"क्या केरल सरकार यूपी से सिद्दीकी कप्पन के स्थानांतरण की मांग कर सकती है, एक राज्य दूसरे राज्य के खिलाफ अनुच्छेद 32 का आह्वान नहीं कर सकता हैः मुख्तार अंसारी मामले में दुष्यंत दवे ने कहा
LiveLaw News Network
4 March 2021 10:39 AM IST
"एक राज्य दूसरे राज्य के खिलाफ अनुच्छेद 32 का आह्वान नहीं कर सकता है।"
पंजाब राज्य और जेल अधीक्षक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर याचिका एक याचिका की सुनवाई में यह दलील दी है। याचिका में पंजाब के रोपड़ जेल से बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश की गाजीपुर जेल में स्थानांतरित करने की मांग की गई है।
मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी दलीलें पेश कीं, जो अंसारी की ओर से पेश हुए। दवे, पंजाब और जेल अधीक्षक की ओर से पेश हुए, जबकि सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता, उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए। मामला गुरुवार को भी जारी रहेगा।
जिरह
बुधवार की सुनवाई में, रोहतगी ने कहा कि उन्होंने तबादले के लिए आवेदन किया था और अदालत ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया कि स्थानांतरण आवश्यक नहीं है और अंसारी वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने खंडपीठ से अनुरोध किया कि यदि उन्हें यूपी स्थानांतरित कर दिया गया, तो उनके जीवन को खतरा हो सकता है, इसलिए उन्हें दिल्ली भेजा जाए।
"मुझे दिल्ली भेजना सबसे अच्छा होगा। यूपी की सरकार यह भी कहती है कि मेरे पंजाब में होने से समस्या है। यदि मुझे दिल्ली स्थानांतरित किया जाता है और मामले को भी दिल्ली स्थानांतरित किया जाता है तो इसका समाधान किया जा सकता है।"
बेंच ने उन्हें सूचित किया कि वे अनुरोध पर विचार करेंगे। इसके बाद सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने उत्तर प्रदेश की ओर से प्रस्तुतियां दीं।
उन्होंने अदालत के समक्ष कहा कि अंसारी एक ऐसी स्क्रिप्ट का पालन कर रहे हैं, जो हिंदी फिल्मों में देखी जा सकती थी, और केवल मजाक उड़ा पूरी न्यायिक प्रणाली का मजाक उड़ा रहे हैं।
एसजी ने दलील दी कि कैसे यूपी की हिरासत से निकालकर पंजाब पुलिस को सौंप दिए जाने से क्रिमिनल प्रोसीजर कोड को उल्लंघन हुआ है।
उन्होंने कहा, "सबसे पहले, उसे न्यायाधीश के आदेश के बिना बाहर नहीं लाया जा सकता था। फिर उसे पंजाब ले जाया गया और वहां पेश किया गया। फिर उसे यूपी वापस लाने के बजाय, उसे पंजाब में रखा गया।"
उन्होंने कहा कि पंजाब पुलिस ने दो साल बाद भी कुछ नहीं किया है; उन्होंने कोर्ट के सामने कोई सामग्री नहीं रखी है।
एसजी ने कहा, "पंजाब पुलिस इस शख्स के साथ मिलीभगत करके न्यायिक व्यवस्था को चकमा दे रही है। उसने एक मेडिकल सर्टिफिकेट का जुगाड़ किया, ताकि यह बताया जा सके कि वह यात्रा नहीं कर सकता, लेकिन वह दिल्ली जा रहा है। सही तथ्य दबाए जा रहे हैं।"
एसजी ने आगे कहा कि अंसारी जेल के भीतर से ही अपनी अवैध गतिविधियां चला रहा था और पंजाब में अधिकारी स्वेच्छा से उसकी अनदेखी कर रहे थे।
इसके अलावा, जब भी ट्रायल कोर्ट द्वारा अंसारी को समन जारी किया गया, पंजाब पुलिस ने उन्हें पेश नहीं करने को उचित बताते हुए कहा कि वह चिकित्सकीय रूप से अनफिट हैं, जब मेडिकल सर्टिफिकेट में लिखा गया था कि उन्हें गले में खराश, पीठ दर्द, त्वचा रोग आदि है।
एसजी ने यह कहते हुए अपनी दलीलें समाप्त की कि सुप्रीम कोर्ट समक्ष अनुच्छेद 32 की याचिका सुनवाई योग्य है, क्योंकि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि न्याय हो और यह उसका नागरिकों के प्रति एक कर्तव्य है।
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने पंजाब राज्य की ओर से अपनी दलीलें दी और कहा, "इस मामले के दूरगामी परिणाम हैं। इसका अंसारी से कोई लेना-देना नहीं है। यदि वह अपराधी है, तो वह अपराधी है।"
दवे ने कहा कि अनुच्छेद 32 याचिका दायर करने वाला राज्य कानून में खराब है और एक राज्य द्वारा दूसरे के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं।
उन्होंने सवाल किया, "क्या अनुच्छेद 14 और 21 का उपयोग राज्य द्वारा किया जा सकता है? क्या वे इसे स्वीकार कर सकते हैं? पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। क्या केरल राज्य उसे वापस केरल लाने की मांग कर सकता है?"
उस नोट पर, मामला स्थगित कर दिया गया और कल भी जारी रहेगा।
पृष्ठभूमि
यूपी राज्य द्वारा बसपा विधायक को पंजाब के रोपड़ जेल से यूपी के गाजीपुर जेल में स्थानांतरित करने के लिए दायर रिट याचिका में आरोप लगाया गया है कि वर्तमान में अंसारी के राज्य में कई गंभीर अपराध लंबित हैं और उनका स्थानांतरण महत्वपूर्ण है।
हालांकि, यह दलील दी गई कि रोपड़ जेल के अधीक्षक ने चिकित्सा आधार पर अंसारी को सौंपने से इनकार कर दिया है। सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि पंजाब राज्य एक आतंकवादी का बचाव और समर्थन कर रहा है।
अंसारी ने राज्य द्वारा दायर याचिका एक प्रति-शपथ-पत्र दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि याचिका इस आधार पर है कि संविधान के भाग III के तहत उल्लिखित अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया गया है और इसलिए, अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दायर नहीं होगी।
हलफनामे मे कहा गया है, "एक राज्य को संविधान के तहत कोई मौलिक अधिकार नहीं है और एक राज्य संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका में किसी अन्य राज्य के खिलाफ मुकदमा नहीं चला सकता क्योंकि यह संघीय योजना के खिलाफ है।"