया में न्यायपालिकाएं तेज़ी से आपस में जुड़ रही हैं, जिससे उनके लिए एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना ज़रूरी हो गया। इसी संदर्भ में आज की चर्चा विशेष महत्व रखती है। ज्ञान और अनुभवों का ऐसा आदान-प्रदान आधुनिक न्यायपालिकाओं के विकास और प्रभावशीलता के लिए एक आवश्यक तत्व बन गया।”

    नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों पर

    पुण्यबती पाठक बनाम विदेश मंत्रालय मामले में 2005 के फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने याद दिलाया कि कैसे नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को अभिभावक की सहमति के बिना पासपोर्ट प्राप्त करने से रोकने वाले प्रावधान को असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया।

    सपना प्रधान मल्ला बनाम प्रधानमंत्री कार्यालय (2007) मामले में नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कमज़ोर समूहों के लिए निजता जीवन और सम्मान के अधिकार से अविभाज्य है और कानून बनने तक दिशानिर्देश जारी किए।

    चीफ जस्टिस ने श्रेष्ठ बनाम प्रधानमंत्री कार्यालय (2018) मामले में पर्यावरणीय न्यायशास्त्र पर भी प्रकाश डाला, जहां जलवायु परिवर्तन को सम्मानजनक जीवन के संवैधानिक अधिकार पर प्रभाव डालने वाला माना गया, जिससे नेपाल की संसद को जलवायु कानून बनाने के लिए प्रेरित किया गया।


    उन्होंने बताया कि हाल ही में 2024 में नेपाली मूलनिवासियों के मानवाधिकार वकीलों के संघ बनाम प्रधानमंत्री कार्यालय मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्तरों पर सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कन्वेंशन 169 और UNDRIP के अनुरूप कानून और नीतियों को लागू करने का निर्देश दिया था।

    भारत की ओर इशारा करते हुए चीफ जस्टिस ने रेखांकित किया कि न्यायिक नवाचार प्रशासनिक मोर्चों पर विशेष रूप से ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना के माध्यम से समान रूप से दिखाई दे रहे हैं। चरण I (2007-15) जिसने जिला और तालुका न्यायालयों को कम्प्यूटरीकृत किया, उनसे लेकर चरण II (2015-23) जिसने ई-फाइलिंग, डिजिटल लाइब्रेरी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की शुरुआत की। चल रहे चरण III (2023-27) जिसका उद्देश्य पूर्ण डिजिटलीकरण है, तक उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रौद्योगिकी न्याय तक पहुंच को नया रूप दे रही है। महामारी ने इस बदलाव को और तेज़ कर दिया, लॉकडाउन के 48 घंटों के भीतर वर्चुअल सुनवाई शुरू हो गई, हाइब्रिड अदालतों को संस्थागत रूप दिया गया और देश भर के वकीलों को दूरस्थ रूप से सुनवाई में भाग लेने की अनुमति मिली।

    चीफ जस्टिस ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG), जो अब 23 करोड़ से ज़्यादा मामलों का डेटा रखता है। वर्चुअल जस्टिस क्लॉक जैसी पहलों के ज़रिए पारदर्शिता और जवाबदेही मज़बूत हुई है, जो अदालतों में लंबित मामलों पर नज़र रखती है। ई-सेवा केंद्र, SMS/Email केस अपडेट, SUVAS अनुवाद सॉफ़्टवेयर और 37,000 फ़ैसलों तक मुफ़्त पहुंच प्रदान करने वाले E-SCR पोर्टल जैसे प्रयासों ने क़ानूनी ज्ञान का लोकतंत्रीकरण किया। पहुंच में आने वाली कमियों को पाटा है। डिजिटल डिवाइड से उत्पन्न चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्यायपालिका का दृष्टिकोण समावेशिता का है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सुधार सबसे हाशिए पर रहने वाले लोगों तक भी पहुंचें।

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