युवा अधिवक्ताओं के खिलाफ बिना नोटिस, प्रेस विज्ञप्त‌ि जारी किए जाने पर बीसीआई की तीखी आलोचना

LiveLaw News Network

22 May 2020 4:27 AM GMT

  • युवा अधिवक्ताओं के खिलाफ बिना नोटिस, प्रेस विज्ञप्त‌ि जारी किए जाने पर बीसीआई की तीखी आलोचना

    बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बुधवार को नियमों का उल्लंघन कर वकीलों के विज्ञापन देने के मामले में एक वेबसाइट के खिलाफ प्रेस विज्ञप्ति जारी की है।

    विवाद का विषय एक वेबसाइट "https://topldomofsupremecourtofindia.com" है, जो पांच साल पुराना एक पोर्टल है, जिसने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न वकीलों को "प्रथम श्रेणी के वरिष्ठ अधिवक्ता", "द्वितीय श्रेणी के वरिष्ठ अधिवक्ता" और "तीसरी सूची" (अच्छा जूनियर अधिवक्ता) के रूप में वर्गीकृत किया है। बीसीआई की प्रेस विज्ञप्ति के बाद से वेबसाइट को हटा दिया गया है।

    किसी भी सबूत या सामग्री की चर्चा किए बिना, बीसीआई ने दो अधिवक्ताओं राहुल त्रिवेदी और सुहासिनी सेन - की पहचान की है, जिन्हें वेबसाइट के निर्माण और प्रचार का जिम्‍मेवार माना जा रहा है। प्रेस विज्ञप्ति में इस बात की चर्चा नहीं है कि बीसीआई ने कैसे इन दो नामों की ‌शिनाख्त की है।

    बीसीआई ने कहा कि उक्त अध‌िवक्ता अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होंगे। प्रेस रिलीज में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि वेबसाइट "अवैध तरीके से विज्ञापन देने के काम" में लिप्त है।

    जब लाइव लॉ ने सुहासिनी सेन से बात की तो उन्होंने बीसीआई प्रेस रिलीज के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि उनका वेबसाइट से कोई संबंध नहीं था।

    "इस वेबसाइट को बनाने में मेरा कोई भूमिका नहीं है और न इससे कोई लेना-देना है। मुझे इस वेबसाइट के सबंध में न तो सूचित किया गया था और न इसे बनाने में मेरी सहमति ली गई थी। मैं कभी भी ऐसा कुछ नहीं करूंगी।

    उन्होंने कहा, "वेबसाइट पर मेरे बारे में दी गई जानकारी और वहां लगी तस्वीर सार्वजनिक रूप से उपलब्‍ध है, जो 2012 में मुझे मिली एक छात्रवृत्ति से संबंध‌ित है। मुझे अभी तक बीसीआई का कारण बताओ नोटिस नहीं मिला है, लेकिन मैं मिलते ही जवाब दूंगी।"

    सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने वेबसाइट पर सूचीबद्ध कई अन्य नामों में से मात्र सेन का नाम चुनने के लिए, बीसीआई की आलोचना करते हुए कहा, "यह स्पष्ट नहीं है कि बार काउंसिल ने कैसे निष्कर्ष निकाला कि सुश्री सुहासिनी सेन का वेबसाइट से कोई लेना-देना है, और वेबसाइट पर उल्लिखित 24 नामों में से उन्हीं का नाम क्यों चुना गया।"

    शंकरनारायणन ने औपचारिक कारण बताओ नोटिस दिए बिना और उच‌ित जांच किए बिना करने से एक जूनियर वकील के खिलाफ सार्वजनिक रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के बीसीआई के कृत्य की आलोचना की।

    उन्होने कहा, "सरसरी तौर पर देखने से पता चलता है कि वेबसाइट एक विशेष मोबाइल नंबर और पते पर पंजीकृत किया गया है, जो किसी भी तरह से सुहासिनी से जुड़ी हुई नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि बार काउंसिल ने एक प्रेरित शिकायत के आधार पर बिना किसी सबूत या प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों पर काम किया है और प्रेस विज्ञप्ति में डालने जैसा असामान्य कदम उठाया है, जिससे सार्वजनिक रूप से उन्हें बदनाम किया गया है। सामान्य प्रक्रिया यह होती कि एक निजी कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता और और प्रतिक्रिया मांगी जाती।"

    लाइव लॉ ने राहुल त्रिवेदी से बात करने की कोशिश की, हालांकि वह उपलब्ध नहीं थे।

    इन आरोपों के सामने आने के बाद, बीसीआई के अधिकार क्षेत्र को लेकर सवाल उठना शुरु हो गया है। सवाल उठ रहा है कि क्या बीसीआई के पास ऐसी कार्यवाही शुरू करने का अध‌िकार है। एडवोकेट्स अधिनियम 1961, जिसके तहत बीसीआई को स्थापित किया गया है, के तहत कदाचार के कृत्यों की जांच का मूल अधिकार राज्य बार काउंसिल के पास है।

    एडवोकेट मिहिरा सूद ने लाइव लॉ को बताया कि बीसीआई की कार्रवाई उसके अधिकार क्षेत्र के के बाहर का कृत्य प्रतीत होती है। उन्होंने कहा- "अधिवक्ता अधिनियम के सेक्‍शन 6 और 7 में स्पष्ट हैं कि किसी भी अधिवक्ता के कथित कदाचार के मामलों की संबंधित स्टेट बार काउंसिल जांच और सुनवाई करेगा। बीसीआई का अधिकार क्षेत्र केवल तभी होता है, जब स्टेट बार काउंसिल, या अन्य जब किसी मामले को उन्हें सौंप देता है या ऐसी असाधारण परिस्थितियां हों जैसे कि अधिवक्ता अब किसी भी राज्य बार के रोल पर न हो। प्रेस विज्ञप्ति में यह स्पष्ट है कि इस मामले को बिना किसी रेफरल या असाधारण परिस्थिति के उठाया गया है, इसलिए, यह प्रथम दृष्टया बिना अधिकार के उठाया गया मामला है।"

    उन्होंने कहा कि बीसीआई की कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।

    "एक प्रेस विज्ञप्ति में अनुशासनात्मक कार्रवाई के मामले पर चर्चा करना बेहद अनुचित है। इस तरह के मामले में बिना किसी सबूत के और बचाव का कोई अवसर दिए बिना, वकीलों का नाम लेना, उचित प्रक्रिया नहीं है, और यह बेहद निंदनीय है।"

    बीसीआई ने प्रेस विज्ञप्ति में इस तथ्य पर गंभीर आपत्ति दर्ज की है कि वेबसाइट पर सूचीबद्ध श्रेणियों से सैकड़ों अधिवक्ताओं के नाम छोड़ दिए गए हैं, जो शानदार वकालत कर रहे हैं।

    बीसीआई ने कहा, "इन दो अधिवक्ताओं के भयावह खेल ने उनके आचरण पर गंभीर संदेह पैदा किया है, जब उन्होंने केवल पांच अधिवक्ताओं को" गुड जूनियर एडवोकेट्स" की श्रेणी में रखा है, और उनकी तथाकथित श्रेणी 2 में केवल 10 वरिष्ठ अधिवक्ताओ को शामिल किया गया है। यह सब जानबूझकर किया गया है और प्रथम दृष्‍टया बीसीआई के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।"

    वेबसाइट पर श्री फली एस नरीमन, श्री केके वेणुगोपाल, श्री सोली सोराबजी, श्री के परासरन, श्री हरीश एन साल्वे, श्री तुलसी, मुकुल रोहतगी, श्री सुंदरम, श्री गोपाल सुब्रमणियम आदि प्रतिष्ठित वकीलों का नाम प्रकाशित किया गया है।

    बीसीआई ने अपने अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के जजों को लिखने के लिए अधिकृत करते हुए कहा कि यह ऐसी कई वेबसाइटों में से एक है, जो न्यायपालिका और न्यायाधीशों की छवि धूमिल कर रही हैं।

    बीसीआई की प्रेस विज्ञप्ति पढ़ने के लिए क्लिक करें

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