यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों के पीड़ित बच्चों के लिए मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति के मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से मांगा हलफनामा
LiveLaw News Network
7 Feb 2020 6:59 PM IST

Calcutta High Court
यौन शोषण और अन्य बाल आपराधों के नाबालिग पीड़ितों के लिए मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति का मुद्दा उठाते हुए, कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य के मुख्य सचिव को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें विभिन्न चिकित्सा संस्थानों और महिला और बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग और राज्य के विभिन्न जिलों में उपलब्ध प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की संख्या का खुलासा करने के लिए कहा गया है।
जस्टिस जोयमाल्या बागची और जस्टिस सुव्रा घोष की पीठ ने एक नाबालिग लड़की के यौन शोषण के आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जब उसने राज्य में यौन शोषण व अन्य बाल अपराधों के नाबालिग पीड़ितों की सुरक्षा के लिए 'प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की पुरानी कमी' पर गौर किया।
POCSO अधिनियम की धारा 39 राज्य सरकार को "गैर-सरकारी संगठनों, पेशेवरों और मनोविज्ञान, सामाजिक कार्य, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और बाल विकास का ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञों या व्यक्तियों को प्री-टायल और ट्रायल के चरण में बच्चे की सहायता के लिए उपयोग करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए बाध्य करती है।"
उक्त प्रावधान के धीमी गति से हो रहे क्रियान्वयन पर आपत्ति जताते हुए, बेंच ने कहा-
"प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की अनुपलब्धता के कारण, जैसा कि वर्तमान मामले में है, POCSO अधिनियम के तहत परिकल्पित तात्कालिक और/या सुधारात्मक उपायों और गवाहों की सुरक्षा की योजनाएं जमीनी हकीकत में भ्रामक बनी हुई हैं और अस्तित्वहीन हैं।"
बेंच ने राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें अधिनियम की धारा 39 के तहत दिशानिर्देश तैयार करने के मामले में उठाए गए कदमों का जिक्र हो, विशेष रूप से जांच और परीक्षण के दौरान नाबालिग पीड़ितों के मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए पर्याप्त संख्या में मनोवैज्ञानिकों की उपलब्धता के संबंध में।
वर्तमान मामले में, पीठ ने महिला और बाल विकास और समाज कल्याण विभाग के सचिवों पश्चिम बंगाल सरकार के साथ-साथ सदस्य सचिव, राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को पीड़ितों के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श और अंतरिम मुआवजे के अनुदान के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए कहा।
अदालत ने कहा कि अदालतें यह देखने के लिए बाध्य हैं कि कानून में दिए गए "लाभदायक प्रावधान" मृतप्राय न हो जाएं।
बच्चे पर यौन उत्पीड़न और मुकदमे के पड़ने वाले प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभावों के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में सभी राज्यों को POCSO मामलों के ट्रायल के लिए विशेष न्यायालयों में विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था।
इसने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी को मास्टर ट्रेनरों की एक टीम तैयार करने के लिए कहा था,जो विभिन्न राज्यों की यात्रा करके, न केवल कानून में बल्कि बाल मनोविज्ञान, बाल व्यवहार, स्वास्थ्य मुद्दों आदि में विशेष लोक अभियोजकों के रूप में नियुक्त व्यक्तियों को प्रशिक्षण प्रदान कर सके।
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