उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर की सज़ा सस्पेंड करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची CBI

Shahadat

27 Dec 2025 9:47 AM IST

  • Kuldeep Singh Sengar

    Kuldeep Singh Sengar

    सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने उन्नाव रेप केस में उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को ज़मानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

    सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई, जिसमें सेंगर की सज़ा को सस्पेंड करने और दोषी ठहराए जाने के खिलाफ उनकी अपील लंबित रहने के दौरान उन्हें ज़मानत पर रिहा करने के हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई।

    हाईकोर्ट ने इस हफ्ते की शुरुआत में ज़मानत देते हुए कहा कि प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेंसेस एक्ट (POCSO Act) की धारा 5(c) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2) के तहत गंभीर अपराध के प्रावधान सेंगर के मामले में लागू नहीं होते, क्योंकि उन्हें उन प्रावधानों के तहत "सरकारी कर्मचारी" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर उसने सज़ा को सस्पेंड कर दिया।

    अपनी याचिका में CBI ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले से प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेंसेस एक्ट, 2012 (POCSO Act) के सुरक्षा ढांचे को कमज़ोर किया गया और अपराध की गंभीरता और आजीवन कारावास की सज़ा को सस्पेंड करने के तय सिद्धांतों को देखते हुए यह कानूनी रूप से सही नहीं है।

    जांच एजेंसी ने हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष पर कड़ी आपत्ति जताई कि एक विधायक POCSO Act की धारा 5(c) के उद्देश्यों के लिए "सरकारी कर्मचारी" की परिभाषा के तहत नहीं आता है। CBI के अनुसार, इस तरह की संकीर्ण और तकनीकी व्याख्या कानून के उद्देश्य को विफल करती है, जो बच्चों को यौन अपराधों से बेहतर सुरक्षा प्रदान करना और अधिकार के दुरुपयोग को एक गंभीर परिस्थिति मानना ​​है।

    याचिका में तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट नाबालिग के यौन उत्पीड़न से जुड़े मामले के बावजूद POCSO Act की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या करने में विफल रहा। इसमें कहा गया कि POCSO Act एक विशेष कल्याणकारी कानून है। इसके प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए, जो संसद द्वारा इच्छित सुरक्षा उपायों को प्रतिबंधित करने के बजाय आगे बढ़ाए।

    सज़ा सस्पेंड करने के तर्क को चुनौती देते हुए CBI ने कहा कि अकेले लंबे समय तक जेल में रहना नाबालिग के बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों से जुड़े मामलों में आजीवन कारावास की सज़ा को सस्पेंड करने का आधार नहीं हो सकता। एजेंसी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कहा कि आजीवन कारावास से दंडनीय मामलों में सज़ा को सस्पेंड करना एक अपवाद है, नियम नहीं और यह केवल दुर्लभ और मजबूर करने वाली परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है।

    याचिका में कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि अपराध की गंभीरता, अपराध करने का तरीका, आरोपी की भूमिका और पीड़ित और गवाहों को संभावित खतरा जैसे कारकों को सज़ा सस्पेंड करने के खिलाफ गंभीरता से देखा जाना चाहिए। इसमें आरोप लगाया गया कि हाईकोर्ट के आदेश में इन पहलुओं पर ठीक से विचार नहीं किया गया।

    CBI ने यह तर्क देते हुए पीड़ित की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई कि सेंगर की रिहाई उसके पिछले बर्ताव और उसके प्रभाव को देखते हुए एक असली खतरा पैदा करती है। उसने चेतावनी दी कि ऐसी परिस्थितियों में एक प्रभावशाली दोषी की सज़ा सस्पेंड करने से आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास कम होता है और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में एक परेशान करने वाला संदेश जाता है।

    सेंगर को 2019 में एक स्पेशल CBI कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक नाबालिग लड़की से रेप के आरोप में दोषी ठहराया और उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई। इस मामले ने पूरे देश का ध्यान खींचा था, जिसमें पीड़िता और उसके परिवार ने पूर्व विधायक और उसके साथियों द्वारा लगातार उत्पीड़न और धमकी देने का आरोप लगाया। पीड़िता के परिवार के सदस्यों पर हमलों से जुड़े कई संबंधित मामलों की भी CBI ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर जांच की थी।

    सेंगर पीड़िता के पिता की गैर इरादतन हत्या से जुड़े एक अलग मामले में 2020 में सुनाई गई 10 साल की सज़ा भी काट रहा है।

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