यह निर्देश नहीं दे सकते कि 50% हाईकोर्ट जज जिला न्यायपालिका से होने चाहिए; लेकिन कम से कम एक तिहाई न्यायिक सेवाओं से होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

3 May 2023 10:04 AM GMT

  • यह निर्देश नहीं दे सकते कि 50% हाईकोर्ट जज जिला न्यायपालिका से होने चाहिए; लेकिन कम से कम एक तिहाई न्यायिक सेवाओं से होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हाईकोर्टों को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया कि वे जजों की 50% सीटों को बेंच यानी सेवारत जजों और जिला न्यायपालिका से भरें, यदि बार कोटे से कोई रिक्ति 6 महीने से अधिक समय तक खाली रहती है।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि वे ऐसे नोट देने के इच्छुक नहीं हैं।

    उन्होंने कहा,

    "हमें डर है, कि क्या इस तरह का निर्देश न्यायिक पक्ष में जारी किया जा सकता है"।


    हालिंकि उन्होंने आवेदकों को अपनी शिकायतों के साथ उपयुक्त मंच से संपर्क करने की अनुमति दी। आवेदन में एक अन्य प्रार्थना पर विचार करते हुए खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सभी हाईकोर्टों में कुल रिक्तियों का कम से कम एक तिहाई जिला न्यायपालिका द्वारा भरा जाना चाहिए।

    पीठ ने नोट किया, "हम उम्मीद करेंगे कि हाईकोर्ट उस अनुपात को सख्ती से बनाए रखेगा"।

    खंडपीठ ने फरवरी 2023 में प्रथम दृष्टया यह विचार व्यक्त किया था कि सेवा संवर्ग से जिला न्यायपालिका से हाईकोर्टों में पदोन्नत किए गए जजों और बार से पदोन्नत किए गए जजों के बीच 1:3 के वर्तमान अनुपात को बनाए रखने की आवश्यकता है।

    आवेदन दिल्ली न्यायिक सेवा संघ की ओर से दायर किया गया था।

    न्यायिक कोटे से रिक्तियों को शीघ्र भरने के लिए हाईकोर्ट को निर्देश जारी करने के संबंध में प्रार्थना को खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया।

    यह नोट किया गया कि अधिकांश समय, हाईकोर्ट में सर्विस जजों का कार्यकाल केवल कुछ वर्षों का होता है। उसी के मद्देनजर, पीठ ने हाईकोर्टों से तत्काल कदम उठाने और रिक्तियों के होने से पहले जिला न्यायपालिका से जजों की पदोन्नति के लिए नामों की सिफारिश करने का अनुरोध किया। वही यह सुनिश्चित करेगा कि सेवा संवर्ग से पदोन्नति में कोई विलंब न हो।

    इसके अतिरिक्त, पीठ ने एमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ भटनागर और राज्य सरकार, यूनियन ऑफ इंडिया और हाईकोर्ट के वकीलों के लिए विचार करने के लिए सात महत्वपूर्ण मुद्दे निर्धारित किए।

    मुद्दे इस प्रकार हैं -

    -क्या उच्च न्यायिक सेवा यानी जिला न्यायाधीश संवर्ग में पदोन्नति के लिए सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (संक्षेप में एलडीसीई) के लिए आरक्षित 10% कोटा को 25% पर बहाल करने की आवश्यकता है, जैसा कि इस कोर्ट ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, (2002) 4 SCC 247 में निर्धारित किया गया है?

    -क्या उपरोक्त परीक्षा में शामिल होने के न्यूनतम योग्यता अनुभव को कम करने की आवश्यकता है, और यदि हां, तो कितने वर्षों तक?

    -क्या सिविल जज (जूनियर डिवीजन) से मेधावी उम्मीदवारों का एक कोटा सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) संवर्ग में योग्यता को प्रोत्साहन मिले?

    -यदि हां, तो उसका प्रतिशत क्या होना चाहिए और सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में न्यूनतम अनुभव क्या होना चाहिए?

    -क्या किसी विशेष वर्ष में उपरोक्त विभागीय परीक्षाओं के लिए आरक्षित किए जाने वाले कोटा की गणना संवर्ग की संख्या या विशेष भर्ती वर्ष में होने वाली रिक्तियों की संख्या पर की जानी चाहिए?

    -योग्यता-सह-वरिष्ठता के आधार पर उच्च न्यायिक सेवाओं में पदोन्नति के लिए मौजूदा 65% कोटा के खिलाफ सिविल जज (सीनियर डिवीजन) को जिला न्यायाधीशों के कैडर में पदोन्नत करते समय कुछ उपयुक्तता परीक्षण भी शुरू किया जाना चाहिए।

    -सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की परीक्षा में शामिल होने के लिए कम से कम तीन साल की प्रैक्टिस की आवश्यकता है, जिसे ऑल इंडिया जजेज एसो‌सिएशन और अन्य के मामले में इस अदालत ने समाप्त कर दिया था। (उपरोक्त), पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है? और यदि हां, तो कितने वर्षों से?

    केस टाइटल: ऑल इंडिया जजेज एसो‌सिएशन और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) नंबर 1022/1989]

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 385


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