यौनकर्मियों की तस्करी पर रोक और पुनर्वास वाला विधेयक शीतकालीन सत्र में संसद के समक्ष रखा जाएगा: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

LiveLaw News Network

29 Nov 2021 10:42 AM GMT

  • यौनकर्मियों की तस्करी पर रोक और पुनर्वास वाला विधेयक शीतकालीन सत्र में संसद के समक्ष रखा जाएगा: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से एक बयान दर्ज करते हुए कि मौजूदा शीतकालीन सत्र में यौनकर्मियों की तस्करी पर रोक और पुनर्वास के लिए कानून संसद के समक्ष रखा जाएगा, मांग की कि बिल के अंतिम मसौदे की एक प्रति एमिकस क्यूरी और सीनियर एडवोकेट जयंत भूषण के साथ साझा की जाए।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ 2010 के बुद्धदेव कर्मस्कर मामले की सुनवाई कर रही थी। अपीलकर्ता ने कोलकाता में एक रेड लाइट एरिया में एक सेक्स वर्कर का सिर दीवार और फर्श से मारकर उसकी हत्या कर दी थी। कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी थी। साथ ही देश में यौनकर्मियों की समस्याओं के समाधान के लिए कोर्ट ने इसी आदेश के तहत मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।

    2011 में न्यायालय ने इस मामले में उचित निर्देश देने के लिए न्यायालय की सहायता और सलाह देने के लिए एक पैनल ग‌ठित किया, सीनियर एडवोकेट प्रदीप घोष और सीनियर एडवोकेट जयंत भूषण को शामिल किया गया। सीनियर एडवोकेट प्रदीप घोष को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। पैनल को मामले में उचित सुझाव देने और सहायता करने की जिम्‍मेदारी सौंपी गई।

    पैनल न्यायालय को सुझाव देने के लिए निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन कर रहा था- (1) तस्करी की रोकथाम, (2) यौनकर्मियों का पुनर्वास जो यौन कार्य छोड़ना चाहते हैं, और (3) संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के अनुसार यौनकर्मियों के सम्मान के साथ जीने के लिए अनुकूल स्‍थ‌ितियां।

    सोमवार को पीठ ने दर्ज किया, "इस अदालत ने 2011 में यौनकर्मियों के पुनर्वास के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति ने सभी हितधारकों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बाद एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की। 27 फरवरी, 2020 को यूनियन ऑफ इंडिया के ओर से पेश एएसजी पिंकी आनंद ने हमें बताया था कि दो मसौदा कानूनों की जांच के लिए मंत्रियों के एक समूह का गठन किया गया है, और इस न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट पर मंत्रियों का समूह विचार करेगा।

    इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि यह आपराधिक अपील 2010 से लंबित है और कानून लाने की तत्काल आवश्यकता को महसूस करते हुए, इस अदालत ने एएसजी का बयान दर्ज किया कि मसौदा कानून को जल्द से जल्द संसद के समक्ष रखा जाएगा। आज एएसजी आरएस सूरी ने प्रस्तुत किया कि संसद के चालू सत्र के दौरान आवश्यक कार्य किए जाएंगे। मामले को 14 दिसंबर को सूचीबद्ध किया जाए।"

    सोमवार को एएसजी सूरी ने पीठ को बताया था,

    "बिल को जल्द से जल्द शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना है, जैसा कि मंत्रालय ने मुझे बताया था। मैं 2 सप्ताह के भीतर आपको प्रगति के बारे में अवगत कराऊंगा"।

    व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2021 को संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना है।

    एएसजी सूरी के बयान पर भूषण ने प्रार्थना की,

    "यह देखने के लिए कि उन्होंने हमारी सिफारिशों में से कम से कम एक पर कार्रवाई की है, हमारे पास अंतिम मसौदा बिल की एक प्रति होनी चा‌हिए, ताकि यह देख सकें कि क्या वे कुछ कर भी रहे हैं"

    पीठ ने अपने आदेश में कहा, "मसौदे कानून की एक प्रति एमिकस क्यूरी को दी जाए।"

    पीठ ने यह भी कहा कि 28 अक्टूबर, 2020 को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया था कि वे नाको द्वारा चिन्हित यौनकर्मियों को न्यूनतम मात्रा में सूखा राशन का वितरण सुनिश्चित करें।

    राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को वास्तविक यौनकर्मियों की पहचान के लिए जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों की सहायता लेने का निर्देश दिया गया, जो सूखे राशन के वितरण के हकदार होंगे।

    अदालत द्वारा अनुपालन के हलफनामे दाखिल करने के लिए जारी निर्देश के अनुसरण में कुछ राज्य सरकारों ने अपना जवाब दाखिल किया है।

    पीठ ने कहा, "वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने आवेदक की ओर से प्रस्तुत किया है कि पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को छोड़कर अदालत द्वारा जारी निर्देशों का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया है। एमिकस क्यूरी जयंत भूषण ने प्रस्तुत किया कि कुछ राज्य सरकारों की ओर से प्रतिक्रिया से पता चलता है कि इस अदालत के निर्देशानुसार सूखे राशन के वितरण के ‌लिए राशन कार्डों पर जोर दिया जाता है।"

    पीठ ने कहा, "भोजन के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। हालांकि COVID महामारी के कारण स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, हमारा विचार है कि राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना संवैधानिक दायित्व है, जिसके तहत यौनकर्मी सूखा राशन पाने के हकदार हैं।

    सभी संबंधितों को सुनने के बाद, इस अदालत ने 28 अक्टूबर, 2020 को एक आदेश पारित किया कि यौनकर्मियों के लिए पहचान का प्रमाण प्रस्तुत करना मुश्किल है। सूखे राशन के वितरण का दावा करने के लिए नाको और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से यौनकर्मियों की पहचान उनके लिए पर्याप्त होगी।

    राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया जाता है कि वे राशन कार्ड पर जोर दिए बिना आदेश दिनांक 28.10.2020 का पालन करें। राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा 10 दिसंबर से पहले एक स्थिति रिपोर्ट दायर की जाएगी। इस मामले को 14 दिसंबर को सूचीबद्ध करें।"

    केस शीर्षक: बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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