आसाराम बापू केस: क्या हाईकोर्ट किताब में दर्ज बयानों के आधार पर अतिरिक्त गवाह को तलब कर सकता है हाईकोर्ट? सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

Avanish Pathak

10 Feb 2023 8:59 PM IST

  • आसाराम बापू केस: क्या हाईकोर्ट किताब में दर्ज बयानों के आधार पर अतिरिक्त गवाह को तलब कर सकता है हाईकोर्ट? सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आईपीएस ऑफिसर अजय पाल लांबा को सम्मन देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राजस्‍थान सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया। उन्हें आसाराम को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के मामले में आसाराम की ओर से की गई अपील में कोर्ट विटनेस के रूप में बयान दर्ज कराने के लिए सम्मन भेजा गया है।

    अपनी सजा के खिलाफ आसाराम की अपील हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है जिसमें उन्होंने तर्क दिया है कि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला झूठा और मनगढ़ंत है। लांबा को तलब करने के लिए एक आवेदन दायर किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि अपराध के दृश्य के कुछ वीडियो के आधार पर पीड़ित को सिखाया गया था, जिसे उन्होंने शूट किया था। आवेदन में संकेत दिया गया है कि लांबा द्वारा सह-लेखक, गनिंग फॉर द गॉडमैन, द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू कन्विक्शन नामक पुस्तक में उल्लिखित एकाउंट द्वारा दावे की पुष्टि की जा सकती है। अर्जी पर दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इसे अनुमति दे दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की की खंडपीठ के समक्ष राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मनीष सिंघवी ने तर्क दिया कि किताब के अंदर का खंडन स्पष्ट रूप से बताता है कि यह एक नाटकीय संस्करण है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट के समक्ष दायर आवेदन विशुद्ध रूप से अर्ध-काल्पनिक आधार है।

    आसाराम की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने कहा कि 19-20 अगस्त, 2013 को एफआईआर में दिए गए बयानों और 21 अगस्त, 2013 को जोधपुर में दर्ज पुलिस बयान के बीच विरोधाभास थे। उन्होंने आरोप लगाया कि पीड़िता को तत्कालीन डीसीपी (पश्चिम), जोधपुर लांबा ने रिकॉर्ड किए गए कमरे का एक वीडियो दिखाया था, और तदनुसार उसने अपराध स्थल के स्पष्ट विवरण के साथ अपना बयान दिया।

    उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निचली अदालत ने आसाराम की इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वीडियो वास्तव में पीड़िता को दिखाया गया था, यह साबित करने के लिए सबूतों की कमी थी।

    उन्होंने जाहिरा हबीबुल्लाह शेख बनाम गुजरात राज्य (2004) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि धारा 391 के तहत केवल यह दिखाना आवश्यक है कि साक्ष्य प्रासंगिक है।

    उन्होंने यह भी कहा कि यह दिखाने की जिम्मेदारी राज्य की है कि अतिरिक्त सबूत अप्रासंगिक हैं।

    [केस टाइटल: राजस्थान राज्य बनाम आशाराम @ आशुमल एसएलपी (सीआरएल) नंबर 2044/2022]

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