बॉम्बे हाईकोर्ट के जज ने जमानत खारिज करते हुए हिंदी को 'राष्ट्रीय भाषा' बताया, नारकोटिक्स केस के आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी फाइल की

LiveLaw News Network

20 Feb 2022 12:45 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने से इनकार करते हुए हिंदी को 'राष्ट्रीय भाषा' कहे जाने के बाद मादक पदार्थों की तस्करी के मामले में आरोपी एक तेलुगु ट्रैवल एजेंट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उसने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट इस बात की सराहना करने में विफल रहा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 345 के अनुसार हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है।

    नवंबर 2021 में, जस्टिस नितिन सांबरे ने अपीलकर्ता गंगम सुधीर कुमार रेड्डी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, जबकि पुलिस उसे (उसकी समझ में आने वाली भाषा में) गिरफ्तारी के कारणों के बारे में समाझाने में विफल रही थी। रेड्डी ने दावा किया कि इस मामले में नारकोटिक ड्रग एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) की धारा 50 का पालन नहीं किया।

    जमानत याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था,

    ''दलीलें यह दर्शाती हैं कि आवेदक को हिंदी में धारा 50 के तहत उसके वैधानिक अधिकारों के बारे में बताया गया था। हालांकि इस स्तर पर, उसने यह तर्क दिया है कि वह हिंदी नहीं समझता है। एक बार जब आवेदक ने यह दावा किया है कि वह टूर एंड ट्रैवल का बिजनेस कर रहा है तो ऐसे बिजनेस को करने वाले व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकता भाषा और संचार कौशल से परिचित होना है। आवेदक को हिंदी में उसके अधिकार के बारे में बताया गया था जो कि राष्ट्रीय भाषा है।''

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि रेड्डी के तेलुगु भाषा के सीमित ज्ञान की इस स्तर पर सराहना नहीं की जा सकती, क्योंकि उक्त बचाव पर ट्रायल के चरण में विचार किया जा सकता है।

    आरोपी को मुंबई पुलिस के एंटी-नारकोटिक्स सेल ने जुलाई 2019 में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8 (सी) रिड विद धारा 20 (सी) और 29 के तहत गिरफ्तार किया था। उस वाहन से गांजे की व्यावसायिक मात्रा जब्त की गई थी,जो आवेदक की पत्नी के नाम है। जब मादक पदार्थ जब्त किया गया था, उस समय इस वाहन में आवेदक एक सह-अभियुक्त के साथ यात्रा कर रहा था। वह तेलंगाना का निवासी है, जबकि मुंबई में प्रतिबंधित सामग्री जब्त की गई थी।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में आरोपी ने दावा किया है कि संविधान के अनुच्छेद 22 के अनुसार आरोपी को गिरफ्तारी के कारण समझाए जाने चाहिए थे, परंतु वर्तमान मामले में ऐसा नहीं हुआ है क्योंकि उसे उसके अधिकारों के बारे में तेलुगु की बजाय हिंदी में समझाया गया था,जबकि हिंदी, उसे समझ नहीं आती है।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता तेलंगाना राज्य का निवासी है और तेलुगु भाषा से अच्छी तरह वाकिफ है। अभियुक्त को उसके अधिकारों के बारे में अवगत न करना भारतीय संविधान के अनुसार उसके अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।''

    हाईकोर्ट द्वारा हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने के संबंध में एसएलपी में कहा गया है,

    ''भारतीय संविधान के अनुसार यह धारणा फिर से गलत है, क्योंकि भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है और यहां केवल राज भाषाएं हैं।''

    याचिका में कहा गया है कि न तो संविधान हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करता है और न ही हिंदी या किसी भाषा को भारत संघ की राष्ट्रीय या राजभाषा घोषित करता है।

    एसएलपी में यह भी कहा गया है कि

    ''संविधान सभा में सबसे गहरा विवाद आधिकारिक/राजभाषा के संबंध में था न तो संवैधानिक सलाहकार द्वारा तैयार किए गए प्रारूप संविधान और न ही प्रारूप समिति द्वारा तय किए गए संस्करण में आधिकारिक भाषा/राजभाषा से संबंधित कोई प्रावधान था, लेकिन उनमें केंद्रीय संसद और राज्य विधानमंडल में उपयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं और सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा उपयोग की जाने वाली भाषाओं के संबंध प्रावधान शामिल थे। संविधान निर्माताओं ने संविधान के द्वारा हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया है, वहीं संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में निर्धारित नहीं किया गया है।''

    आरोपी का ट्रैवल का बिजनेस है और इसलिए उसे अन्य भाषाओं के बारे में ज्ञान होना चाहिए। इस संबंध में हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी के बारे में उसने दावा किया कि गूगल मैप्स जैसी तकनीकी प्रगति के कारण, उसे निर्देशों के लिए स्थानीय भाषा में लगे साइनबोर्ड पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।

    अन्य ग्राउंड के साथ एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का पालन न करने के लिए जमानत पर रिहा करने की मांग वाली एसएलपी अधिवक्ता लेविश एडवर्ड के माध्यम से दायर की गई है।

    Next Story