बाल संरक्षण गृहों में रहने वाले बच्चों को किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही उनके परिवारों को वापस सौंपा जाए : सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए

LiveLaw News Network

1 Dec 2020 10:04 AM GMT

  • बाल संरक्षण गृहों में रहने वाले बच्चों को किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही उनके परिवारों को वापस सौंपा जाए : सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आठ राज्यों में बाल संरक्षण गृहों में रहने वाले बच्चों को किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही उनके परिवारों को वापस सौंपने का निर्देश दिया।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी किए गए निर्देशों को भारत सरकार के संयुक्त सचिव के आदेश द्वारा रद्द किया गया था।

    आज की सुनवाई में, एसजी ने अदालत को सूचित किया कि शपथ पत्र जिसमें यह कहा गया था कि एनसीपीसीआर की सिफारिशों का उद्देश्य व्यक्तिगत बच्चों की स्थितियों की जांच करना था और यह अनिवार्य नहीं था।

    एसजी ने कहा,

    "बच्चों को कल्याणकारी जरूरतों का पता लगाने के लिए बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। उन्हें बिना आकलन के नहीं भेजा जाएगा। यह कोई सामूहिक वापसी नहीं है। पहले का रुख यह था कि बच्चों को स्थायी रूप से संरक्षण गृहों में नहीं रखा जा सकता है।"

    न्यायमूर्ति राव ने इसके बाद नोट किया कि कोर्ट की एकमात्र आशंका यह थी कि सभी बच्चों को घर भेजने से संबंधित एक सामान्य दिशानिर्देश जारी किए गए थे।

    न्यायमूर्ति राव ने कहा,

    "अब जब आपने इस मुद्दे को स्पष्ट शब्दों में साफ कर दिया है कि आयोग धारा 40 (3) का पालन करेगा, तो हम इस मुद्दे को बंद कर सकते हैं।"

    तदनुसार, बेंच ने एक आदेश पारित किया कि सॉलिसिटर-जनरल द्वारा किए गए प्रस्तुतिकरण के मद्देनज़र, जेजे एक्ट के प्रावधानों का पालन करने के बाद बच्चों को वापस सौंपा जाएगा।

    पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति राव ने कहा था कि इस मामले में एक सामान्य दिशानिर्देश नहीं दिया जा सकता है क्योंकि कई पहलू हैं जिन्हें संबोधित किया जाना चाहिए, उदाहरण के लिए, माता-पिता की अनुमति लेना, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की जांच करना।

    गौरतलब है कि एनसीपीसीआर ने 24 सितंबर को आठ राज्यों में जिला कल्याण अधिकारियों को पत्र जारी कर बाल कल्याण समितियों की समीक्षा के बाद बाल सरंक्षण गृहों में रहने वाले बच्चों को उनके परिवारों में वापस लाने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा।

    कई नागरिक समाज संगठनों ने पत्र को वापस लेने का आह्वान किया था और कहा था कि यह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के उद्देश्य, सिद्धांतों और भावना के खिलाफ है।

    2 अप्रैल को, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की एक बेंच ने देश भर में बाल संरक्षण घरों की स्थितियों के बारे में COVID ​​-19 महामारी के मद्देनज़र स्वतः संज्ञान लिया था। उनकी रक्षा के लिए राज्य सरकारों और विभिन्न अन्य प्राधिकरणों को दिशा-निर्देश जारी किए गए थे।

    न्यायालय ने बच्चों के बीच वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्ड और बाल न्यायालय, सीसीआई और राज्य सरकारों को विस्तृत निर्देश भी जारी किए थे।

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