एडवोकेट जनरल को सरकार का हिस्सा माना जाता है, एजी जो सोचते हैं वही सरकार सोचती है : सीजेआई बोबडे

LiveLaw News Network

8 April 2021 5:29 AM GMT

  • एडवोकेट जनरल को सरकार का हिस्सा माना जाता है, एजी जो सोचते हैं वही सरकार सोचती है : सीजेआई बोबडे

    भारत के मुख्य न्यायाधीश ने बुधवार को एक सुनवाई के दौरान कहा कि एडवोकेट जनरल को सरकार का हिस्सा माना जाता है, और एडवोकेट जनरल जो सोचते हैं वही सरकार सोचती है।

    रामचंद्रपुरा मठ में महाबलेश्वर मंदिर के प्रबंधन को सौंपने के सरकार के आदेश को रद्द करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी द्वारा की गई टिप्पणियों के जवाब में यह अवलोकन किया गया।

    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश डॉ सिंघवी ने एडवोकेट जनरल की राय के आधार पर तर्क दिया।

    इस पर सीजेआई ने जवाब दिया कि,

    "जब हम एक जांच पर विचार कर रहे हैं तो एक एडवोकेट जनरल की राय का क्या मूल्य है?"

    सिंघवी ने जवाब दिया,

    "वहां क्या है.. यह सबसे अच्छी जांच है।"

    सीजेआई ने कहा,

    "एडवोकेट जनरल एक राय देने के लिए बाध्य है जो उनकी सेवा है ... जो भी हो।"

    डॉ सिंघवी ने सीजेआई के बयान का जवाब देते हुए इसे 'एडवोकेट जनरल के कार्यालय को नीचा दिखाना' कहा।

    सीजेआई बोबड़े ने हालांकि स्पष्ट किया कि बहस का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि एक एडवोकेट जनरल को सरकार का हिस्सा माना जाता है।

    सीजेआई ने कहा,

    "कोई बहस का सवाल नहीं है। एडवोकेट जनरल को सरकार का हिस्सा माना जाता है, और ..... जनरल जो सोचते हैं वही सरकार की सोच है।"

    डॉ सिंघवी ने तब यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि एडवोकेट जनरल दो टोपी पहनते हैं, एक सरकार के अधिकारी के रूप में और दूसरा भारत के संविधान के तहत न्यायालय के अधिकारी के रूप में।

    सीजेआई ने इस विशेष मामले में एजी की राय का जिक्र करते हुए कहा,

    "इस समय वह किसकी पहने हुए थे ?"

    डॉ सिंघवी ने टिप्पणी की,

    "उन्होंने दोनों टोपियां पहन रखी थीं। हम सभी को इन संवैधानिक कर्तव्यों का भी निर्वहन करना होगा। हम कानून के विपरीत राय नहीं दे सकते।"

    सीजेआई ने कहा,

    "हम केवल एक क़ानून के तहत वैधानिक तरीके से जांच पर एडवोकेट जनरल की राय की पवित्रता को तौल रहे हैं।"

    सुनवाई के दौरान बाद में, वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने अदालत को सूचित किया कि तहसीलदार, नायब तहसीलदार, सहायक और उप आयुक्त और एडवोकेट जनरल आदि पर विचार किया गया था जब राज्य सरकार द्वारा मंदिर के संबंध में जांच का निर्णय लिया गया था।

    सीजेआई ने कहा,

    "हालांकि एडवोकेट जनरल एक उच्च अधिकारी हो सकता है, वह जांच का हिस्सा नहीं है।"

    सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील सिंघवी ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित किया गया आदेश पारित नहीं किया जा सकता था और न्यायिक रूप से अस्वीकार्य था। सिंघवी ने आगे कहा कि वह कानूनी रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं, कि लागू आदेश पारित नहीं किया जा सकता है और यह न्यायिक रूप से अस्वीकार्य है। इस अदालत के सबसे पवित्र सिद्धांतों में से एक यह है कि, पीआईएल व्यक्तिगत, राजनीतिक और निजी हित पर आधारित नहीं हो सकती है, और इस मामले को उन्होंने 'पैसा वसूल' केस भी कहा।

    सीजेआई ने कहा,

    "मेरे भाई ने भी एक 'दार्शनिक रुचि" को जोड़ा है।"

    सिंघवी ने आगे कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से कुछ दार्शनिक जनहित याचिका की अनुमति देने के लिए तैयार होंगे, क्योंकि उनके द्वारा प्रतिपादित दर्शन में वास्तविक जनहित हो सकता है। सीजेआई बोबडे ने एक उदाहरण साझा किया जब इसी तरह के एक मामले में, उन्होंने डॉ सुब्रमण्यम स्वामी से याचिका पर इनके हित के बारे में पूछा था और उन्होंने कहा था कि 'दार्शनिक हित' डॉ सिंघवी ने कहा, "डॉ स्वामी और मैं ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं हैं, लेकिन हम एक अच्छे रिश्ते को साझा करते हैं।"

    सीजेआई ने टिप्पणी की,

    "वास्तव में वह इसके लिए काफी अभ्यस्त हैं, क्योंकि अधिकांश लोग उनसे सहमत नहीं हैं।"

    पीठ ने गोकर्ण महाबलेश्वर मंदिर के प्रबंधन से संबंधित मामले में अंतरिम राहत पर आदेश सुरक्षित रख लिया है।

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