बार वैकेंसी से जिला जज नियुक्ति में न्यायिक अधिकारी की पात्रता पर सुप्रीम कोर्ट आज करेगा सुनवाई
Praveen Mishra
12 Sept 2025 10:06 AM IST

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज इस अहम मुद्दे पर सुनवाई करेगी कि क्या कोई न्यायिक अधिकारी, जिसने बार में पहले ही 7 साल पूरे कर लिए हों, 'बार वैकेंसी' के तहत जिला जज पद पर नियुक्त होने का हकदार है या नहीं।
चीफ़ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ (CJI बी.आर. गवई), जस्टिस एम.एम. सुन्दरश, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस एस.सी. शर्मा और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की 5-जजों की खंडपीठ इस मामले पर विचार करेगी।
यह खंडपीठ उस आदेश के बाद बनी है जिसमें सीजेआई गवई, जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की 3-जजों की खंडपीठ ने 12 अगस्त को मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा था।
खंडपीठ यह भी तय करेगी कि जिला जज के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता आवेदन करने के समय देखी जानी चाहिए या नियुक्ति के समय या फिर दोनों समय। यह सवाल संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति, जो पहले से केंद्र या राज्य सेवा में नहीं है, जिला जज तभी बन सकता है जब उसके पास कम से कम 7 साल का अधिवक्ता या वकील के रूप में अनुभव हो।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला केरल हाईकोर्ट के उस फैसले से जुड़ा है, जिसमें एक जिला जज की नियुक्ति रद्द कर दी गई थी। कारण यह था कि नियुक्ति आदेश जारी होने के समय वह अधिवक्ता नहीं थे, बल्कि न्यायिक सेवा में 'मुंसिफ' के पद पर कार्यरत थे।
अपीलकर्ता रेजनीश के.वी. ने जिला जज पद के लिए आवेदन करते समय बार में 7 साल का अनुभव रखा था। हालांकि, चयन प्रक्रिया के दौरान ही उन्हें मुंसिफ-मैजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त कर दिया गया। बाद में जब उन्हें जिला जज के पद पर नियुक्ति मिली तो उन्होंने 21 अगस्त 2019 को अधीनस्थ न्यायपालिका से इस्तीफा दिया और 24 अगस्त 2019 को जिला जज, तिरुवनंतपुरम के रूप में कार्यभार संभाला।
उनकी नियुक्ति को के. दीपा नामक उम्मीदवार ने चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्ति के समय वे अधिवक्ता नहीं बल्कि न्यायिक सेवा में थे, इसलिए पात्र नहीं थे। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 'धीरेज मोर बनाम दिल्ली हाईकोर्ट' फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि जिला जज पद पर सीधे भर्ती के लिए आवेदन करने वाला अधिवक्ता नियुक्ति की तारीख तक वकालत करता रहना चाहिए।
हालांकि, डिवीजन बेंच ने यह भी माना कि देशभर में कई राज्यों के नियमों के आधार पर नियुक्तियां की गई होंगी, जो धीरेज मोर के फैसले से भिन्न हो सकती हैं। इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति दी और कहा कि यह कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न है।

