Bihar SIR | 'अगर अवैधता है तो फाइनल वोटर लिस्ट का प्रकाशन हमारे लिए मायने नहीं रखेगा': सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई स्थगित की
Shahadat
15 Sept 2025 3:29 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (15 सितंबर) को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 7 अक्टूबर तक के लिए स्थगित की।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन की तिथि 1 अक्टूबर से पहले सुनवाई की मांग की थी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने यह कहते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया कि 28 सितंबर को दशहरा अवकाश के कारण अदालत एक सप्ताह के लिए बंद रहेगा।
अदालत ने कहा कि अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन से मामले के निर्णय पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। साथ ही उसने याचिकाकर्ताओं को आश्वासन दिया कि अगर कोई अवैधता है तो वह सूची के अंतिम रूप दिए जाने के बावजूद हस्तक्षेप करेगा।
जस्टिस कांत ने कहा,
"इससे (सूची के अंतिम प्रकाशन से) हमें क्या फ़र्क़ पड़ेगा? अगर हमें लगता है कि कुछ अवैधता है तो हम..."
यह ADR की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण द्वारा प्रस्तुत इस दलील के जवाब में था कि चुनाव आयोग SIR प्रक्रिया में अपने स्वयं के नियमों और विनियमों का पालन नहीं कर रहा है। भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग कानूनी आदेश के बावजूद प्राप्त आपत्तियों को अपलोड नहीं कर रहा है।
सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने अनुरोध किया कि चुनाव आयोग को आपत्तियों और दावों पर दैनिक बुलेटिन प्रकाशित करने का निर्देश दिया जाए। चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि चुनाव आयोग साप्ताहिक अपडेट दे रहा है, क्योंकि आपत्तियों की जांच के कठिन कार्य के दौरान दैनिक अपडेट देना संभव नहीं है।
जस्टिस कांत ने सुझाव दिया कि जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में रखने से पारदर्शिता बढ़ेगी।
जस्टिस कांत ने कहा,
"आपने जो किया है, उसे जहां तक सार्वजनिक डोमेन में ला सकते हैं...इससे पारदर्शिता आएगी।"
जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग प्राप्त आपत्तियों की संख्या सार्वजनिक कर सकता है। हालांकि शंकरनारायणन ने अनुरोध किया कि इन टिप्पणियों को आदेश का हिस्सा बनाया जाए। हालांकि, खंडपीठ ने ऐसा नहीं किया।
राजद की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. ए.एम. सिंघवी और एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने अदालत से मामले की सुनवाई पहले करने का आग्रह किया। ग्रोवर ने दलील दी कि नई बिहार विधानसभा का गठन 22 नवंबर तक होना है, जिसका अर्थ है कि चुनावों की अधिसूचना अक्टूबर के मध्य तक जारी कर दी जाएगी। इसलिए प्रभावी हस्तक्षेप के लिए बहुत कम समय है।
हालांकि, खंडपीठ अपने इस रुख पर अड़ी रही कि मामले की सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।
जस्टिस कांत ने कहा कि अदालतों के फिर से खुलने के बाद यह सबसे जल्दी उपलब्ध गैर-विविध दिन है।
खंडपीठ ने एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर आवेदन पर भी विचार किया, जिसमें पिछले सप्ताह के आदेश में संशोधन की मांग की गई, जिसमें SIR प्रक्रिया में पहचान के प्रमाण के लिए आधार कार्ड को "12वें दस्तावेज़" के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई। यह दावा करते हुए कि बिहार में "लाखों रोहिंग्या और बांग्लादेशी" हैं, उपाध्याय ने तर्क दिया कि आधार कार्ड के इस्तेमाल की अनुमति देना "विनाशकारी" होगा। उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति केवल 182 दिनों तक भारत में रहकर आधार कार्ड प्राप्त कर सकता है और यह न तो नागरिकता का प्रमाण है और न ही निवास का।
हालांकि, जस्टिस कांत ने जवाब दिया कि किसी भी दस्तावेज़ में जालसाज़ी की जा सकती है।
जस्टिस कांत ने कहा,
"ड्राइविंग लाइसेंस, आधार, कई दस्तावेज़ों में जालसाज़ी की जा सकती है...आधार का उपयोग कानून द्वारा अनुमत सीमा तक ही किया जाना चाहिए।"
हालांकि, खंडपीठ ने उपाध्याय की अर्जी पर नोटिस जारी किया।
Case Title: ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA, W.P.(C) No. 640/2025 (and connected cases)

