'क्या संसद कोर्ट द्वारा रद्द किए गए प्रावधानों को पुनः लागू कर सकती है?' सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया सवाल

Shahadat

11 Nov 2025 11:42 AM IST

  • क्या संसद कोर्ट द्वारा रद्द किए गए प्रावधानों को पुनः लागू कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया सवाल

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से पूछा कि ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 को आकार देने के पीछे क्या विचार प्रक्रिया थी, जिसे वर्तमान में उसके समक्ष चुनौती दी गई है।

    कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या संसद ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम में उन्हीं प्रावधानों को पुनः लागू कर सकती है, जिन्हें पहले पिछले निर्णयों में रद्द कर दिया गया था।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 की वैधता से संबंधित मद्रास बार एसोसिएशन के मामले की सुनवाई कर रहे थे। एसोसिएशन ने इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्णयों के विपरीत बताते हुए चुनौती दी, जिनमें कहा गया कि ट्रिब्यूनल के सदस्यों का कार्यकाल कम से कम 5 वर्ष होना चाहिए, न्यूनतम 10 वर्ष के अनुभव वाले वकीलों को पात्र माना जाना चाहिए, आदि।

    जस्टिस चंद्रन ने अटॉर्नी जनरल से पूछा,

    "आपको इस सुधार के लिए क्या प्रेरित किया? यही वह प्रश्न है जिसका आपने उत्तर नहीं दिया। आपने कहा कि आपने इस पर विचार किया, लेकिन विचार क्या है?"

    जस्टिस चंद्रन ने आगे कहा,

    "विचलन का एक उदाहरण सुधारों का कारण नहीं बन सकता; गंभीर होना चाहिए...जिस पर आपको विचार करना चाहिए था।"

    एडवोकेट जनरल आर. वेंकटरमणी ने उत्तर दिया कि विवादित अधिनियम, ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों के लिए एक समान संरचना की आवश्यकता पर कोर्ट की पिछली टिप्पणियों का परिणाम था।

    उन्होंने कहा:

    "यह सिरा 2021 का अधिनियम है - यह निर्णयों और संसद के बीच बातचीत का परिणाम है, जिसमें वे आपस में विचार-विमर्श कर रहे हैं कि एक समान क्या होना चाहिए? एकरूपता पर, क्या आम सहमति है? एकरूपता संसद या सरकार की कल्पना नहीं थी; एकरूपता इस मामले पर इस कोर्ट के हस्तक्षेप का परिणाम है। इसलिए 2021 का अधिनियम - यह केवल एकरूपता और युक्तिकरण लाने का प्रयास करता है। हम न्यायालय की कही गई बातों का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।"

    उन्होंने आगे कहा,

    "यह निर्णय के बाद की प्रेरणा नहीं है, यह निर्णयों के कारण की प्रेरणा है।"

    उल्लेखनीय है कि मद्रास बार एसोसिएशन III (एमबीए III) और रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड एवं अन्य के पिछले निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकाल को 4 वर्ष तक सीमित करने, न्यूनतम आयु सीमा 10 वर्ष निर्धारित करने और खोज-सह-चयन समिति को प्रत्येक पद के लिए दो नामों की सिफारिश करने की अनुमति देने जैसे अन्य प्रावधानों को रद्द कर दिया। हालांकि, इन प्रावधानों को 2021 के अधिनियम में पुनः शामिल किया गया।

    इस संदर्भ में चीफ जस्टिस ने पूछा,

    "इस न्यायालय द्वारा जो कुछ रद्द किया गया, क्या उसे संसद द्वारा यहां-वहां थोड़े-बहुत शब्दों में बदलाव के साथ पुनः शामिल किया जा सकता है?"

    एजी ने स्पष्ट किया कि एमबीए III मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के विपरीत अनुभव और विपरीत कारण मौजूद हैं।

    तब चीफ जस्टिस ने पूछा,

    "विपरीत अनुभव क्या है?"

    एजी ने उत्तर दिया कि समय के साथ विपरीत अनुभवों का एक समूह बना है।

    अटार्नी जनरल ने तर्क दिया कि न्यूनतम आयु 50 वर्ष निर्धारित की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उम्मीदवारों के पास न केवल ठोस कानूनी ज्ञान हो, बल्कि समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आयामों की भी अच्छी समझ हो।

    उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि व्यावहारिक रूप से बहुत से वकील अपनी प्रैक्टिस छोड़कर एक निश्चित अवधि के लिए ट्रिब्यूनल के सदस्य के रूप में शामिल होने को तैयार नहीं होते। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पीठ को किस्से-कहानियों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

    कहा गया,

    "मैं अदालत से अपील करता हूं कि कृपया इन बातों, इन मामलों का आकलन केवल अनुभव के आधार पर न करें।"

    पिछली सुनवाई में सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने ज़ोर देकर कहा था कि अध्यक्ष पद के लिए दो नामों की सिफ़ारिश का प्रावधान नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि चयन मेरिट सूची के अनुसार होना चाहिए, न कि प्रतीक्षा सूची के उम्मीदवारों को नज़रअंदाज़ करके नियुक्त किया जाना चाहिए।

    खंडपीठ आज (मंगलवार) दोपहर 3 बजे मामले की सुनवाई जारी रखेगी।

    बता दें, 2021 में भी सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान मामले की सुनवाई करते हुए संसद द्वारा न्यायालय द्वारा निरस्त किए गए प्रावधानों को पुनः लागू करने पर नाराज़गी व्यक्त की थी।

    तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमना ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी,

    "सरकार ने हमारे फ़ैसले का सम्मान नहीं किया।"

    Case Details : Case Title: MADRAS BAR ASSOCIATION Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(C) No. 1018/2021

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