अधिवक्ता, कानून के विपरीत व्यवस्था में प्रवेश करके पक्षकार के कानूनी अधिकारों को तोड़ नहीं सकता: सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना के मुआवजे के मामले में कहा

LiveLaw News Network

6 Jan 2021 9:37 AM GMT

  • अधिवक्ता, कानून के विपरीत व्यवस्था में प्रवेश करके पक्षकार के कानूनी अधिकारों को तोड़ नहीं सकता: सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना के मुआवजे के मामले में कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने एक दुर्घटना में मारे गए एक मृतक दंपति के वारिसों द्वारा दायर मोटर दुर्घटना मुआवजा दावा से उत्पन्न अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि अधिवक्ता, कानून के विपरीत व्यवस्था में प्रवेश करके पक्षकार के कानूनी अधिकारों को तोड़ नहीं सकता है।

    इस मामले में, मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण ने दावेदारों को यानी दोनों मृतकों के लिए कुल 40.71 लाख रुपये की राशि प्रदान की है। आंशिक रूप से बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील की अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने भविष्य की संभावनाओं को जोड़ दिया। इसके खिलाफ दावेदारों ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपील दायर की थी।

    बीमा कंपनी ने अपील का विरोध करते हुए दलील दी कि इस मामले में उच्च न्यायालय का निर्णय एक सहमति का आदेश था। और इसके साथ ही दावेदारों के वकील ने निर्भरता के नुकसान के नीचे कम संगणना को स्वीकार किया था, जिसे अपील करके चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

    इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले को इस प्रकार देखा था कि,

    "दावेदारों की ओर से प्रस्तुत वकील ने उपरोक्त प्रस्तुतियों को पर्याप्त रूप से स्वीकार किया है। वह इस बात से सहमत है कि निर्भरता के नुकसान की गणना न्यूनतम मजदूरी के आधार पर फिर से की जा सकती है क्योंकि हरियाणा राज्य श्रमिकों की दुर्घटना में हुई मौत की न्यूनतम आय कानून 12.04.2014 से लागू है। इसके न्यूनतम आय 54747.10 रुपये की दर में से लागू होगा। वह आगे कहती है कि पूनम की मृत्यु के मामले में निर्भरता की गणना में एक तिहाई की कमी की जा सकती है, क्योंकि व्यक्तिगत और रहन-सहन में कुछ रूपए खर्च हुए हैं और भविष्य में नियमित रोजगार का कोई साधान नहीं होने के कारण भविष्य में वृद्धि की किसी भी संभावना के लिए कोई अवसर नहीं है।"

    जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एस.अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि,

    "इस संबंध में बनाए गए कानून के आधार पर किसी भी पक्षकार को बाध्य नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह कानूनी रूप से तय है कि अधिवक्ता किसी पक्षकार के कानूनी अधिकारों को नहीं तोड़ सकता है।"

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने आगे कहा कि,

    दुर्घटना के समय दावों और कानूनी देनदारियों में ही अंतर हो जाता है। लेकिन, बदलाव के कारण लंबित कार्यवाही को आमतौर पर प्रभावित नहीं करना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह विवादित नहीं हो सकता है कि मृत्यु के समय, वास्तव में मृतक के चार आश्रित थे और तीन नहीं थे। मृतक पर आश्रित मां का होना, मृत्यु मोटर दुर्घटना मुआवजे में कमी का कारण नहीं होनी चाहिए। दुर्घटना के समय दावे और कानूनी दायित्व अपने आप में स्फूर्त हो जाते हैं। लेकिन, बदलाव के कारण लंबित कार्यवाही को प्रभावित नहीं करना चाहिए। कानूनी कार्यवाही की पेंडेंसी के दौरान जिस तरह अपीलार्थी दावेदार न्यूनतम मजदूरी के बाद होने वाली वृद्धि पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, ठीक उसी तरह उत्तरदाता बीमाकर्ता बाद की मृत्यु का लाभ नहीं ले सकता है।

    पीठ ने अपील की अनुमति देते हुए मुआवजे की राशि 33.20 लाख रुपये तक बढ़ा दिया है।

    केस: कीर्ति बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड [ सिविल अपील नंबर S.1920 ऑफ 2021]

    कोरम: जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस. अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्यकांत

    उद्धरण: LL 2021 SC 3

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