राज्य बार काउंसिल चुनावों की निगरानी के BCI के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Shahadat

16 Oct 2025 4:45 PM IST

  • राज्य बार काउंसिल चुनावों की निगरानी के BCI के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

    सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर कर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को विभिन्न राज्य बार काउंसिलों के चुनावों के संचालन में हस्तक्षेप करने या उन पर नियंत्रण करने से रोकने के निर्देश देने की मांग की गई।

    आवेदन में कहा गया,

    "बार काउंसिल ऑफ इंडिया का आचरण बार के भीतर प्रतिनिधि स्वशासन की जड़ पर प्रहार करता है। एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 3 और 8 के तहत परिकल्पित राज्य बार काउंसिलों के लोकतांत्रिक स्वरूप को कमजोर करता है। यदि BCI के निरंतर हस्तक्षेप पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो परिणामी देरी से बार के स्व-नियामक ढांचे में जनता का विश्वास कम हो जाएगा और आगामी चुनाव एक भ्रम मात्र बनकर अपूरणीय संस्थागत क्षति होगी।"

    एक रिट याचिका में दायर आवेदन में एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 8-ए के तहत विशेष समिति गठित करने और संबंधित एडवोकेट जनरल को चुनाव प्रक्रिया की देखरेख और उसे पूरा करने के लिए अधिकृत करने का निर्देश देने की भी मांग की गई।

    मूल रिट याचिका में नियम 32 को चुनौती दी गई, जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया सर्टिफिकेट एंड प्लेस ऑफ प्रैक्टिस (सत्यापन) नियम, 2015 में 2023 में जोड़ा गया। इसमें तर्क दिया गया कि यह नियम राज्य बार काउंसिल के निर्वाचित सदस्यों के कार्यकाल को एडवोकेट एक्ट, 1961 के तहत निर्धारित अवधि से आगे बढ़ाता है। याचिकाकर्ता एडवोकेट एम. वर्धन ने इस याचिका में वर्तमान आवेदन दायर किया।

    24 सितंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी राज्य बार काउंसिलों के चुनाव, यदि एक साथ नहीं तो चरणबद्ध तरीके से 31 जनवरी, 2026 तक पूरे किए जाएं।

    वर्तमान आवेदन में वर्धन ने BCI द्वारा 25 सितंबर, 2025 को जारी एक पत्र को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि वह राज्य बार काउंसिल चुनावों की निगरानी के लिए समितियों का गठन करेगी।

    याचिका में कहा गया,

    "हालांकि, BCI ने इस माननीय न्यायालय द्वारा 24.09.2025 के आदेश में जारी निर्देशों के बावजूद, इस माननीय कोर्ट द्वारा पारित आदेशों के आशय को पूरी तरह से पटरी से उतारने की कोशिश की है। इसके अलावा, BCI ने राज्य बार काउंसिलों को उपलब्ध शक्तियों को हड़पने की कोशिश की, जो वर्ष 2011 तक नियमों और विनियमों के अनुपालन में चुनाव कराती रही हैं।"

    आवेदन में कहा गया कि यह सूचना जारी करके BCI ने राज्य बार काउंसिल के चुनावों की निगरानी और संचालन के लिए समितियों या आयोगों के गठन की शक्ति अपने हाथ में ले ली, जिसमें मतदाता सूची तैयार करना और रिटर्निंग अधिकारियों व चुनाव पर्यवेक्षकों की नियुक्ति भी शामिल है। आवेदन में तर्क दिया गया कि ये कार्य एडवोकेट एक्ट, 1961 के तहत संबंधित राज्य बार काउंसिलों में विशेष रूप से निहित हैं।

    आगे कहा गया कि 2011 तक राज्य बार काउंसिल के चुनाव एडवोकेट और नियमों के तहत समयबद्ध और स्वायत्त तरीके से आयोजित किए जाते थे। आवेदन में तर्क दिया गया कि "फर्जी वकीलों" से संबंधित असत्यापित आरोपों के आधार पर BCI द्वारा बनाए गए 2015 के सत्यापन नियम और उन नियमों में 2023 के संशोधन ने इस प्रक्रिया को पटरी से उतार दिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल, 2023 को वकीलों के प्रमाणपत्रों और डिग्रियों के सत्यापन की निगरानी के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समिति के गठन को किसी भी राज्य बार काउंसिल के कार्यकाल को बढ़ाने के निर्देश के रूप में नहीं समझा जा सकता और अपूर्ण सत्यापन के बहाने चुनाव स्थगित नहीं किए जा सकते।

    आवेदन में दावा किया गया कि इसके बावजूद, BCI ने जून 2023 में नियम 32 में संशोधन करके यह अनिवार्य कर दिया कि राज्य बार काउंसिल की चुनाव प्रक्रिया सत्यापन पूरा होने के बाद ही शुरू होगी और मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल दो साल के लिए बढ़ा दिया गया।

    आवेदन के अनुसार, यह संशोधन उन मौजूदा पदाधिकारियों को लाभ पहुंचाता है, जो अपने वैधानिक कार्यकाल के बाद भी पद पर बने रहते हैं, जैसे कि BCI के उपाध्यक्ष एस. प्रभाकरन, जो तमिलनाडु और पुडुचेरी बार काउंसिल के लिए चुने गए।

    आवेदन में तर्क दिया गया कि BCI का आचरण सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना है और एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 3 और 8 के तहत परिकल्पित विधि के शासन और बार प्रशासन के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करता है।

    याचिका में आगे कहा गया,

    “यह स्पष्ट है कि BCI की कार्रवाइयाँ ऐसे उद्देश्यों से प्रेरित हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसलिए इस माननीय अदालत के लिए यह उचित और आवश्यक हो गया है कि वह उचित निर्देश जारी करे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस माननीय न्यायालय के आदेशों के निष्ठापूर्वक कार्यान्वयन में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप या विचलन की कोई गुंजाइश न रहे। BCI के पदाधिकारियों द्वारा बार-बार किए गए कृत्य, जो स्पष्ट न्यायिक निर्णयों के बावजूद इस माननीय न्यायालय के अधिकार का अतिक्रमण करने के आदी प्रतीत होते हैं, उसको हल्के में नहीं लिया जा सकता और इसमें कठोर सुधारात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।”

    आवेदन में रिट याचिका पर निर्णय होने तक राज्य बार काउंसिल के चुनावों में हस्तक्षेप करने या उन पर नियंत्रण करने से BCI को रोकने के लिए अंतरिम राहत की मांग की गई।

    इसमें चुनाव संपन्न होने और उसके बाद पदाधिकारियों के चुनाव होने तक BCI के प्रशासनिक कार्यों की देखरेख के लिए रिटायर सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन की भी मांग की गई।

    यह आवेदन एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड राजेश सिंह चौहान के माध्यम से दायर किया गया।

    Case Title – M. Vardhan Union of India & Ors.

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