बिहार SIR | "कोई संदेह नहीं, ECI अपनी जिम्मेदारी निभाएगा": सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 4 नवंबर तक स्थगित की

Praveen Mishra

16 Oct 2025 3:07 PM IST

  • बिहार SIR | कोई संदेह नहीं, ECI अपनी जिम्मेदारी निभाएगा: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 4 नवंबर तक स्थगित की

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (16 अक्टूबर) को बिहार के मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 4 नवंबर तक स्थगित कर दी।

    बिहार विधानसभा चुनाव 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होने वाले हैं।

    आज की सुनवाई के दौरान, एडीआर (Association for Democratic Reforms) की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची की खंडपीठ से आग्रह किया कि निर्वाचन आयोग को यह निर्देश दिया जाए कि वह मतदाता सूची में जो नाम जोड़े या हटाए गए हैं, उनकी अंतिम सूची सार्वजनिक करे।

    खंडपीठ ने निर्वाचन आयोग की ओर से यह कहे जाने पर कि सूची प्रकाशित करने की प्रक्रिया चल रही है, कहा कि अदालत देखेगी कि आयोग क्या प्रकाशित करता है।

    जस्टिस सूर्य कांत ने कहा —

    “हमें कोई संदेह नहीं कि वे अपना दायित्व निभाएँगे… वे सूची प्रकाशित करने के लिए बाध्य हैं… हम अभी मामला बंद नहीं कर रहे हैं।”

    सुनवाई की शुरुआत में प्रशांत भूषण ने कहा कि निर्वाचन आयोग को अंतिम मतदाता सूची में जोड़े और हटाए गए नामों के साथ कारण भी बताने चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    “निर्वाचन आयोग ने ड्राफ्ट सूची से हटाए गए नामों की पूरी जानकारी नहीं दी है… 17 और 20 अक्टूबर को वे अंतिम सूची को 'फ्रीज़' करेंगे… लेकिन उन्होंने अभी तक अपनी वेबसाइट पर पूरी अंतिम सूची अपलोड नहीं की है, जो तुरंत किया जाना चाहिए।”

    निर्वाचन आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग अंतिम सूची प्रकाशित करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने बताया कि पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर है, इसलिए उस तारीख तक सूची को स्थिर किया जाएगा, और दूसरे चरण के लिए 20 अक्टूबर तक समय है। उन्होंने कहा कि जब आयोग खुद सूची प्रकाशित कर रहा है, तो आदेश की माँग का कोई औचित्य नहीं।

    इस पर जस्टिस कांत ने कहा,

    “देखते हैं वे क्या प्रकाशित करते हैं। अगर अंतिम सूची में जोड़े और हटाए गए नाम स्पष्ट दिखते हैं, तो यह अच्छी बात होगी… जहाँ कुछ त्रुटियाँ होंगी, आयोग को उन्हें सुधारना चाहिए और जिम्मेदारी के साथ कार्य करना चाहिए।”

    द्विवेदी ने यह भी बताया कि अभी तक मतदाता सूची से हटाए गए नामों के खिलाफ कोई अपील दाखिल नहीं की गई है, जबकि अदालत ने पिछले सप्ताह अपने आदेश में ऐसे मतदाताओं को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

    सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन और एडवोकेट वृंदा ग्रोवर, अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होकर, अदालत से यह भी अनुरोध किया कि संविधानिक प्रश्न — कि क्या चुनाव आयोग को SIR (Special Intensive Revision) करने का अधिकार है — पर सुनवाई की जाए।

    इस पर अदालत ने निर्वाचन आयोग को इस मुद्दे पर अपनी लिखित टिप्पणियाँ दाखिल करने को कहा।

    खंडपीठ ने यह भी दर्ज किया कि निर्वाचन आयोग ने आज एक हलफ़नामा दाखिल किया है, जिसमें एडीआर और योगेन्द्र यादव द्वारा पहले दिए गए तर्कों का खंडन किया गया है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को इस पर जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।

    पिछली सुनवाई का विवरण

    पिछली सुनवाई (9 अक्टूबर) में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अंतिम मतदाता सूची से बाहर किए गए व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाए ताकि वे अपने बहिष्कार के खिलाफ अपील दायर कर सकें।

    साथ ही, कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने अदालत से यह निर्देश देने की माँग की थी कि निर्वाचन आयोग बताए कि इस प्रक्रिया में कितने लोगों को “विदेशी” पाया गया। उन्होंने मतदाता सूची में भारी अनियमितताओं का आरोप लगाया था और कहा था कि इस SIR प्रक्रिया के चलते देश के इतिहास में “सबसे बड़ा मतदाता सूची संकुचन” हुआ है।

    इस मामले से जुड़ी अब तक की प्रमुख घटनाएँ

    • 10 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को आदेश दिया कि आधार कार्ड, राशन कार्ड और EPIC (मतदाता पहचान पत्र) को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए स्वीकार किया जाए।

    • 28 जुलाई: अदालत ने आयोग को बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित करने से नहीं रोका, लेकिन मौखिक रूप से कहा कि आधार और EPIC पर विचार किया जाए।

    • 1 अगस्त: बताया गया कि लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटाए गए हैं। अदालत ने कहा कि अगर बड़े पैमाने पर बहिष्कार हुआ तो वह दखल देगी।

    • 6 अगस्त: एडीआर ने आवेदन दायर कर कहा कि आयोग ने 65 लाख हटाए गए मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक नहीं किया।

    • 12 अगस्त: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि बिहार का SIR अवैध है और नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी मतदाताओं पर नहीं डाली जा सकती।

    • 13 अगस्त: अदालत ने पूछा कि क्या जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत आयोग को इस तरह का विशेष पुनरीक्षण करने का अधिकार नहीं है?

    • 14 अगस्त: अदालत ने आदेश दिया कि आयोग 65 लाख बहिष्कृत मतदाताओं के नाम और कारण बिहार मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर प्रकाशित करे।

    • 22 अगस्त: अदालत ने निर्देश दिया कि बहिष्कृत मतदाता आधार कार्ड के साथ ऑनलाइन आवेदन देकर अपने नाम फिर से शामिल करा सकते हैं।

    • 1 सितंबर: अदालत ने कहा कि दावे/आपत्तियाँ नामांकन की अंतिम तिथि तक दी जा सकती हैं, इसलिए समय सीमा नहीं बढ़ाई गई।

    • 8 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के तौर पर 12वाँ दस्तावेज़ माना जाएगा, लेकिन यह नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा।

    • 7 अक्टूबर: अदालत ने यह टिप्पणी की कि यह स्पष्ट नहीं है कि अंतिम सूची में जोड़े गए मतदाता पहले हटाई गई सूची से हैं या नए हैं। याचिकाकर्ताओं ने आयोग से माँग की थी कि वह 3.66 लाख हटाए गए और 21 लाख जोड़े गए मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करे।

    अब इस मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को होगी।

    Next Story