कंपनी के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत के मामले में चेयरमैन, निदेशकों और अधिकारियों को उनकी व्यक्तिगत भूमिका पर लगाए गए विशिष्ट आरोपों के बिना समन नहीं किया जा सकताः सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

3 Oct 2021 4:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसी कंपनी के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक/कार्यकारी निदेशक आदि को आपराधिक मामले में समन जारी नहीं किया जा सकता है(यदि शिकायत में उनकी भूमिका के बारे में विशिष्ट आरोप नहीं लगाए गए हैं), क्योंकि उन्हें कंपनी के अपराधिक कृत्यों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

    सर्वाेच्च न्यायालय ने रवींद्रनाथ बाजपे बनाम मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड व अन्य के मामले में कहा कि,

    ''केवल इसलिए कि वे ए1 और ए6 के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक/कार्यकारी निदेशक और/या उप महाप्रबंधक और/या योजनाकार/पर्यवेक्षक हैं, बिना किसी विशिष्ट भूमिका के और/उनकी क्षमता में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के , उन्हें एक आरोपी के रूप में नहीं दिखाया जा सकता है। विशेष रूप से उन्हें ए1 और ए6 द्वारा किए गए अपराधों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।''

    इस मामले में, एक व्यक्ति द्वारा कंपनी मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड और उसकी ठेकेदार कंपनी के खिलाफ एक निजी शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि वह शिकायतकर्ता की संपत्ति में जबरदस्ती घुस गए और पाइप लाइन बिछाते हुए उसके परिसर की दीवार को गिरा दिया।

    शिकायतकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 406,418,420,427,447,506 और 120बी रिड विद 34 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए कंपनी के निदेशकों और अन्य अधिकारियों को भी इस मामले में आरोपी बताया था। मजिस्ट्रेट ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई जारी कर दी है। बाद में, सत्र न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर दिया और हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता द्वारा दायर रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए इसे बरकरार रखा।

    अपील में, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपी को समन करने के चरण में, इस बात पर विचार करने की आवश्यकता होती है कि क्या शिकायतकर्ता के ओथ पर दिए गए बयान और इस स्तर पर प्रस्तुत सामग्री के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला बनता है और मैरिट के आधार पर विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं होती है। आरोपियों की ओर से, यह तर्क दिया गया कि न्यायालय द्वारा सम्मन/प्रक्रिया जारी करना एक बहुत ही गंभीर मामला है और इसलिए जब तक मामूली आरोपों के अलावा विशिष्ट आरोप न लगाए गए हों और प्रत्येक आरोपी की भूमिका के बारे में न बताया गया हो तब तक मजिस्ट्रेट को प्रक्रिया जारी नहीं करनी चाहिए थी।

    अदालत ने कहा कि इस मामूली आरोप के अलावा कि बिना किसी वैध अधिकार के आरोपियों ने शिकायतकर्ता की संपत्ति के भीतर पाइपलाइन बिछाने की साजिश रची और वह शिकायतकर्ता की संपत्ति में जबरन घुसे और परिसर की दीवार को ध्वस्त कर दिया, कोई अन्य ऐसा आरोप नहीं हैं कि वे उस समय मौजूद थे।

    अदालत ने निम्न निर्णयों में की गई टिप्पणियों पर भी ध्यान दिया- मकसूद सैयद बनाम गुजरात राज्य, (2008) 5 एससीसी 668, पेप्सी फूड्स लिमिटेड बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (1998) 5 एससीसी 749, जीएचसीएल कर्मचारी स्टॉक ऑप्शन ट्रस्ट बनाम इंडिया इंफोलाइन लिमिटेड (2013) 4 एससीसी 505, और सुनील भारती मित्तल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो (2015) 4 एससीसी 609।

    कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि, ''मजिस्ट्रेट को कंपनी के प्रबंध निदेशक, कंपनी सचिव और निदेशकों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले और उनकी संबंधित क्षमताओं में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए थी, जो आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए अनिवार्य है। शिकायत में लगाए गए आरोपों और दलीलों को देखते हुए चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, कार्यकारी निदेशक, उप महाप्रबंधक और योजनाकार एवं निष्पादक के रूप में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के संबंध में कोई विशिष्ट आरोप और/या दलील नहीं हैं। सिर्फ इसलिए कि वे ए1 और ए6 के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक/कार्यकारी निदेशक और/या उप महाप्रबंधक और/या योजनाकार/पर्यवेक्षक हैं, बिना किसी विशिष्ट भूमिका के और/ उनकी क्षमता में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के , उन्हें एक आरोपी के रूप में नहीं दिखाया जा सकता है। विशेष रूप से उन्हें ए1 और ए6 द्वारा किए गए अपराधों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।''

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि क्रिमिनल लॉ को अनिवार्य रूप से लागू नहीं किया जा सकता है और मजिस्ट्रेट को समन का आदेश देते समय आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी होती है।

    उद्धरणः एलएल 2021 एससी 505

    केस का शीर्षकः रवींद्रनाथ बाजपे बनाम मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड

    केस नंबर/ दिनांकः सीआरए 1047-1048/2021, 27 सितंबर 2021

    कोरमः जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना

    वकीलः अपीलकर्ता के लिए अधिवक्ता शैलेश मडियाल, प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता निशांत पाटिल

    निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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