न्यायिक सेवा के लिए उपयुक्त पाए गए व्यक्ति की नियुक्ति पर रोक नहीं लगा सकतेः त्रिपुरा हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
7 Feb 2020 12:29 PM IST

यह स्पष्ट करते हुए कि हाइकोर्ट न्यायिक सेवा ग्रेड- 1 में नियुक्ति के लिए उम्मीदवार के नाम को बिना किसी विशेष कारण के रोक नहीं सकता है, त्रिपुरा हाईकोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि वह खाली पड़े अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को एक उम्मीदवार का नाम सुझाए।
चीफ जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस अरिंदम लोध की पीठ ने यह भी कहा कि अभ्यर्थी की योग्यता के बारे में एक बार लिखित और मौखिक परीक्षाओं के माध्यम से निर्णय हो जाने के बार फुल कोर्ट भी वैकल्पिक राय नहीं बना सकती है।
अदालत का आदेश योगिंदर पाल द्वारा दायर याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने त्रिपुरा हाईकोर्ट से प्रार्थना की थी कि वह त्रिपुरा हाईकोर्ट प्रशासन को निर्देश दे की वह आनुषंगिक लाभों के साथ राज्य सरकार को त्रिपुरा न्यायिक सेवा ग्रेड-1 में नियुक्ति के लिए उनके नाम की सिफारिश करे।
पाल ने एक अन्य अभ्यर्थी अंशुमान के साथ अक्टूबर 2018 में हाईकोर्ट द्वारा विज्ञापित ग्रेड-1 त्रिपुरा न्यायिक सेवा के दो पदों पर सीधी भर्ती के लिए आयोजित लिखित परीक्षा और वाइवा पास किया था।
मेरिट सूची में दूसरे स्थार पर रहने के बावजूद हाईकोर्ट ने उक्त पद पर नियुक्ति के लिए केवल अंशुमान चौधरी के नाम की सिफारिश की।
पाल ने हाईकोर्ट में 21 मई 2019 को एक अभ्यावेदन दिया, जिसने उसे खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन हाईकोर्ट में वापस लौटने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस ले ली।
पाल के वकील प्रशांत मनचंदा ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा अधिसूचित दो रिक्तियां आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए थीं।
"चूंकि आरक्षित श्रेणी का एक भी उम्मीदवार उपलब्ध नहीं था, जैसा कि अंशुमान चौधरी के मामले में किया गया, याचिकाकर्ता को भी नियुक्त किया जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता को नियुक्त नहीं करने या उनके अभ्यावेदन को खारिज़ करने का कोई कारण भी नहीं बताया गया।"
मलिक मज़हर सुल्तान व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग व अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक पदों पर समय पर भर्तियों की आवश्यकता पर जोर दिया है, मनचंदा ने कहा कि मामले में एक रिक्त पद और एक उपयुक्त उम्मीदवार, दोनों उपलब्ध होने के बावजूद बिना किसी औचित्य के हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को नियुक्ति की सिफारिश करने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट के वकील ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि याचिकाकर्ता को केवल इसलिए नियुक्त किए जाने का कोई निहित अधिकार नहीं है क्योंकि उसका नाम मेरिट सूची में शामिल है।
उन्होंने कहा कि फुल कोर्ट ने याचिकाकर्ता की उपयुक्तता पर विचार किया और पाया कि नियुक्ति के लिए उनके नाम की सिफारिश नहीं की जानी चाहिए।
हाईकोर्ट ने त्रिपुरा न्यायिक सेवा नियमों के नियम 11 पर ध्यान दिया, जिसके अनुसार सीधी भर्ती से चुना गया कोई भी व्यक्ति, जब तक कि वह अच्छा नैतिक चरित्र नहीं रखता है और चिकित्सकीय रूप से फिट नहीं है, नियुक्त नहीं किया जाएगा।
फुल कोर्ट के प्रस्ताव पर विचार करने के बाद, पीठ ने कहा, "प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता क अच्छे नैतिक चरित्र या शारीरिक फिटनेस पर जोर नहीं दिया है। याचिकाकार्त की नियुक्ति को केवल उनकी अनुचितता के आधार पर रोका जा सकता है, जो कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर किया जाना चाहिए।
"एक बार चयन प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, उम्मीदवारों का मूल्यांकन किया गया और याचिकाकर्ता को अंक दिए गए, जिसके आधार पर उन्हें मेरिट सूची में शामिल किया गया, हाईकोर्ट इस आधार पर कि वह नियुक्त के लिए उपयुक्त नहीं हैं, वह भी रिकॉर्ड पर बिना की सामग्री के, उनके नाम की सिफारिश पर रोक नहीं लगा सकता है।
उनकी योग्यता के आधार पर उनकी उपयुक्तता को केवल लिखित और मौखिक परीक्षाओं के माध्यम से आंका जाना था। फुल कोर्ट, इसके बाद, मेरिट के प्रश्न पर दूसरी राय नहीं बना सकती है। नियम 11 के उप-नियम (1) के खंड (i) में निहित उपयुक्तता का संदर्भ में निश्चित रूप से उम्मीदवार की योग्यता का आकलन शामिल नहीं होगा, जिसके लिए नियम में लिखित और मौखिक परीक्षाओं की स्पष्ट परिकल्पना है।
कोर्ट ने हालांकि यह भी जोड़ा कि याचिकाकर्ता बैकडेट से वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकता।
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