'जब तक आप सीधे हैं, अपनी परछाईं के टेढ़े होने की परवाह न करेंः जब बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने पूर्व सीजेआई पर लगे अवमानना के आरोपों की सुनवाई से कर दिया था इनकार

LiveLaw News Network

21 Aug 2020 6:04 AM GMT

  • जब तक आप सीधे हैं, अपनी परछाईं के टेढ़े होने की परवाह न करेंः जब बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने पूर्व सीजेआई पर लगे अवमानना के आरोपों की सुनवाई से कर दिया था इनकार

    सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट प्रशांत भूषण के दो ट्वीटों को न्यायपाालिका की गरिमा के खिलाफ और अवमाननाकारी करार दिया है, जिसके बाद 1990 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश का याद करना महत्वपूर्ण हो गया है। हाईकोर्ट ने तब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ईएस वेंकटरमैया के खिलाफ अवमानना की ​​कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

    वेंकटरमैया 19 जून 1989 से 17 दिसंबर 1989 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे ‌थे। अपनी सेवानिवृत्ति की पूर्व संध्या पर, उन्होंने प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैय्यर को एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका के बारे में कई विस्फोटक टिप्पणियां थीं। भूषण के ट्वीट से तुलना करें तो, वो अधिक कठोर दिखाई देती हैं।

    जस्टिस वेंकटरमैया ने कहा था कि भारत में न्यायपालिका ने अपने स्तर को गिरा दिया है क्योंकि केवल ऐसे जज नियुक्त किए जा रहे हैं, जो "शानदार पार्टियों और व्हिस्की की बोतलों से प्रभावित" होने के लिए तैयार हैं।

    उन्होंने कहा था, "प्रत्येक हाईकोर्ट में, कम से कम 4 से 5 ऐसे जज हैं, जो हर शाम को एक वकील के घर या विदेशी दूतावास में या शराब पीते हैं या भोजन करते हैं।" उन्होंने अनुमान लगाया था कि ऐसे जजों की संख्या 90 है।

    उन्होंने यह भी कहा कि जजों के करीबी रिश्तेदार एक ही अदालत में प्रैक्टिस कर रहे हैं, जिसके कारण उनकी वकालत फलफूल रही है। सीजेआई की ओर से की गई इन ‌टिप्‍पण‌ियों ने, जिन्होंने अभी सेवानिवृत्त‌ि ली ही थी, हंगामा खड़ा कर दिया।

    महाराष्ट्र बार काउंसिल के अध्यक्ष रह चुके एक वकील, जिनका नाम ‌विश्वनाथ था, ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक शिकायत दायर कर न्यायमूर्ति वेंकटरमैया के खिलाफ अवमानना ​​कार्रवाई करने की मांग की।

    महाधिवक्ता की मंजूरी के बिना दायर की गई शिकायत में कहा गया कि यह कहकर की जजों की नियुक्तियां चमकदार पार्टियों और महंगी शराब की बोतलों से प्रभावित होती हैं, और 90 जजों का नाम न लेने के कारण, पूर्व सीजेआई ने जजों की निष्ठा पर सवाल उठाया है।

    2 मार्च, 1990 को जस्टिस बी वहाणे और एम काज़ी की खंडपीठ ने एडवोकेट जनरल की मंजूरी न होने और मेर‌िट के आधार पर शिकायत को खारिज कर दिया।

    पीठ ने कुलदीप नैयर की रिपोर्ट से निम्नलिखित भाग को विशेष रूप से संदर्भित किया:

    "दुखी और निराश चीफ जस्टिस वेंकटरमैया ने कहा कि उन्होंने लॉ कम‌िशन की रिपोर्ट को जजों के संज्ञान में लाने की व्यर्थ कोशिश की थी, जिसमें यह साबित करने के लिए उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे जज अपनी पोजिशन से समझौता करते हैं और सरकारी आवासों और अन्य स्‍थानों पर दिखना पसंद करते हैं।"

    इससे, पीठ ने अनुमान लगाया कि "पूरा साक्षात्कार न्यायपालिका में सुधार के विचार के साथ दिया गया है"। न्यायालय ने कहा कि पत्रकार इस तथ्य को ध्यान देने में विफल नहीं रहे हैं कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में आहत महसूस किया है।

    न्यायालय शिकायतकर्ता की इस दलील से सहमत नहीं था कि पूर्व सीजेआई द्वारा नामों को निर्दिष्ट करने से परहेज करने के बाद न्यायाधीशों का पूरा वर्ग संदिग्ध हो गया।

    कोर्ट ने कहा, "इस बात की सराहना करना संभव नहीं है कि प्रत्येक न्यायाधीश कैसे महज इसलिए संदिग्ध हो जाएगा क्योंकि नामों का खुलासा नहीं किया गया है। कथन से स्पष्ट है कि यह केवल ऐसे न्यायाधीशों को संदर्भित करता है जो व्यावहारिक रूप से हर शाम को एक वकील के आवास पर या विदेशी दूतावास शराब पीने और खान खाने में शामिल रहते हैं ,या जिनके बेटे, दामाद और भाई उनके पद का दुरुपयोग करके धन कमा रहे हैं।"

    अदालत ने, विशेष रूप से, चीनी कहावत का हवाला दिया "जब तक आप सीधे हैं, तब तक परवाह न करें कि आपकी परछाईं टेढ़ीं है।"

    जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर के खिलाफ दायर याचिका दायर

    इसी प्रकार, केरल हाईकोर्ट ने आलोचनात्मक टिप्पणियों के कारण जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर के खिलाफ दायर अवमानना ​​याचिका को खारिज कर दिया था। उल्‍लेखनीय है कि 1982 में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की याचिका केरल हाईकोर्ट में दायर की गई थी।

    शिकायतकर्ता विंसेंट पानिकुलंगरा, जो कि एक वकील था, ने आरोप लगाया कि जस्टिस कृष्ण अय्यर ने "न्यायिक सुधारों" पर आयोजित एक संगोष्ठी में अपनी टिप्पणियों से "अदालत को अपमानित किया था"।

    उन्होंने कहा था, "एक अंदरूनी सूत्र के रूप में, ऐसी कई चीजें मुझे पता हैं, जिन्हें मुझे सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए।", "हमारा पूरा न्यायिक दृ‌ष्ट‌िकोण सभ्य नहीं है।" "न्यायपालिका आज गैर-प्रतिष्ठित है।"

    हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना था कि टिप्पणियां "सुविचारित आलोचना" के दायरे में आती हैं।

    "न्यायिक प्रणाली की कमजोरियों की ओर इशारा करके और बदलाव की आवश्यकता के लिए चेताते हुए, अन्यथा, लोग इस प्रणाली को अस्वीकार कर देंगे, न्यायमूर्ति अय्यर ने समस्या की गंभीरता पर ध्यान देने के लिए चेतावनी दी थी।

    अदालत ने जस्टिस अय्यर को नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए कहा था, "उनकी टिप्पणियां, एक ऐसे व्यक्ति की नहीं हैं, जो विक्षिप्त है या जो इस देश की न्यायिक प्रणाली को खत्म करना चाहता है, बल्‍कि एक ऐसे व्यक्ति कि हैं जो न्यायपालिका की समस्याओं के बारे में दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव के लिए लोगों को प्रेरित कर रहा है।"

    बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पढ़ने के लिए क्लिक करें

    (सौजन्य: पूर्व सीजेआई वेंकटरमैया के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट की कार्यवाही के बारे में जानकारी देने के लिए केरल हाईकोर्ट के एडवोकेट अश्कर खादेर का धन्यवाद।)

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