पश्चिम बंगाल की SIR प्रक्रिया में मताधिकार छिनने के डर से जूझ रहे CAA-संरक्षित शरणार्थियों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

Praveen Mishra

1 Dec 2025 4:34 PM IST

  • पश्चिम बंगाल की SIR प्रक्रिया में मताधिकार छिनने के डर से जूझ रहे CAA-संरक्षित शरणार्थियों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन बांग्लादेशी शरणार्थियों की याचिका पर नोटिस जारी किया है जिन्हें 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता प्रमाणपत्र जारी होने में हो रही देरी के कारण मताधिकार से वंचित होने का डर है।

    चीफ़ जस्टिस सुर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ NGO 'आत्मदीप' द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देती है जिसमें हिंदू, बौद्ध, ईसाई और जैन शरणार्थियों की सुरक्षा से जुड़ी PIL को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि याचिका स्वयं प्रभावित व्यक्तियों की ओर से नहीं, बल्कि NGO द्वारा दायर की गई है।

    सिनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने पीठ को बताया कि शरणार्थी बौद्ध, सिख, जैन और ईसाई समुदायों से हैं, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 2014 से पहले बांग्लादेश से भारत आए और पश्चिम बंगाल में बस गए। उनके CAA के तहत दिए गए आवेदन अब तक लंबित हैं। उन्होंने कहा—“हम 2014 से पहले आए थे, फिर भी हमारे आवेदन अब तक प्रोसेस नहीं हुए।”

    CJI कांत ने कहा कि मामले की विस्तृत सुनवाई 9 दिसंबर को पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से जुड़े अन्य मामलों के साथ की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा, “हम केवल इस आधार पर विभेद नहीं कर सकते कि कोई जैन है या हिंदू है—हर मामले की अलग-अलग जांच ज़रूरी है।”

    पीठ ने मामले में नोटिस जारी कर दिया और इसे 9 दिसंबर को विस्तृत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

    पुरा मामला:

    वर्तमान SLP NGO 'आत्मदीप' की ओर से उन व्यक्तियों के लिए दायर की गई है जो नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2(1)(b) के प्रोवाइज़ो के तहत संरक्षित हैं—यह प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत जोड़ा गया था। याचिका में कहा गया है कि 2019 संशोधन के तहत धारा 6B भी जोड़ी गई, जिसके माध्यम से इन संरक्षित समुदायों को पंजीकरण या नैचुरलाइजेशन प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करने का अधिकार मिला।

    हालांकि, नागरिकता प्रमाणपत्र जारी होने में देरी और SIR के दौरान आवेदन की ऑनलाइन रसीदों को मान्यता न देने के चलते याचिका में “गंभीर संवैधानिक संकट” पैदा होने की बात कही गई है।

    याचिका में कहा गया है कि CAA नियम, 2024 के तहत ऑनलाइन आवेदन करने पर मिलने वाली 'अभ्यावेदन रसीद' ही आवेदन का आधिकारिक प्रमाण है। अंतिम निर्णय आने तक, विशेषकर SIR के दौरान, इन रसीदों को कम-से-कम 'अस्थायी वैध प्रमाण' के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए ताकि पात्र व्यक्तियों को मतदाता सूची से हटाया न जाए।

    शरणार्थियों में बढ़ती दहशत

    याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा समय पर प्रमाणपत्र जारी न करने के कारण शरणार्थियों में भारी दहशत फैल गई है। कई लोग “राज्यहीन” हो जाने का डर महसूस कर रहे हैं। याचिका में उल्लेख है कि SIR के दौरान आवेदन-रसीदों को न मानने और प्रक्रिया में देरी के चलते बड़े पैमाने पर लोगों के मताधिकार खत्म होने का खतरा है, जिससे उनके सामाजिक एकीकरण और आर्थिक पुनर्वास पर गंभीर असर पड़ेगा।

    यह भी कहा गया है कि कई समाचार रिपोर्टों में ऐसे मामलों का उल्लेख है जहां दहशत में आए कुछ लोगों ने आत्महत्या तक कर ली है।

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