वकील का यह आरोप कि एक और वकील ने जज के नाम पर पैसे लिए, बेबुनियाद; सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही की पुष्टि की

Avanish Pathak

23 March 2023 3:50 PM GMT

  • वकील का यह आरोप कि एक और वकील ने जज के नाम पर पैसे लिए, बेबुनियाद; सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही की पुष्टि की

    सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की अवमानना ​​के लिए दंडित एक एडवोकेट की ओर से दायर अपील पर नरमी बरतते हुए जुर्माने की राशि दो लाख से रुपये से घटाकर एक लाख कर दी।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी ने हालांकि आरोपों के एवज में सजा बरकरार रखी। एडवोकेट पर आरोप था कि उसने एक एडवोकेट के खिलाफ यह आरोप लगाया था कि वह हाईकोर्ट के एक जज के नाम पर पक्षकारों को ब्रीफ और पैसा देने के लिए कह रहा था।

    मामला

    अपीलकर्ता कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करता है। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ जब एफएमए नंबर 623/2022 पर सुनवाई कर रही थी, तो अपीलकर्ता ने विपरीत पक्ष के वकील के खिलाफ CAN N नंबर 3 ऑफ 2022 के रूप में एक आवेदन दायर किया।

    अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि दूसरा वकील पीठ के जजों में से एक के नाम पर पक्षकारों से ब्रीफ और पैसा देने के लिए कह रहा था। अपीलकर्ता ने कलकत्ता पुलिस आयुक्त के समक्ष इसी तरह की शिकायत की थी।

    हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपीलकर्ता के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही शुरू की। जब अवमानना ​​कार्यवाही में अपीलकर्ता के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित किए गए थे, तो उसे सुप्रीम कोर्ट समक्ष एसएलपी (सी) नंबर 18622/2022 दायर की।

    14.11.2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता की ओर से दिए गए आश्वासन और वचन के आधार पर एसएलपी का निस्तारण किया कि वह हाईकोर्ट के समक्ष बिना शर्त माफी मांगेगा और एफएमए नंबर 623/2022 में CAN नंबर 3/2022 को वापस ले लेगा।

    अपीलकर्ता ने आगे खंडपीठ की सहायता करने का वचन दिया, ताकि लंबित मामले को गुण-दोष के आधार पर तय किया जा सके, साथ ही यह भी वचन दिया कि वह ऐसा कोई आवेदन दायर नहीं करेगा या भविष्य में ऐसा कोई कृत्य नहीं करेगा, जिससे अवमानना कार्यवाही आकर्षित हो।

    बहरहाल, अपीलकर्ता ने दिए गए वचन का पालन नहीं किया और बार के सदस्यों के खिलाफ आरोपों को दोहराते हुए हाईकोर्ट के समक्ष सशर्त पत्र दाखिल करना जारी रखा। इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने 15 नवंबर, 2022 को अपीलकर्ता को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया।

    हाईकोर्ट ने कहा कि किसी कृत्य के लिए माफी और औचित्य दोनों नहीं हो सकते; अपीलकर्ता के आचरण ने न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप किया है और माननीय न्यायालय की गरिमा को कम किया है। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी ने कोई खेद व्यक्त नहीं किया है।

    हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को रजिस्ट्रार जनरल के पास दो लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, अपीलकर्ता अगर सम्मानपूर्वक व्यवहार करता है तो राशि तीन साल के बाद वापस कर दी जाएगी, अन्यथा, राशि जब्त कर ली जाएगी। यदि राशि जमा नहीं की जाती है तो पुलिस आयुक्त अपीलकर्ता को अपनी हिरासत में ले लेंगे।

    चूंकि अपीलकर्ता दो लाख रुपये रुपये जमा करने में विफल रहा, इसलिए पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। अपीलकर्ता ने 15.12.2022 के आदेश के ‌खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की।

    निष्कर्ष

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर अपीलकर्ता तीन दिनों के भीतर एक लाख रुपये जमा कर देता है तो उसे अंतरिम उपाय के रूप में न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया जाए।

    अपीलकर्ता ने राशि जमा की और इसलिए उसे रिहा कर दिया गया। जब मामले को अंतिम सुनवाई के लिए पेश किया गया तो सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने नरम रुख अपनाते हुए कहा,

    "चाहे जैसा भी हो, हम अभी भी इस आशा और विश्वास के साथ उदार दृष्टिकोण अपनाने के इच्छुक हैं कि अपीलकर्ता भविष्य में खुद को कानूनी बिरादरी के एक अनुशासित सदस्य के रूप में पेश करेगा और किसी को भी शर्मिंदा नहीं करेगा। हमें विश्वास है कि अपीलकर्ता 21.02.2023 को उसकी ओर से मांगी गई बिना शर्त माफी का पालन करेगा।

    खंडपीठ ने हाईकोर्ट के 15.12.2022 के आदेश में बदलाव किया और दो लाख रुपये की राशि को कम कर एक लाख रुपये कर दिया।

    कोर्ट ने कहा, हालांकि यदि अपीलकर्ता का आचरण उचित नहीं है, तो राशि जब्त कर ली जाएगी और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भुगतान किया जाएगा।

    केस टाइटल: गुंजन सिन्हा उर्फ कनिष्क सिन्हा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 230

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