बार काउंसिल चुनावों के लिए नॉमिनेशन फीस बढ़ाकर 1.25 लाख रुपये करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
Shahadat
15 Oct 2025 5:49 PM IST

दो वकीलों ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें उन्होंने आगामी राज्य बार काउंसिल चुनावों में उम्मीदवारों के लिए "अत्यधिक और अत्यधिक" नॉमिनेशन फीस लगाने का फैसला किया।
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में BCI के 25 सितंबर, 2025 के परिपत्र (सं. बीसीआई:डी:6880/2025(काउंसिल-एसटीबीसी)) को चुनौती दी गई, जिसमें उम्मीदवारों के लिए गैर-वापसी योग्य नॉमिनेशन फीस 1,25,000 रुपये निर्धारित किया गया। याचिकाकर्ता, जो दिल्ली और उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल में नामांकित अधिवक्ता हैं, ने आरोप लगाया कि शुल्क वृद्धि मनमाना, भेदभावपूर्ण और संविधान की लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है।
एडवोकेट मनीष जैन और प्रदीप कुमार द्वारा दायर याचिका में कहा गया,
"चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए नॉमिनेशन फीस के नाम पर 1,25,000 रुपये की अत्यधिक राशि जमा करने की शर्त लागू करना एक ओर जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता के लिए खतरा पैदा करता है, वहीं दूसरी ओर यह नागरिकों के समानता और उचित अवसर के अधिकारों का हनन करता है। चुनाव में भाग लेने के लिए इतनी बड़ी राशि लागू करना न केवल मतदाताओं को समान अवसर से वंचित करता है, बल्कि मतदाताओं के विकल्पों को भी सीमित करता है। नागरिकों/मतदाताओं के विकल्पों में इस तरह की कटौती चुनावी प्रक्रिया में अन्याय के समान है।"
BCI ने रिट याचिका (सिविल) संख्या 1319/2023 में सुप्रीम कोर्ट के 24 सितंबर, 2025 के आदेश के अनुसरण में यह सर्कुलर जारी किया, जिसमें निर्देश दिया गया कि लंबे समय से लंबित राज्य बार काउंसिल के चुनाव 31 जनवरी, 2026 तक पूरे कर लिए जाएं। इसके बाद BCI ने सभी राज्य बार काउंसिलों को चुनाव समितियां गठित करने और चुनाव कराने का निर्देश दिया। साथ ही नॉमिनेशन फीस को नई राशि में संशोधित किया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि BCI द्वारा दिया गया तर्क नॉमिनेशन फीस कम करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के 2024 के फैसले के बाद धन की कथित कमी, उम्मीदवारों पर इतना भारी नॉमिनेशन फीस थोपने का वैध आधार नहीं हो सकता। याचिकाकर्ता इस दावे का भी खंडन करते हैं कि राज्य बार काउंसिलों के पास धन की कमी है। इस संबंध में यह कहा गया कि सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अकेले दिल्ली बार काउंसिल के पास लगभग 99 करोड़ रुपये हैं।
इस फैसले को "लोकतंत्र के विपरीत" बताते हुए याचिका में दावा किया गया कि अत्यधिक फीस केवल आर्थिक रूप से सक्षम लोगों तक ही भागीदारी सीमित कर देगा, जिससे एक निष्पक्ष और प्रतिनिधि चुनाव में "धन और बाहुबल के प्रयोग को बढ़ावा" मिलेगा। याचिका में तर्क दिया गया कि यह उपाय "सम्पन्न" और "वंचित" के बीच विभाजन पैदा करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत समानता और निष्पक्ष भागीदारी के अधिकार को कमजोर करता है।
वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से BCI के 25 सितंबर का सर्कुलर रद्द करने और चुनाव न्यायालय के पूर्व आदेश के अनुसार सख्ती से आयोजित करने का निर्देश देने का आग्रह किया।
याचिका में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव "लोकतंत्र की पहचान" हैं। तर्क दिया गया कि वर्तमान फीस स्ट्रक्चर बार काउंसिल की चुनावी प्रक्रिया की अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा है।

