उपभोक्ता संरक्षण नियमों की वैधता को तय करने में बॉम्बे हाईकोर्ट के रास्ते में कोई बाधा नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 Sep 2021 10:27 AM GMT

  • उपभोक्ता संरक्षण नियमों की वैधता को तय करने में बॉम्बे हाईकोर्ट के रास्ते में कोई बाधा नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि उपभोक्ता आयोगों (Consumer Commissions) में रिक्त पदों के मुद्दे से निपटने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा लिया गया स्वत: संज्ञान मामला, केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए उपभोक्ता संरक्षण नियम 2020 को चुनौती देने में बॉम्बे हाईकोर्ट के रास्ते में कोई बाधा नहीं है।

    अधिवक्ता डॉ महिंद्रा लिमये द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) के समक्ष एक याचिका दायर की गई है, जिसमें उपभोक्ता संरक्षण नियम 2020 के उन प्रावधानों को चुनौती दी है, जो राज्य आयोगों और जिला फोरम में नियुक्ति के लिए क्रमशः 20 वर्ष और 15 वर्ष का न्यूनतम पेशेवर अनुभव निर्धारित करते हैं।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उपभोक्ता फोरम में नियुक्तियों से न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले अधिवक्ताओं का बहिष्कार करना मनमाना है, क्योंकि उक्त अनुभव हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पर्याप्त है।

    हालांकि, उच्च न्यायालय ने उपभोक्ता आयोगों में रिक्तियों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू किए गए स्वत: संज्ञान मामले को देखते हुए उक्त याचिका में फैसला टाल दिया।

    उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि निर्णय लेने वाले सदस्यों के लिए पात्रता मानदंड निर्धारित करने वाले नए नियमों को रद्द कर दिया जाता है तो राज्य को आठ सप्ताह के भीतर उपभोक्ता फोरम में रिक्त पदों को भरने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करना मुश्किल होगा।

    इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता ने मामले में स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने उक्त आवेदन का निपटारा करते हुए कहा:

    "हम केवल रिक्तियों, बुनियादी ढांचे आदि को भरने और देश भर में उपभोक्ता फोरम से संबंधित सभी संबंधित मुद्दों की जांच कर रहे हैं। हम किसी भी नियम या क़ानून की वैधता पर विचार नहीं कर रहे हैं। इस प्रकार हम जो भी दृष्टिकोण चाहते हैं, उसमें नियम या क़ानून की वैधता को चुनौती देने को लेक्र कोई बाधा नहीं है।"

    नियम

    नागपुर में प्रैक्टिस कर रहे वकील डॉ. महिंद्रा लिमये ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए 2020 नियमों के दायरे को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 101 के तहत भारत में कार्यरत उपभोक्ता आयोग, राज्य उपभोक्ता आयोग और जिले के सदस्यों की नियुक्ति, योग्यता, पात्रता पर आधारित बिंदुओं को चुनौती दी।

    याचिका में उपभोक्ता संरक्षण (नियुक्ति के लिए योग्यता, भर्ती की विधि, नियुक्ति की प्रक्रिया, पद की अवधि, इस्तीफा और प्रेसिडेंट और राज्य आयोग और जिला आयोग के सदस्यों को हटाने) नियम, 2020 के अधिकार पर सवाल उठाया गया है। इसमें नियम 3(2)(बी), नियम 4(2)(सी) और नियम 6 (8, 9 और 10) को चुनौती दी गई है।

    उनके वकील, एडवोकेट तुषार मंडलेकर ने तर्क दिया कि नए नियम अवैध हैं, कानून में खराब हैं और निम्नलिखित आधारों पर इसे रद्द करने की आवश्यकता है।

    याचिका में निम्न बिंदुओं को चुनौती दी गई है।

    * महिला न्यायाधीश" की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है।

    * नियम 10 से 20 साल के अनुभव वाले वकीलों को राज्य आयोग में सदस्य बनने से और 10 से 15 साल के अनुभव वाले वकीलों को महाराष्ट्र राज्य में जिला उपभोक्ता आयोगों में सदस्य बनने से वंछित करते हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, क्योंकि 10 साल से अधिक अनुभव के वकील हाईकोर्ट जज के रूप में नियुक्त होने के पात्र होते हैं।

    * न्यायिक सदस्य बनने के लिए कानून के बुनियादी ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है और किसी भी स्नातक को उसकी योग्यता का मूल्यांकन किए बिना नियुक्त किया जा सकता है।

    * 2020 के नियम 6(9) के तहत चयन समिति को अपनी प्रक्रिया निर्धारित करने का अधिकार है। ऐसे प्रावधान चयन समिति को अत्यधिक शक्ति और विवेक भी देते हैं और मनमाने और अनुचित हैं।

    * कोई "लिखित परीक्षा" नहीं है जिसके द्वारा उम्मीदवारों की योग्यता का मूल्यांकन किया जा सके। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में मॉडल नियम, 2017 को उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम ऑल यूपी कन्ज़ूमर प्रोटेक्शन बार एसोसिएशन मामले में मंजूरी दे दी है।

    याचिका में कहा गया है कि उपभोक्ता संरक्षण बार एसोसिएशन, जिसमें एक लिखित परीक्षा शामिल थी, उसे अंतिम 2020 नियमों में हटा दिया गया था।

    केस टाइटल: आरई में: जिलों और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों / कर्मचारियों की नियुक्ति में सरकारों की निष्क्रियता और भारत भर में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे बनाम भारत संघ और अन्य।

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