क्या एक व्यक्ति नौकरी छोड़े बिना एडवोकेट के रूप में नामांकन करा सकता है? गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बीसीआई की विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

3 Dec 2021 9:28 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई का फैसला किया है। गुजरात हाईकोर्ट ने नवंबर, 2020 में दिए एक फैसले में दूसरे रोजगार वालों को, वह पूर्णकालिक हों या अंशकालिक, बिना अपनी नौकरी से इस्तीफा दिए एडवोकेट के रूप में एनरॉल होने की अनुमति दी थी।

    फैसले के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। शीर्ष न्यायालय जिस पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है। हालांकि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की बीसीआई की प्रार्थना को ठुकरा दिया।

    पीठ ने कहा कि वह मुद्दे पर विस्तार से विचार करने पर सहमत है। मामले को 25 जनवरी, 2022 को सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया। कोर्ट की सहायता के लिए सीनियर एडवोकेट केवी विश्वनाथन को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया गया।

    पीठ ने कहा,

    "हाईकोर्ट का दृष्टिकोण गलत नहीं हो सकता। चूंकि मुद्दे के व्यापक प्रभाव हैं और याचिका बीसीआई ने दायर की है, जबकि मुद्दा गुजरात बार काउंसिल से जुड़ा। हम इस मामले की जांच के लिए सहमत हैं।"

    बीसीआई की ओर से पेश एसएन भट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया।

    पीठ ने कहा,

    "नहीं, हम एक पक्षीय स्थगन नहीं देंगे, हम देखना चाहते हैं कि इसका क्या असर होता है।"

    गुजरात हाईकोर्ट के फैसले में गुजरात बार काउंसिल (नामांकन) नियमावली के नियम एक और दो की व्याख्या की गई है। उक्त नियमों के तहत अन्य रोजगार वालों पर एडवोकेट के रूप में नामांकित होने पर पूर्ण प्रतिबंध था।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि काउंसिल ऐसे ऐसे व्यक्ति के नामांकन प्रमाण पत्र को रोक लेगी और जब तक यह घोषणा नहीं की जाती कि उसने नौकरी/व्यवसाय बंद कर दिया है तब तक प्रमाण पत्र काउंसिल के पास ही रहेगा। दूसरे शब्दों में, एक वकील के रूप में वास्तव में प्रैक्टिस शुरू करने के लिए दूसरी नौकरी छोड़नी पड़ेगी।

    गुजरात हाईकोर्ट की एक खंडपीठ, जिसमें चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे, ने यह फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि यह बहुत कठोर शर्त है कि एक व्यक्ति को केवल एनरॉल होने के लिए अपनी नौकरी छोड़नी होगी।

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक महिला, जो सिंगल मदर थी, की रिट याचिका पर यह फैसला सुनाया था। वह वकील के रूप में नामांकित होना चाहती थी लेकिन इस शर्त से व्यथित थी कि नामांकन के लिए उसे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ेगी।

    केस: बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम ट्विंकल राहुल मानगांवकर और अन्य , एसएलपी (सी) 16000/2020।

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