जस्टिस दत्ता की आपत्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को उचित सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के पास भेजा

Shahadat

20 Aug 2025 8:11 PM IST

  • जस्टिस दत्ता की आपत्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को उचित सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के पास भेजा

    जस्टिस दीपांकर दत्ता द्वारा पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को किसी अन्य बेंच को सौंपे जाने पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के प्रति अपनी निराशा व्यक्त करने के एक दिन बाद जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की दूसरी बेंच ने निर्देश दिया कि मामले को सूचीबद्ध करने के लिए उचित आदेश हेतु चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष रखा जाए।

    यह मुद्दा तब उठा जब जस्टिस दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने 18 अगस्त को पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 (मस्तारा खातून बनाम मदरसा शिक्षा निदेशालय) से संबंधित याचिका पर गौर किया।

    जस्टिस दत्ता को सूचित किया गया कि जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ द्वारा अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई की जा रही है, जिन पर स्थगन आदेश पारित किए गए हैं। उन्होंने पूछा कि रजिस्ट्री उनके अलावा किसी और खंडपीठ को कैसे नियुक्त कर सकती है, जबकि वह उसी खंडपीठ का हिस्सा रहे हैं, जिसने पहले भी इसी तरह के मामलों में कई आदेश पारित किए।

    उन्होंने टिप्पणी की,

    "ऐसा क्यों है कि बंगाल के एक जज को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?"

    अगले दिन जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। खंडपीठ ने जस्टिस दत्ता की बेंच द्वारा की गई निम्नलिखित टिप्पणियों पर विचार किया:

    "हालांकि, हम इस बात से पूरी तरह हैरान हैं कि इस न्यायालय की रजिस्ट्री संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए समान मुद्दों से जुड़ी याचिकाओं को सूचीबद्ध करते समय कैसे काम करती है। ऐसी रिट याचिकाओं को सूचीबद्ध करते समय रजिस्ट्री को या तो 'कोरम नियम' या 'रोस्टर नियम' का पालन करना चाहिए। कमोबेश समान मुद्दों को उठाने वाली रिट याचिकाओं को अलग-अलग खंडपीठों के समक्ष रखने से परस्पर विरोधी निर्णय दिए जाने का खतरा रहता है, जिसे बढ़ते बकाया और न्यायालय की समय सीमा को देखते हुए हर कीमत पर टाला जाना चाहिए।"

    इन टिप्पणियों के आलोक में जस्टिस मिश्रा की खंडपीठ ने आदेश दिया:

    "उपरोक्त टिप्पणी के आलोक में हम कार्यालय को इन याचिकाओं का रिकॉर्ड उचित आदेश हेतु सीजेआई के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देना उचित समझते हैं। इन मामलों को सीजेआई द्वारा पारित आदेशों के अनुसार सूचीबद्ध किया जा सकता है।"

    यह मामला पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 से संबंधित है, जिसके तहत मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आयोग का गठन किया गया। 2015 में कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 2008 अधिनियम की धारा 8, 10, 11 और 12 को इस आधार पर अधिकारहीन घोषित कर दिया कि एक सहायता प्राप्त मदरसे, जिसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त थी, उसमें शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया को आयोग अधिनियम की धारा 4 के तहत नियुक्त आयोग को सौंप दिया गया।

    2020 में सुप्रीम कोर्ट ने 2008 अधिनियम की संवैधानिकता को बरकरार रखा और कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए नियुक्ति का कोई पूर्ण और बिना शर्त अधिकार नहीं है। इसने माना कि आयोग द्वारा किए गए नामांकन वैध हैं और हाईकोर्ट द्वारा मामले के निपटारे के बाद की गई नियुक्तियां सभी उद्देश्यों के लिए वैध मानी गईं। इस आदेश के संबंध में अवमानना याचिका (स्नेहासिस गिरि बनाम सुभाषिस मित्रा) दायर की गई, जिसकी सुनवाई जस्टिस रवींद्र भट (रिटायर) और जस्टिस दत्ता की खंडपीठ ने की।

    अवमानना याचिका में कहा गया कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति हाईकोर्ट द्वारा अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद, लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले हुई, उनके वेतन की मांग उनके शिक्षण/गैर-शिक्षण कर्मचारी होने या कानून द्वारा अपेक्षित योग्यता रखने के दावों की वास्तविकता की पुष्टि करने पर जोर दिए बिना की जा रही है।

    2 फरवरी, 2023 के आदेश द्वारा जस्टिस भट और जस्टिस दत्ता की खंडपीठ ने माना कि न्यायालय ने नियुक्तियों को इस सीमा तक वैध घोषित किया कि वे संबंधित नियमों और बाध्यकारी मानदंडों के अनुरूप हैं। इसने कलकत्ता हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस देबी प्रसाद डे की अध्यक्षता में समिति गठित की, जो सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करेगी और याचिकाकर्ताओं के दावों का सत्यापन करेगी।

    हालांकि, इसी तरह की याचिकाओं पर जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ सुनवाई कर रही थी, जिसने 15 जुलाई को स्वीकार किया कि इस न्यायालय द्वारा एक समिति गठित की गई और जिसने ऐसी नियुक्तियों को अमान्य ठहराया था। नोटिस जारी करते हुए उक्त खंडपीठ ने अपने पूर्व अंतरिम आदेश को जारी रखा, जिसमें राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि शिक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे याचिकाकर्ताओं को उनका वेतन दिया जाए।

    Case Details: NAJMA KHATUN & ORS. v. THE STATE OF WEST BENGAL & ORS.|Writ Petition(s)(Civil) No(s). 566/2024

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