पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सः सुप्रीम कोर्ट ने एमडी छात्रों की फाइनल ईयर की परीक्षा स्थगित करने की मांग खारिज की

LiveLaw News Network

18 Jun 2021 8:15 AM GMT

  • पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सः सुप्रीम कोर्ट ने एमडी छात्रों की फाइनल ईयर की परीक्षा स्थगित करने की मांग खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 29 डॉक्टरों (पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल रेजिडेंट्स) के एक समूह की तरफ से दायर उस याचिका पर आदेश पारित करने से इनकार कर दिया है,जिसमें स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों की अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग की गई थी।

    जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की अवकाश पीठ ने कहा कि परीक्षा की तारीखों की घोषणा देश भर के कई विश्वविद्यालयों द्वारा की जानी है और इसलिए न्यायालय द्वारा कोई सामान्य आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि इस मामले में विभिन्न चिकित्सा विश्वविद्यालयों को पक्षकार नहीं बनाया गया है।

    न्यायमूर्ति बनर्जी ने पूछा, ''हम एक सामान्य आदेश कैसे पारित कर सकते हैं जब पूरे देश के 100 विश्वविद्यालय इसमें शामिल हैं?''

    पीठ ने कहा कि जहां भी राहत संभव है, अदालत ने उसे मंजूरी दे दी है, जैसे कि INI CET परीक्षा को स्थगित करना, जिसका आदेश पिछले सप्ताह अदालत ने दिया था। पीठ ने कहा कि हालांकि, यह एक ऐसा मामला है जहां अदालत राहत नहीं दे सकती है।

    पीठ ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का प्रतिनिधित्व एडवोकेट गौरव शर्मा के किया है और सलाह दी है कि विश्वविद्यालयों को महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए परीक्षा की तारीख तय करनी चाहिए।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने प्रस्तुत किया कि फ्रंटलाइन योद्धाओं के रूप में COVID कर्तव्यों में भाग ले रहे एमडी के छात्रों को इस समय परीक्षा की भी तैयारी करने के लिए कहना अनुचित है।

    हेगड़े ने कहा, ''हमें COVID ड्यूटी करने और परीक्षा के लिए अध्ययन करने के बीच एक विकल्प बनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जिसे हम असाधारण परिस्थितियों में बहुत लंबे समय से कर रहे हैं।''

    पीठ ने कहा कि वह पीजी मेडिकल छात्रों की कठिनाइयों को समझती है जो कोरोना योद्धाओं के रूप में सेवा कर रहे हैं; हालांकि, पीठ ने कहा कि वह उन परीक्षाओं को स्थगित करने का आदेश देने की स्थिति में नहीं है जिनके लिए देश भर में फैले विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अभी तारीखों की घोषणा की जानी है।

    जब श्री हेगड़े ने पीठ से आग्रह किया कि कम से कम एनएमसी को आदेश दे दिया जाए कि वह छात्रों को परीक्षा की तैयारी के लिए उचित समय दे दे, तो पीठ ने कहा कि 'उचित समय' की अवधारणा व्यक्तिपरक है।

    जस्टिस बनर्जी ने चुटकी लेते हुए कहा, ''भाई जस्टिस शाह के लिए परीक्षा की तैयारी के लिए 15 दिन का समय उचित हो सकता है। मेरे लिए, यह 150 दिन हो सकता है।''

    श्री हेगड़े ने यह भी कहा कि कोरोना ड्यूटी करने वाले पीजी के छात्रों को बिना परीक्षा के ही सीनियर रेजिडेंट के तौर पर प्रमोट कर दिया जाना चाहिए। हालांकि, पीठ ने कहा कि वह परीक्षाओं के बिना पदोन्नति/प्रमोशन का आदेश नहीं दे सकती है।

    न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने पिछली सुनवाई में परीक्षाओं से छूट की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा इस प्रार्थना पर दबाव नहीं डाला जाएगा। पीठ ने शुक्रवार को उन अन्य प्रार्थनाओं के संबंध में मामले की सुनवाई की, जिन पर उसने पिछली सुनवाई पर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को नोटिस जारी किया था।

    फाइनल ईयर की परीक्षाओं से छूट देने की मांग के अलावा, जिसे 11 जून को बेंच ने खारिज कर दिया था, याचिकाकर्ताओं ने तीन या दो साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा होते ही उन्हें वेतनमान और अन्य भत्तों के साथ सीनियर रेजिडेंट और पोस्ट-डॉक्टोरल छात्रों के रूप में पदोन्नत करने के निर्देश देने की भी मांग की थी।

    उन्होंने यह भी मांग की थी कि उनकी प्रार्थनाओं की जांच करने और सिफारिश करने के लिए एक संयुक्त विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने 22 अप्रैल और 27 अप्रैल 2021 को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा जारी अधिसूचना को भी चुनौती दी थी, जिसमें एक तरफ मेडिकल कॉलेजों को सलाह दी गई थी कि वे महामारी के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए पीजी अंतिम वर्ष के मेडिकल छात्रों/रेजिडेंट की सेवाएं लेना जारी रखें और दूसरी ओर विश्वविद्यालयों को स्नातकोत्तर प्रैक्टिकल फाइनल परीक्षा का समय और तरीका तय करने की सलाह दी गई थी।

    कोर्ट ने परीक्षा से छूट देने से इनकार कियाः

    सुप्रीम कोर्ट ने 11 जून को पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों की वर्तमान याचिका में की गई उस प्रार्थना को खारिज कर दिया था,जिसमें कोरोना महामारी की स्थिति के मद्देनजर अंतिम परीक्षा से छूट देने की मांग की गई थी। पीठ ने कहा था कि अदालत परीक्षा की छूट का आदेश पारित नहीं कर सकती, क्योंकि यह एक शैक्षिक नीति का मामला है।

    पीठ ने सुनवाई के दौरान पूछा था कि,

    ''वे मरीजों का इलाज करेंगे। मरीज उन लोगों के हाथ में कैसे आ सकते हैं, जिन्होंने परीक्षा पास नहीं की हो?''

    पीठ ने हालांकि रिट याचिका में की गई अन्य प्रार्थनाओं पर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को नोटिस जारी किया था।

    डॉक्टरों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने जब से परीक्षा से छूट देने के पक्ष में दलीलें दी तो पीठ ने उनसे पूछा था कि अदालत परीक्षा से छूट देने का फैसला कैसे ले सकती है?

    बेंच ने कहा था कि कोर्ट किसी खास तारीख को परीक्षा आयोजित करने में मनमानी की दलील या सुझाव को समझ सकती है लेकिन कोर्ट यह कैसे कह सकती है कि कोई परीक्षा होनी ही नहीं चाहिए?

    पीठ ने कहा था कि,''यह एक नीतिगत निर्णय है और परीक्षा से छूट देना भी व्यापक हित में नहीं है। आप हमारी शक्ति की सीमाओं के बारे में अच्छी तरह जानते हैं, और केवल उन्हीं असाधारण मामलों में ही हम अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हैं, जहां हम वास्तविक मनमानी और वास्तविक पूर्वाग्रह पाते हैं।''

    न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा था कि,''ये चीजें नीतियों के दायरे में आती हैं। अदालत को इसमें अपना दिमाग क्यों लगाना चाहिए कि परीक्षाएं होनी चाहिए या नहीं?''

    जस्टिस शाह ने कहा था कि इन डॉक्टरों को सीनियर रेजिडेंट बनना है और इसके बाद मरीजों का इलाज करेंगे।

    उन्होंने कहा,

    ''मरीज उन लोगों के हाथ में कैसे हो सकते हैं, जिन्होंने परीक्षा पास नहीं की है।''

    जब कोर्ट ने परीक्षा रद्द करने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की, तो वरिष्ठ वकील हेगड़े ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से पूछें कि क्या इस मुद्दे पर कुछ किया जा सकता है। अगर हाँ, तो इस पर एक प्रस्ताव पेश करें।

    हेगड़े ने कहा कि,

    ''असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर रिट क्षेत्राधिकार पर सीमाएं हैं। यह न केवल एक असाधारण बल्कि एक विपत्तिपूर्ण परिस्थिति है।''

    इस पर बेंच ने कहा था कि,

    ''हम समझते हैं और जानते हैं कि डॉक्टर क्या कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम 'परीक्षा नहीं होगी' यह कह सकते हैं?''

    हेगड़े ने कहा था कि,

    ''अदालत को यह कहने की आवश्यकता नहीं है। मैं अदालत से अधिकारियों से पूछने के लिए कह रहा हूं कि 'क्या आप कुछ कर सकते हैं'?''

    पीठ के झुकाव को भांपते हुए हेगड़े ने प्रस्तुत किया था कि वह परीक्षा से छूट के लिए की जा रही प्रार्थना पर दबाव नहीं डाल रहे है और उन्होंने अन्य प्रार्थनाओं पर विचार करने का अनुरोध किया। पीठ ने नोट किया था कि हेगड़े ने कहा है कि याचिकाकर्ता पहली प्रार्थना पर जोर नहीं देंगे। जिसके बाद पीठ ने अन्य प्रार्थनाओं के संबंध में भारत सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को नोटिस जारी कर दिया था।

    (शशिधर ए व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य)

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