केंद्र से नए प्रस्तावों पर दोहराए गए नाम को वरिष्ठता देने के लिए कहकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने नई मिसाल कायम की
Manu Sebastian
21 Jan 2023 4:34 PM IST
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की ओर से हाल ही में प्रकाशित किए गए रिजोल्यूशन सुर्खियों में हैं, क्योंकि ये अभूतपूर्व उदाहरण हैं जब कोलेजियम ने केंद्र सरकार की आपत्तियों और अपने जवाबों को सार्वजनिक किया है।
कोलेजियम ने केंद्र की ओर से की गइ आपत्तियों के क्षुद्र और अस्वीकार्य आधारों, जैसे किसी उम्मीदवार पर यौन रुझान के कारण आपत्ति, किसी उम्मीदवार पर सोशल मीडिया में उसकी ओर से व्यक्त किए गए विचार पर आपत्ति और किसी उम्मीदवार पर प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाले लेख के शेयर करने के कारण आपत्ति को प्रशंसनीय साहस के साथ चिन्हित किया।
कोर्ट की ओर से किए गए साहस के प्रदर्शन को- जो पिछले कुछ हफ्तों में केंद्र की ओर से किए जा रहे लगातार मौखिक हमलों के मद्देनज़र किया गया है, व्यापक रूप से सराहा गया है। कोलेजियम के प्रस्ताव में एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है।
मद्रास हाईकोर्ट के जज के रूप में पदोन्नति के लिए एडवोकेट जॉन सत्यन के नाम को दोहराते हुए कोलेजियम ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बयान जोड़ा, जो कि अभूतपूर्व भी है। कोलेजियम ने प्रस्ताव दिया कि मद्रास हाईकोर्ट के जजों के रूप में पदोन्नति के लिए अनुशंसित नए नामों पर उन्हें वरिष्ठता दी जानी चाहिए।
16 फरवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने पांच अन्य नामों के साथ पहली बार सत्यन के नाम का प्रस्ताव रखा था। इन छह में से केंद्र ने जॉन सत्यन और अब्दुल गनी अब्दुल हमीद की मंजूरी को रोकते हुए चार व्यक्तियों के नाम दो बैचों (दो मार्च में और अन्य दो जून 2022 में) में स्वीकृत किए।
17 जनवरी, 2023 को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ वाले सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने सत्यन के मामले पर पुनर्विचार किया और केंद्र द्वारा उठाई गई आपत्ति के दो आधारों को खारिज कर दिया- कि उन्होंने पीएम की आलोचना में लिखे लेख को साझा किया था और उन्होंने छात्र की आत्महत्या के बाद एनईईटी की आलोचना की थी।
उसी दिन (17 जनवरी) कोलेजियम ने पांच अन्य एडवोकेट की प्रोन्नति के लिए नए प्रस्ताव भी पेश किए। इस पृष्ठभूमि में, कोलेजियम ने प्रस्ताव में एक बयान जोड़ा कि सत्यन को नए प्रस्तावों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कोलेजियम की ओर से उठाया गया यह एक सराहनीय कदम है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि जिस व्यक्ति का नाम मनमाने ढंग से केंद्र द्वारा रोक दिया गया था, वह वरिष्ठता से वंचित न हो। इस सिलसिले में जस्टिस केएम जोसेफ की वरिष्ठता को लेकर हुए विवाद को याद करना जरूरी है।
जुलाई 2018 में, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने जस्टिस केएम जोसेफ को पदोन्नत करने के अपने पहले के प्रस्ताव को दोहराया। उसी दिन कोलेजियम ने जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस विनीत सरन की पदोन्नति के लिए दो नए प्रस्ताव भी पेश किए। हालांकि, नियुक्ति के आदेश जारी करते समय केंद्र सरकार ने जस्टिस केएम जोसेफ को जस्टिस बनर्जी और जस्टिस सरन से नीचे रखा, जिससे उनकी वरिष्ठता दो पदों से कम हो गई।
शायद इस तरह की हार से सीखते हुए कोलेजियम ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि नए प्रस्तावों पर दोहराए गए नाम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आदर्श रूप से, जब किसी नाम को मनमाने ढंग से रोक दिया गया हो, तो उस व्यक्ति को मूल प्रस्ताव की तारीख से वरिष्ठ समझा जाना चाहिए।
एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु द्वारा दायर अवमानना याचिका में हाल की सुनवाई में, कोर्ट ने कोलेजियम के प्रस्तावों को केंद्र द्वारा विभाजित करने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की थी क्योंकि इससे वरिष्ठता बाधित होती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि कोलेजियम ने कहा कि अन्य पुनरावृत्तियों (सौरभ किरपाल, सोमशेखरन सुंदरेसन, अमितेश बनर्जी और शाक्य सेन के नाम) को केंद्र द्वारा "शीघ्र" संसाधित किया जाना चाहिए।