हाईकोर्ट केवल 4 परिस्थितियों में ही सीधे अग्रिम जमानत याचिकाएँ सुनें: सुप्रीम कोर्ट में Amici Curiae की रिपोर्ट
Praveen Mishra
15 Oct 2025 3:36 PM IST

हालांकि कानून के तहत अभियोजन से पहले जमानत (anticipatory bail) के लिए आवेदन करने में सेशंस कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों को समवर्ती अधिकार (concurrent jurisdiction) प्राप्त हैं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त Amici Curiae का मानना है कि आम तौर पर सबसे पहले सेशंस कोर्ट से संपर्क करना चाहिए।
सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लुथरा और एडवोकेट जी. अरुध्रा राव, जिन्हें कोर्ट ने इस मुद्दे पर Amici Curiae के रूप में नियुक्त किया, ने सुझाव दिया कि हाई कोर्ट से सीधे anticipatory bail केवल विशेष परिस्थितियों में ही मांगी जा सकती है। उनका कहना है कि जबकि धारा 438 CrPC (अब BNSS के तहत धारा 482) के तहत हाई कोर्ट और सेशंस कोर्ट दोनों को आवेदन स्वीकार करने का अधिकार है, सेशंस कोर्ट को प्राथमिक मंच (primary forum) माना जाना चाहिए।
Amici Curiae के अनुसार, केवल निम्नलिखित परिस्थितियों में आरोपी को सीधे हाई कोर्ट जाने की अनुमति दी जानी चाहिए:
a) जब आरोपी सामान्यतः उस सेशंस कोर्ट के क्षेत्राधिकार में निवास नहीं करता और/या गिरफ्तारी का खतरा है;
b) जब सेशंस कोर्ट के क्षेत्र में ऐसे हालात हों कि वहां प्रभावी राहत प्राप्त करना संभव न हो, जैसे स्थानीय कानून-व्यवस्था की समस्या, हड़ताल, व्यक्ति के प्रति शत्रुता, गंभीर शारीरिक क्षति का खतरा आदि;
c) जब सेशंस कोर्ट जाने में चिकित्सीय या अन्य आपातकालीन कारण हों;
d) जब पहली प्राथमिकता वाली अदालत एक विशेष/निर्दिष्ट सेशंस जज की अदालत हो, जो किसी विशेष/स्थानीय कानून से संबंधित मामलों से निपटती हो।
यह रिपोर्ट मोहमद रसल सी बनाम केरल राज्य मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसमें कोर्ट ने पहले हाईकोर्ट द्वारा सीधे anticipatory bail स्वीकार करने की प्रथा की आलोचना की थी, विशेषकर केरल हाई कोर्ट की। 8 सितंबर के आदेश में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आदर्श रूप में सेशंस कोर्ट से ही पहले संपर्क करना चाहिए। कोर्ट ने इस मामले में केरल हाई कोर्ट को नोटिस जारी किया और Amici Curiae नियुक्त किए।
रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के विचारों को भी प्रतिबिंबित किया गया। इसमें केरल हाई कोर्ट के 11 सितंबर के फैसले की आलोचना की गई, जिसमें हाई कोर्ट ने पुनः कहा कि वह सीधे anticipatory bail सुन सकता है।
Amici Curiae ने कहा:
"वर्तमान में केरल में जो दिशा-निर्देश हैं, वे सेशंस कोर्ट को anticipatory bail देने से रोकने का जोखिम पैदा करते हैं। जबकि कानून के अनुसार सेशंस कोर्ट को समवर्ती अधिकार प्राप्त हैं।"
रिपोर्ट ने यह भी बताया कि भारत की विविध भूगोल और न्यायिक संरचना ऐसी है कि उपलब्धता बढ़ाने वाले उपाय लागू होने चाहिए, न कि केवल हाई कोर्ट में राहत केंद्रीकृत हो।
Amici Curiae ने चेतावनी दी कि सुप्रीम कोर्ट को समवर्ती अधिकार को न्यायिक रूप से सीमित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना "न्यायिक कानून निर्माण" माना जाएगा, जैसा कि P. Ramachandra Rao बनाम Karnataka (2002) 4 SCC 578 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने अस्वीकार किया था।
हालांकि, उन्होंने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट मार्गदर्शन जारी कर सकता है कि अभियुक्त पहले सेशंस कोर्ट से आवेदन करें, जिससे उनकी सुविधा बनी रहे, और हाई कोर्ट को केवल विशेष परिस्थितियों में सीधे सुनवाई करने का अधिकार रहे।
रिपोर्ट में कहा गया:
"हमारा प्रस्ताव यह है कि सेशंस कोर्ट को प्राथमिकता दी जाए, जबकि हाई कोर्ट को समवर्ती अधिकार बनाए रखने का अवसर मिले। यह 'Access to Justice' सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।"
Amici Curiae ने यह भी बताया कि सेशंस कोर्ट से आवेदन करने के कई लाभ हैं:
• भौगोलिक रूप से अधिक सुलभ और कम खर्चीला।
• हाई कोर्ट को सेशंस कोर्ट के निष्कर्षों का लाभ मिलता है।
• नागरिकों को दो अवसर मिलते हैं — एक सेशंस कोर्ट में, दूसरा हाई कोर्ट में।
रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि हाई कोर्ट को सामान्यतः लिटिगेंट्स को पहले सेशंस कोर्ट जाने की सलाह देनी चाहिए, लेकिन सीमित परिस्थितियों में सीधे सुनवाई की सुविधा बनी रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने Amici Curiae की रिपोर्ट रिकॉर्ड में ली और मामले की सुनवाई 12 नवंबर के लिए स्थगित की।

