बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोर्ट का समय बर्बाद करने के आरोप में याचिकाकर्ता से वसूले लागत के 25 हजार
LiveLaw News Network
10 Feb 2020 11:39 AM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अकोला से चुने गए लोकसभा सदस्य संजय धोत्रे के निर्वाचन को चुनौती देने वाले श्रीकृष्ण अडबोले पर 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। उल्लेखनीय है कि संजय धोत्रे वर्तमान में केंद्र में सूचना तकनीकी और दूरसंचार राज्य मंत्री हैं। धोत्रे के निर्वाचन में खिलाफ दायर रिट याचिका में आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में किए गए खर्च को छिपाया था।
नागपुर पीठ के जस्टिस आरवी घुगे और जस्टिस एसएम मोदक की खंडपीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि धारा 81 के तहत चुनाव याचिका दायर करने के बजाय, याचिकाकर्ता ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 10 ए के तहत रिट याचिका दायर की है, उक्त प्रावधान केवल अधिनियम अनुसार तय समय और तरीके से चुनाव खर्च के खाते की जानकारी देने की कानूनी औपचारिकता से संबंधित है।
केस की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने अध्याय 8 के साथ पाठ्य धारा 10-ए के तहत और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष तय किए गए नियमों के तहत याचिका दायर की थी। उन्होंने याचिका में संजय धोत्रे को अयोग्य ठहाराए जाने की मांग की थी, उनका आरोप था कि जनप्रतिनिधित्व कानून , 1951 की धारा 10-ए के तहत निर्धारित समय के भीतर चुनाव का खर्च दर्ज नहीं किया गया था।
शिकायत में 2014 में धोत्रे द्वारा कथित रूप से किए गए विभिन्न खर्चों के बारे में कई दलीलें दी गई थीं और आरोप लगाए गए थे। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न नेताओं ने धोत्रे के लिए प्रचार किया था। धोत्रे ने ही 2019 में भी अकोला लोकसभा सीट जीती थी। विभिन्न समाचार पत्रों में विज्ञापन पर पार्टी द्वारा किए गए खर्च का भी शिकायत में अनुमान लगाया गया था। कथित तौर पर चुनाव प्रचार के लिए दिवंगत गोपीनाथ मुंडे द्वारा किए गए हेलीकॉप्टर के इस्तेमाल का खर्च, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विज्ञापनों के प्रकाशन का खर्च का जिक्र चुनाव खर्च के ब्योरे में नहीं दिया गया था।
चुनाव आयोग के अवर सचिव ने उक्त शिकायत को खारिज कर दिया था, जिसके बाद कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई थी।
निर्णय
मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट एनबी राठौड़, चुनाव आयोग की ओर से नीरजा चौबे, संजय धोत्रे की ओर से मुग्धा चंदुरकर और जिला चुनाव अधिकारी की ओर से एजीपी केएल धर्माधिकारी पेश हुए।
प्रतिवादियों की ओर से दलील दी गई कि 2014 लोकसभा का कार्यालय 2019 में समाप्त हो चुका है। 2019 में नए चुनाव हुए थे और संजय धोत्रे दोबारा चुने गए। साथ ही दलील दी गई कि उक्त याचिका को स्वीकार करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और इससे अनावश्यक रूप से कोर्ट का कीमती समय बर्बाद होगा।
मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को चेतावानी देते हुए कहा कि यदि यह पाया जाता है कि अदालत का समय बर्बाद हुआ है तो याचिककर्ता से मुकदमे की लागत का खर्च वसूला जा सकता है। हालांकि, अधिवक्ता राठौड़ ने कहा कि यह याचिका का स्वीकार की जानी चाहिए और शिकायत में धारा 10-ए के तहत दी गई सभी प्रार्थनाओं का निपटारा अदालत को करना चाहिए।
कोर्ट ने धारा 10 ए का परीक्षण किया और कहा-
"हमने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 10-ए में पाया है कि उक्त धारा के तहत किसी उम्मीदवार को चुनाव खर्चों की जानकारी न देने के कारण अयोग्य घोषित करने का प्रावधान है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि कि धोत्रे ने 13 जून 2014 को चुनाव के खर्च की जानकारी दी और याचिकाकर्ता की शिकायत 20 अप्रैल 2015 को दर्ज की गई। हालांकि, अधिवक्ता राठौड़ ने कहा कि यह गलती से हो गया, उल्लेखित तारीख दरअसल 20 मार्च 2014 थी। कोर्ट ने पाया कि नोटरी ने उस तारीख का भी उल्लेख नहीं किया है, जिस पर उसके समक्ष दस्तावेज को नोटरीकृत किया गया था।
कोर्ट ने कहा कि "इसलिए, हम इस मामले में उचित कदम उठाने के लिए रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देशित करने के इच्छुक हैं।"
अंत में, कोर्ट ने कहा-
"जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के अध्याय 2 की धारा 81 के तहत किसी चुनाव के खिलाफ, धारा 100 की उपधारा (1) और धारा 100 में निदृष्ट एक या एक से अधिक आधारों पर, हाईकोर्ट के समक्ष, ऐसे चुनाव या किसी भी चुनाव में किसी भी उम्मीदवार द्वारा, विजेता उम्मीदवार के चुनाव की तारीख से पैंतालीस दिनों के भीतर, चुनाव याचिका दायर करने का प्रावधान है।
मामले में यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने समय गंवाया और 20 मार्च 2015 को शिकायत दर्ज कराई थी। चूंकि चुनाव याचिका पर रोक लगा दी गई , इसलिए उन्होंने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 10-ए के तहत याचिका दायर करने का मौका लिया। इसलिए, हमें यकीन है कि याचिकाकर्ता ने चालाकी से इस तरह की शिकायत की और कोर्ट का समय बर्बाद किया।"
कोर्ट ने याचिककर्ता ने लागत के 25,000 रुपए वसूलने का और गवर्नमेंट वेटर्नरी कॉलेज एंड हॉस्पटिल, नागपुर को देने का आदेश दिया। कोर्ट ने रजिस्ट्रार (ज्यूडिशल) को नोटरी के खिलाफ, जांच में यह पाए जाने के बाद की उसने "सत्यापन के नीचे हस्ताक्षर करने की भी परवाह नहीं की", कार्रवाई करने का निर्देश दिया।