प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद अब मामले के मूल याचिकाकर्ताओं ने अदालत की सहायता करने के लिए हस्तक्षेप आवेदन दिया

LiveLaw News Network

5 Jun 2020 5:00 AM GMT

  • प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद अब मामले के  मूल याचिकाकर्ताओं ने अदालत की सहायता करने के लिए हस्तक्षेप आवेदन दिया

    पिछले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने COVIDलॉकडाउन के बाद देश भर में फंसे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर स्वत संज्ञान लिया था,जिसके बाद एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज और हर्ष मंदर के अलावा, आईआईएम-अहमदाबाद के पूर्व डीन जगदीप एस. छोकर ने इस मामले में न्यायालय की सहायता करने की अनुमति मांगी है।

    इस मामले में हस्तक्षेप करने के आवेदन दायर करते हुए मांग की गई है कि ''आवेदक उनके द्वारा दायर पूर्व में दायर की जनहित याचिकाओं को रिकॉर्ड पर रखकर इस मामले में अदालत की सहायता करना चाहते हैं।''

    यह जनहित याचिकाएं ''देश में हुए व्यापक लाॅकडाउन के बाद प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के संबंध में दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था चूंकि लाॅकडाउन के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी और जिसने पूरे देश में दहशत पैदा कर दी थी। वहीं इसके कारण एकदम से लाखों प्रवासी श्रमिकों की नौकरियां और रोजगार का साधना चला गया था।''

    पहली याचिका भारद्वाज और मंडेर की ओर से दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह संयुक्त रूप से सभी प्रवासी श्रमिकों को मजदूरी/न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करें। भले ही यह मजदूर किसी भी संस्थान, ठेकेदार या स्वरोजगार से जुड़े हों। चूंकि लाॅकडाउन के कारण वह काम करने और पैसा कमाने में असमर्थ हैं।

    दूसरी याचिका छोकर ने दायर की थी। जिसमें मांग की गई थी कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी प्रवासी श्रमिक अपने गांवों व घरों में सुरक्षित पहुंच जाए। इसके उनसे परिवहन का किराया न लिया जाए और यात्रा के दौरान उनको पर्याप्त भोजन आदि उपलब्ध कराया जाए।

    यह भी बताया गया कि ''उपर्युक्त दोनों याचिकाओं का संक्षिप्त सुनवाई के बाद निस्तारण कर दिया गया था।''

    यह भी कहा गया कि

    ''चूंकि इस माननीय न्यायालय ने अब प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर स्वत संज्ञान लिया है। इसलिए आवेदक विनम्रतापूर्वक अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग करते हैं। वह उन विभिन्न मुद्दों के संबंध में अदालत की सहायता करना चाहते है,जिनका सामना लाॅकडाउन शुरू होने के बाद से यह प्रवासी श्रमिक कर रहे हैं। आवेदक जिम्मेदार और प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता व इस देश के शिक्षाविद हैं और लॉकडाउन के बाद से प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं।''

    21 अप्रैल को शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने इस मामले में दायर एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि इस समय देश खुद असामान्य स्थिति में है और इसमें शामिल हितधारक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं। इस जनहित याचिका में मांग की गई थी कि COVID19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिक गंभीर तनाव में है,इसलिए उनको मजदूरी का भुगतान किया जाए।

    अदालत ने रिट याचिका का निपटारा करते हुए संक्षेप में कहा था कि

    '' सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने एक स्थिति रिपोर्ट दायर की है और कहा है कि प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे यह भी तर्क दिया था कि जमीनी धरातल पर इन मुद्दों को निपटाने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर प्रदान किया गया है। वहीं जब भी कोई शिकायत प्राप्त होती है तो अधिकारी तुरंत उस मामले में सहायता करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारे सामने रखी गई सामग्री को ध्यान में रखते हुए हम प्रतिवादी-भारत सरकार को कह रहे हैं कि वह इस तरह के मामलों पर स्वयं विचार करें। वहीं याचिका में उठाए गए मुद्दों को निपटाने के लिए वह सभी कदम उठाए,जो उनको उपयुक्त लगते हैं।''

    दूसरी जनहित याचिका के संबंध में अदालत ने एसजी की दलीलों को तरजीह देते हुए कहा था कि, ''इस याचिका में जो राहत मांगी गई है उसके लिए पर्याप्त रूप से मंजूरी दे दी गई है क्योंकि सरकार ने 29 अप्रैल 2020 को उन श्रमिकों की आवाजाही के मामले को स्वीकार कर लिया था,जो प्रवासी श्रमिक ,तीर्थयात्री, पर्यटक और छात्र हैं और विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए थे और एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा पा रहे थे।''

    शीर्ष अदालत ने कहा था कि,"श्री तुषार मेहता ने यह भी कहा था कि रिट याचिका दायर करने से पहले ही उस पर चिंतन चल रहा था और सरकार इस पर विचार कर रही थी। एसजी ने यह भी बताया था कि बाद में 01 मई 2020 को एक आदेश जारी किया गया था जिसमें रेलवे ने प्रवासी श्रमिकों को उनके गांवों या राज्यों में पहुंचाने के लिए ''श्रमिक स्पेशल''ट्रेन चलाने का फैसला भी किया था। इसके बाद फंसे हुए व्यक्तियों की पूर्वोक्त श्रेणी की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार ने इन फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों की कठिनाई को कम करने के हर संभव कदम उठाए हैं।''

    कोर्ट ने पांच मई को याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि

    "इस तरह के परिवहन के लिए आवश्यक तौर-तरीके रेलवे के सहयोग से संबंधित राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लागू किए जाने हैं। जहां तक श्रमिकों से रेलवे टिकट की राशि का 15 प्रतिशत वसूलने की बात है तो उस संबंध में यह अदालत अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी आदेश जारी नहीं करेगी। यह संबंधित राज्य/रेलवे का काम है कि वह संबंधित दिशानिर्देशों के तहत आवश्यक कदम उठाए। इस रिट याचिका में मांगी गई राहत को पूरा कर दिया गया है। इसलिए हम मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के लिए वकील द्वारा उठाए जाने वाले अन्य मुद्दों पर विचार करके कोर्ट इस रिट याचिका के दायरे का विस्तार नहीं कर सकती हैं। ऐसे में अब इस याचिका को लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।''

    न्यायालय ने केंद्र व सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्वत संज्ञान मामले में नोटिस जारी करते हुए 26 मई को कहा था कि

    ''अखबारों की रिपोर्ट और मीडिया रिपोर्ट में लगातार यह बताया जा रहा है कि प्रवासी मजदूर लंबी-लंबी दूरी पैदल पूरी कर रहे हैं या साइकिल आदि से चलने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इन रिपोर्ट में इन मजदूरों की दुर्भाग्यपूर्ण और दयनीय स्थिति दिखाई जा रही है। इतना ही नहीं आज भी प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं जारी हैं क्योंकि बहुत सारे श्रमिक सड़क,रेलवे स्टेशन,हाईवे या राज्यों की सीमाओं पर फंसे हुए हैं। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार बिना कोई पैसा वसूले तुरंत इनके लिए पर्याप्त परिवहन,भोजन और आश्रय की व्यवस्था करें।''

    इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भी प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों पर केंद्र सरकार से कई सवाल किए।

    पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि

    ''सबसे पहले व्यक्ति की अपनी जेब में पैसा होना चाहिए। किसी भी प्रवासी से कोई किराया नहीं लिया जाना चाहिए। इस किराए को वहन करने के लिए राज्यों के बीच कुछ व्यवस्था होनी चाहिए।''

    पीठ ने पूछा,

    ''जिन लोगों को वापिस उनके घर भेजा जा रहा है क्या किसी भी स्तर पर उनसे परिवहन का किराया मांगा जा रहा है? एफसीआई के पास अतिरिक्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध है, ऐसे में क्या इन लोगों को उस समय भोजन की आपूर्ति की जा रही है,जब यह अपने घर जाने के लिए अपनी बारी आने की प्रतिक्षा करते हैंै?''

    पीठ ने यह भी पूछा कि

    ''प्रवासियों को उनके घर वापिस भेजने के लिए आपको कितने समय की जरूरत है? वही इन लोगों के लिए भोजन और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए क्या निगरानी तंत्र बनाया गया है?''

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