चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस में बच्चे अपने कारणों से नहीं रह रहे, प्राथमिकता पर हो पुनर्वासः जस्टिस भट
LiveLaw News Network
16 Oct 2021 4:06 PM IST
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रविंद्र भट ने कहा, "जब मैंने अपना लॉ करियर शुरू किया, तो मैंने नहीं सोचा था कि मैं वहां पहुंच पाऊंगा, जहां मैं आज हूं। जब मैं यात्रा कर रहा होता हूं और कार सिग्नल पर रुकती है और मैं बच्चों को भीख मांगते हुए देखता हूं, तो मुझे लगता है कि मैं भी उनमें से एक हो सकता था। यही वह भावना है, जिसे हमें खत्म करना है, समावेश की भावना लाना है।"
उन्होंने कहा, "चाइल्ड केयर इंस्टिट्यूशंस में सभी बच्चे अपने कारणों से नहीं हैं।"
जस्टिस भट जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में किशोर न्याय प्रणाली के कार्यान्वयन पर आयोजित चौथे गोलमेज सम्मेलन में बोल रहे थे। सम्मेलन का आयोजन किशोर न्याय समिति, सुप्रीम कोर्ट, किशोर न्याय समिति, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कश्मीर सरकार के सहयोग से सहयोग से किया था। यूनिसेफ ने कार्यक्रम का सपोर्ट किया था।
जस्टिस भट ने अपने व्याख्यान में COVID-19 महामारी के परिणामों की चर्चा करते हुए कहा कि ऐसी खतरनाक प्रेस रिपोर्टें आई हैं, जिनमें बाल यौन शोषण के मामलों, तस्करी, जबरन श्रम आदि में बढ़ोतरी के साथ अधिकारों के गंभीर उल्लंघन का खुलासा हुआ है।
जजे एक्ट पर बोलते हुए जस्टिस भट ने कहा, "जेजे एक्ट के मुख्य उद्देश्यों में से एक यह है कि नाबालिग का पुनर्वास कानून के मुताबिक हो। कोई भी प्रभावी डिलेवरी केवल प्रशिक्षित कर्मियों के माध्यम से हो सकती है..। मुझे पता है कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र के लिए भी समाज कल्याण विभाग की अपनी चुनौतियां हैं, खासकर जब फंडिंग आदि की बात आती है, लेकिन मैं बार-बार इस बात पर जोर देता हूं कि सभी चाइल्ड केयर इस्टिट्यूशंस में, सभी ऑब्जर्वेशन होम, चिल्ड्रन होम आदि में वैकैंसी को तुरंत भरने के लिए उन्हें फ्लैग करना और एक प्रणाली बनाना महत्वपूर्ण है।"
कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर सरकार के मुख्य सचिव भी मौजूद थे। जस्टिस भट ने उन्हें संकेत दिया कि केंद्र शासित प्रदेशों में 22 किशोर न्याय बोर्ड हैं, फिर भी किशोर न्याय बोर्डों के पीठासीन अधिकारी के लिए केवल 8 स्वीकृत पद हैं।
उन्होंने कहा, "मुख्य सचिव महोदय, आप जानते होंगे कि किशोर न्याय बोर्ड के पीठासीन अधिकारी मजिस्ट्रेट होते हैं। मुझे भरोसा है कि जम्मू-कश्मीर में हर दिन हर एक अदालत में एक-एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को कम से कम 50 मामले सौंपे जाते होंगे। ऐसे मामले होने पर, यदि नाबालिगों के मुद्दों को संभालने का कार्य भी उस पर थोपा जाता है, तो बोझ को संभालना मुश्किल हो जाता है। तब एक्ट के तहत कर्तव्यों का निर्वहन करना संभव नहीं हो पाता है...यदि हमें अधिनियम का कोई सार्थक क्रियान्वयन देखना है, तो हमारे पास ये पीठासीन सदस्य होने चाहिए। इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं, श्रीमान इसे तत्काल प्राथमिकता के साथ लें और देखें कि बाकी सभी जिलों के लिए आवश्यक कार्य किया जाता है।"
जस्टिस भट ने अपने व्याख्यान में पुलिस और सशस्त्र बलों के ओरिएंटेशन की आवश्यकता पर भी जोर दिया।