याचिका में दावा-लॉकडाउन में गंभीर रोगियों की चिकित्सा सेवाओं में कमी, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करते हुए कहा-एक खबर के आधार पर नोटिस नहीं दे सकते
LiveLaw News Network
15 April 2020 2:26 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका, जिसमें सरकारी दिशानिर्देशों के अप्रभावी कार्यान्वयन की शिकायत की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे नागरिकों को, जिन्हें तत्काल/सुसंगत चिकित्सा की आवश्यकता होती है (जैसे कि कैंसर रोगी और गर्भवती महिलाएं) को मुश्किल उठानी पड़ी थी, को खारिज कर दिया गया है।
जस्टिस एनवी रमना, संजय किशन कौल और बीआर गवई की खंडपीठ ने कहा कि एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है, इसलिए जनहित याचिका को खारिज किया जाता है। वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुई थी।
एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड चारू माथुर और एडवोकेट पुनीत पाठक द्वारा एडवोकेट नूर रामपाल की ओर से दायर याचिका में मेडिकल इमरजेंसी के संदर्भ में 'आवश्यक' अपवादों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी अधिकारियों/अस्पतालों को निर्देश जारी करने की मांग की गई थी।
याचिका में मुद्दा उठाया गया था कि इन दिनों स्वास्थ्य-सेवा का पूरा अमला COVID-19 के मरीजों के इलाज में लगा हुआ है, जिसके चलते अनजाने में कैंसर, एचआईवी और गुर्दे की बीमारियों जैसे रोगियों को चिकित्सा सुविआएं पाने में मुश्किल आ रही है।
"यह सोचना जरूरी है कि ऐसे मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और मौजूदा स्थिति में उन्हें देश भर के अधिकांश ओपीडी और ऑपरेशन थिएटरों के बंद होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।"
याचिका में कहा गया कि लॉकडाउन की अवधि में आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में शामिल होने के बावजूद "आपातकालीन/ जीवन रक्षक चिकित्सा आवश्यकताओं" के प्रावधानों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है, इसलिए, विभिन्न प्रकार के रोगियों के जीवन दांव पर लग गया है। एम्स ने भी आपातकालीन/जीवन रक्षक ऑपरेशनों पर तत्काल प्रभाव से ध्यान देने के लिए परिपत्र जारी किया है।
".. जमीनी स्तर पर उक्त परिपत्र के संदर्भ में आपातकालीन/ जीवन रक्षक ऑपरेशनों का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है, जिससे कैंसर, एचआईवी रोगियों आदि को काफी खतरा है।"
याचिका में मैत्री नाम की एक महिला का भी संदर्भ दिया गया था, जिसका एम्स में ओरल कैंसर का इलाज हो रहा है, हाल ही में वह जीभ पर अल्सर का नहीं उपचार नहीं प्राप्त कर पाई, जिससे उसे गंभीर पीड़ा उठानी पड़ी। इसलिए, याचिका में यह ध्यान दिलाने का प्रयास किया गया था कि विभिन्न नागरिक, जो कि अपनी बीमारियों के विभिन्न चरणों पर हैं, महामारी से लड़ने की कोशिश में उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। याचिका में यह भी कहा गया था कि कई राज्यों ने टीकाकरण और मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं जैसे सेवाओं को भी बंद कर दिया है।
"सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ऐसे कदमों से मातृ मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है और अधिकांश राज्यों में पहले से ही कम टीकाकरण और कम हो सकता है।"
याचिका में दावा किया गया था कि "यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र तैयार किया जाना चाहिए कि किसी भी नागरिक के जीवित रहने के आवश्यक साधनों के साथ समझौता नहीं किया जाए"। इसी आलोक में, लॉकडाउन की अवधि में सभी नागरिकों की आपात चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के निर्देशों का कड़ाई से कार्यान्वयन हो।