'पीड़ित किरायेदार' SARFAESI कार्यवाही के खिलाफ किराया अधिनियम के किसी भी संरक्षण का हकदार नहींः सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

18 Aug 2021 12:41 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ित किरायेदार सरफेसी (SARFAESI) कार्यवाही के खिलाफ किराया अधिनियम के किसी भी संरक्षण का हकदार नहीं है। एक किरायेदार, जिसकी मकान में रहने की अनुमेय अवधि समाप्त हो चुकी हो, लेकिन उसने मकान खाली नहीं किया है, उसे "पीड़ित किरायेदार" कहा जाता है।

    जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ कहा, एक पंजीकृत इंस्ट्रूमेंट की अनुपस्थिति में यदि किरायेदार केवल एक अपंजीकृत इंस्ट्रूमेंट या कब्जे के डिल‌िवरी के साथ एक मौखिक समझौते पर निर्भर करता है तो किरायेदार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के प्रावधानों के तहत निर्धारित अवधि से अधिक के लिए सुरक्षित संपत्ति के कब्जे का हकदार नहीं है।

    इस मामले में, अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि वह महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम 1999 के प्रावधानों के तहत एक संरक्षित किरायेदार है, और 12.06.2012 से मौखिक किरायेदारी के आधार पर उधारकर्ता के परिसर में रह रहा था। सिक्योरिटाइज़ेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act- SARFAESI Act, 2002) के तहत उधारकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई थी। अपीलकर्ता के हस्तक्षेप के आवेदन को मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके द्वारा कोई पंजीकृत किरायेदारी दर्ज नहीं की गई थी।

    अपील में अदालत ने कहा कि हर्षद गोवर्धन सोंडागर बनाम इंटरनेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड में यह माना गया था कि यदि किरायेदारी का दावा एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए है, तो किरायेदारी केवल एक पंजीकृत इंस्ट्रूमेंट द्वारा की जा सकती है। बजरंग श्यामसुंदर अग्रवाल बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा,

    "12. बजरंग श्यामसुंदर अग्रवाल बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और अन्य में इस न्यायालय की तीन जजों की खंडपीठ ने इस न्यायालय के लगभग सभी निर्णयों पर विचार करने के बाद, सुरक्षित संपत्ति के कब्जे में एक किरायेदार के अधिकार के संबंध में यह माना है कि यदि कानून के तहत एक वैध किरायेदारी बंधक के निर्माण से पहले भी अस्तित्व में है, तो ऐसे किरायेदार के कब्जे को संपत्ति पर कब्जा करके सुरक्षित लेनदार द्वारा परेशान नहीं किया जा सकता है। यदि कानून के तहत किरायेदारी एक बंधक के निर्माण के बाद अस्तित्व में आती है लेकिन सरफेसी अधिनियम की धारा 13(2) के तहत नोटिस जारी करने से पहले, उसे संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 65ए की शर्तों को पूरा करना होगा। यदि कोई किरायेदार दावा करता है कि वह एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए एक सुरक्षित संपत्ति पर कब्जा करने का हकदार है तो इसे एक पंजीकृत इंस्ट्रूमेंट के निष्पादन द्वारा समर्थित होना चाहिए। इस न्यायालय के उक्त निर्णय में, यह स्पष्ट किया गया था कि एक पंजीकृत इंस्ट्रूमेंट की अनुपस्थिति में, यदि किरायेदार केवल एक अपंजीकृत इंस्ट्रूमेंट या कब्जे की ड‌िलिवरी के साथ इंस्ट्रूमेंट या मौखिक समझौता पर निर्भर करता है तो किरायेदार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के प्रावधानों के तहत निर्धारित अवधि से अधिक के लिए सुरक्षित संपत्ति के कब्जे का हकदार नहीं है।"

    अदालत ने कहा कि यह भी माना गया था कि SARFAESI अधिनियम की धारा 13(2) के साथ पठित धारा 13(13) के संचालन के कारण किराया अधिनियम SARFAESI अधिनियम की तुलना में "पीड़ित किरायेदार" की सहायता के लिए नहीं आएगा। इस मामले में, अदालत ने देखा कि किरायेदार की प्रामाणिकता पर एक गंभीर संदेह है, क्योंकि किरायेदारी को स्थापित करने के लिए कोई अच्छा या पर्याप्त सबूत नहीं है।

    अदालत ने अपील को खारिज करते हुए कहा, "अपीलकर्ता ने 12.06.2012 से 17.12.2018 तक किरायेदारी का अनुरोध किया है। यह किसी भी पंजीकृत साधन द्वारा समर्थित नहीं है। इसके अलावा, अपीलकर्ता के अनुसार, वह "पीड़‌ित किरायेदार" है, इसलिए, वह किराया अधिनियम की किसी भी सुरक्षा का हकदार नहीं है। दूसरे, भले ही सरफेसी अधिनियम की धारा 13(13) के अनुसार किरायेदारी के नवीनीकरण का दावा किया गया हो, उधारकर्ता को सुरक्षित संपत्ति के हस्तांतरण के लिए सुरक्षित लेनदार की सहमति लेने की आवश्यकता होगी।"

    मामला: हेमराज रत्नाकर सालियान बनाम एचडीएफसी बैंक लिमिटेड [सीआरए 843-844 ऑफ 2021]

    सिटेशन: एलएल 2021 एससी 387

    कोरम: जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी

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