Bhima Koregaon Case : सुप्रीम कोर्ट ने वापस ली गई हनी बाबू की SLP को फिर से शुरू करने की अनुमति दी
Shahadat
16 July 2025 8:52 AM

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू को कथित माओवादी संबंधों को लेकर UAPA के तहत भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद षड्यंत्र मामले में ज़मानत के लिए निचली अदालत या हाईकोर्ट जाने की छूट दी।
अदालत ने यह भी कहा कि बाबू सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी पूर्व विशेष अनुमति याचिका, जिसे वापस ले लिया गया था, उसको फिर से शुरू करने की मांग कर सकते हैं।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को यह छूट दी और उनके द्वारा दायर विविध आवेदन खारिज कर दिया। इस आवेदन में यह स्पष्टीकरण मांगा गया था कि उनके द्वारा पहले दायर विशेष अनुमति याचिका को वापस लेने से हाईकोर्ट को उनकी ज़मानत मामले की सुनवाई करने से नहीं रोका गया था।
सितंबर, 2022 में हाईकोर्ट ने बाबू को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था, जिन्हें जुलाई 2020 में भीमा कोरेगांव मामले में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर UAPA के तहत NIA द्वारा गिरफ्तार किया गया था। मई, 2024 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका यह कहते हुए वापस ले ली कि वे परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देते हुए ज़मानत के लिए हाईकोर्ट जाना चाहते हैं।
2 मई को हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका वापस लेने की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उन्हें हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता नहीं दी गई। इसलिए हाईकोर्ट ने कहा कि बाबू को सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगना आवश्यक है।
मामले की जब सुनवाई हुई तो हनी बाबू की ओर से पेश एडवोकेट पयोशी रॉय ने दलील दी कि उन्होंने पांच साल विचाराधीन कैदी के रूप में बिताए और उन्होंने हाईकोर्ट जाने के लिए विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली, क्योंकि आठ अन्य आरोपियों को लंबी कैद आदि के आधार पर ज़मानत दी गई। उन्होंने आगे कहा कि इन आरोपियों की तुलना में याचिकाकर्ता की स्थिति बेहतर है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अब तक रोना विल्सन और एक्टिविस्ट सुधीर धावले, सुधा भारद्वाज को ज़मानत दी है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पी वरवर राव को मेडिकल आधार पर, शोमा सेन, वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को गुण-दोष के आधार पर ज़मानत दी है।
हालांकि, NIA के वकील ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि अंतरिम जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि नई ज़मानत याचिका NIA अदालत में लंबित है। चूंकि इसमें UAPA के आरोप शामिल हैं, इसलिए हाईकोर्ट अपीलीय न्यायालय है।
उन्होंने कहा:
"यह अंतरिम ज़मानत याचिका के रूप में प्रस्तुत की गई।"
उल्लेखनीय है कि निचली अदालत ने ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था, जहां भी याचिकाकर्ता को ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन बाद में विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली।
जस्टिस मित्तल ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता निचली अदालत का रुख करें:
"आपका मुख्य आधार यह है कि किसी अन्य अभियुक्त को ज़मानत दी गई, इस पर भी निचली अदालत विचार कर सकती है।"
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रॉय ने कहा कि निचली अदालत इस आधार पर विचार नहीं कर सकती, क्योंकि हाईकोर्ट ने के.ए. नजीब जैसे मामलों के फ़ैसलों के आधार पर ज़मानत दी, जो संवैधानिक अदालतों को UAPA की धारा 43डी(5) के प्रतिबंध के बावजूद ज़मानत देने का अधिकार देता है, अगर त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो।
उन्होंने कहा:
"धारा 43डी(5) अदालत पर ज़मानत देने पर कुछ प्रतिबंध लगाती है। हालांकि, नजीब और अन्य निर्णयों में इस अदालत ने कहा कि UAPA के प्रतिबंधों के बावजूद, विलंबित सुनवाई और अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के आधार पर संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाली अदालतें ज़मानत दे सकती हैं और 43डी(5) की अनदेखी कर सकती हैं।"
जस्टिस मितत्तल ने कहा कि वास्तव में संवैधानिक अदालतें ज़मानत दे सकती हैं, लेकिन उन्होंने आगे कहा:
"लेकिन क्या हम हाईकोर्ट को ऐसे मामले पर विचार करने का निर्देश दे सकते हैं, जो उसके समक्ष आता ही नहीं है?"
उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत आधार अन्य सह-अभियुक्तों के साथ समानता की मांग करना है, न कि विलंबित सुनवाई का आधार।
आगे कोई सुनवाई नहीं करते हुए अदालत ने आदेश पारित किया:
"विविध आवेदन खारिज किया जाता है, जिससे निचली अदालत या हाईकोर्ट में उपचार की मांग करने या विशेष अनुमति याचिका को पुनर्जीवित करने का विकल्प खुला रहता है।"
Case Title: HANY BABU v. NATIONAL INVESTIGATION AGENCY AND ANR|MA 1208/2025 in SLP(Crl) No. 1596/2024