आरक्षण की सफलता पर सवाल नहीं, वंचितों में न्याय सुनिश्चित करता है उपवर्गीकरण CJI बी.आर. गवई

Amir Ahmad

11 Jun 2025 11:53 AM IST

  • आरक्षण की सफलता पर सवाल नहीं, वंचितों में न्याय सुनिश्चित करता है उपवर्गीकरण CJI बी.आर. गवई

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई ने कहा कि अनुसूचित जातियों (SC) के आरक्षण में उपवर्गीकरण (Sub-Classification) का उद्देश्य आरक्षण की सफलता या प्रासंगिकता पर सवाल उठाना नहीं है बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि वंचित वर्गों के भीतर सबसे अधिक वंचित लोगों को उनका उचित हक मिले।

    ऑक्सफोर्ड यूनियन में “प्रतिनिधित्व से साकारता तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना” विषय पर बोलते हुए CJI गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष State of Punjab v. Davinder Singh मामले में यह स्पष्ट किया था कि SC/ST वर्गों में उपवर्गीकरण किया जा सकता है ताकि अत्यंत पिछड़े लोगों को अलग से आरक्षण मिल सके।

    उन्होंने कहा,

    "यह कदम इसलिए था ताकि वंचितों के भीतर के सबसे वंचित लोगों को न्याय मिल सके, न कि आरक्षण की उपयोगिता पर प्रश्न उठाने के लिए।"

    CJI गवई ने अपने जीवन अनुभव साझा करते हुए कहा कि संविधान की बदौलत ही एक दलित समुदाय से आने वाला व्यक्ति भारत के चीफ जस्टिस पद तक पहुंच सका। उन्होंने इसे एक शांत क्रांति करार दिया।

    उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि असमान समाज में लोकतंत्र तभी जीवित रह सकता है, जब सत्ता का वितरण सिर्फ संस्थाओं के बीच नहीं बल्कि समुदायों के बीच भी हो। इसलिए प्रतिनिधित्व केवल औपचारिक समानता नहीं बल्कि वास्तविक समानता और ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने का तरीका है।

    CJI ने कहा कि आरक्षण के माध्यम से रोजगार, पदोन्नति, आयु छूट, छात्रवृत्ति और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले जैसी पहलों के जरिये बहिष्करण की श्रृंखला को तोड़ने का प्रयास किया गया।

    उन्होंने यह भी बताया कि यह प्रतिनिधित्व अब ट्रांसजेंडर और दिव्यांगजनों तक भी बढ़ाया गया। NALSA और विकलांगों के लिए सुप्रीम कोर्ट के उचित व्यवस्था के फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन और महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण के फैसलों का भी ज़िक्र किया।

    समापन में उन्होंने गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक के प्रसिद्ध निबंध "Can the Subaltern Speak?" का उल्लेख करते हुए कहा,

    "हां, उपेक्षित वर्ग बोल सकते हैं और वे हमेशा से बोलते आए हैं। अब असली सवाल यह है: क्या समाज उन्हें सच में सुन रहा है?"

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