2020 में 65% मौत की सजा यौन हिंसा के मामलो में; एनएलयू-दिल्ली के प्रोजेक्ट 39 ए की मृत्यु दंड के आंकड़ों पर 5 वीं वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित

LiveLaw News Network

22 Jan 2021 8:18 AM GMT

  • 2020 में 65% मौत की सजा यौन हिंसा के मामलो में; एनएलयू-दिल्ली के प्रोजेक्ट 39 ए की मृत्यु दंड के आंकड़ों पर 5 वीं वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित

    नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली स्‍थ‌ित प्रोजेक्ट 39 ए ने भारत में मृत्युदंड के आंकड़ों का पांचवा संस्करण, जिसका ‌शीर्षक-डेथ पेनाल्‍टी इन इंडियाः एनुअल स्टेटिस्ट‌िक्स रिपोर्ट है, प्रकाशित किया है। रिपोर्ट में मृत्युदंड के मुद्दे पर विधायी घटनाक्रम का दस्तावेजीकरण करने के साथ-साथ भारत में मृत्युदंड के सभी मामलों पर वार्षिक अपडेट प्रदान किया गया है।

    31 दिसंबर 2020 तक, भारत में 404 कैदियों को मौत की सजा दी गई, उत्तर प्रदेश में ऐसे कैदियों की संख्या 59 थी।

    COVID-19 महामारी ने के कारण अदालतों के कामकाज में पड़ी बाधा का नतीजा यह रहा कि मौत की सजा के आंकड़े में भी गिरावट आई। ट्रायल अदालतों ने 2019 में 103 मामलों में मौत की सजा दी थी, जबकि बीते साल 77 मामलों में मौत की सजा दी गई।

    हालांकि, ट्रायल कोर्ट द्वारा यौन अपराध से जुड़े मामलों में मौत की सजा देने के अनुपात में वृद्ध‌ि हुई, 2019 में 53% मामलों में मौत की सजा दी गई, जबकि बीते साल 65% मामलो में मौत की सजा दी गई।

    मार्च 2020 में दिसंबर 2012 के दिल्‍ली सामूहिक बलात्कार और हत्या में मामले में मुकेश, विनय शर्मा, अक्षय कुमार ठाकुर और पवन गुप्ता को फांसी की सजा दी गई।

    डॉ अनूप सुरेन्द्रनाथ, कार्यकारी निदेशक, प्रोजेक्ट 39A ने बताया, "2016 के बाद से ट्रायल कोर्ट, उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में मौत की सजाओं पर नजर रखने से हमें मौत की सजा में प्रवर्तन और डिस्कोर्स में मामले में महत्वपूर्ण जानकार‌ियां प्राप्त हुई हैं। 2019 के हैदराबाद गैंगरेप मामले और दिल्ली गैंगरेप मामले में मौत की सजा देने की के हंगामे के 2020 के पहले 3 महीनों में मौत की सजा के मामले में बहुत अधिक पाए गए थे।......यौन अपराधों में मौत की सजा का अनुपात एक बार फिर कुल मामलों की तुलना में अधिक था।"



    क्रियाविधि

    इस डेटा को इकट्ठा करने के लिए, सत्र अदालतों द्वारा मौत की सजा के मामलों को ट्रैक करने के लिए ऑनलाइन अंग्रेजी और हिंदी समाचार पोर्टलों पर भरोसा किया गया है। इसके बाद इसे जिला अदालत और उच्च न्यायालय की वेबसाइटों की जानकारी का उपयोग करके सत्यापित किया गया। जब उच्च न्यायालय की वेबसाइट गैर-भरोसे की साबित हुईं तो सत्यापन के दूसरे स्तर पर गृह विभाग और उच्च न्यायालयों को आरटीआई भेजी गई। 2016 से प्रकाशित सभी पांच र‌िपोर्टों में इसी पद्धति को अपनाया गया है।

    सत्र न्यायालय

    COVID-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण मार्च 2020 से अदालतों का कामकाज बाधित रहा। 2020 में सत्र न्यायालयों ने 76 कैदियों से जुड़े मामलों में 77 मौत की सजा दी गई, जोकि 2019 की 103 सजाओं से काफी कम थी।

    फिर भी, लॉकडाउन से लागू होने से पहले साल के पहले तीन महीनों के में दी गईं 48 मौत की सजा, पिछले साल की सजाओं को 62% था, जो यह दर्शाता है कि कि यदि महामारी नहीं होती तो यह आंकड़ा संभवतः काफी अधिक हो।



    इस साल सत्र न्यायालयों द्वारा दी गई 76 मौतों में से 50 यौन हिंसा से जुड़े अपराधों के लिए थीं। हत्या के लिए 24 मौत की सजा और हत्या के साथ अपहरण के लिए दो मौत की सजा दी गईं।



    यौन अपराधों से जुड़े मामलों में मौत की सजा का अनुपात बढ़ा

    ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा में से 65% (77 मामलों में से 50) यौन हिंसा से जुड़े अपराधों के लिए थे। यह अनुपात 2019 के 53% समेत पांच वर्षों में सबसे अधिक है। 65% यौन अपराध से जुड़े मामलों में, 82% बच्चों से जुड़े मामलों में थे।



    उच्च न्यायालय

    देश भर के उच्च न्यायालयों ने 38 कैदियों के मामलों में 30 मौत की सजाएं दी। इनमें से तीन मामलों में मौत की सजा की पुष्टि की गई, जिसमें दो यौन अपराध और एक में हत्या का अपराध शामिल था। उच्च न्यायालयों ने 17 मामलों में मौत की सजा सुनाई। जिन पांच कैदियों को निचली अदालतों ने मौत की सजा सुनाई, वे उच्च न्यायालयों द्वारा सभी आरोपों से बरी हो गए थे। पांच मामलों में, उच्च न्यायालयों ने इस मामले को पुन: विचार के लिए ट्रायल अदालतों को वापस भेज दिया।



    उच्चतम न्यायालय

    सुप्रीम कोर्ट ने पांच मामलों में निर्णय दिए। दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में चार कैदियों की मौत का सजा का निष्पादन हुआ। एक मामले में दो कैदियों की मौत की सजा की पुष्टि की गई। कोर्ट ने तीन मामलों में चार कैदियों की मौत की सजा बदल दी। इनमें से दो मामलों में अपहरण और हत्या के अपराध शामिल थे और एक में बलात्कार और हत्या शामिल थी। तीन में से दो मामलों में, अदालत ने मौत की सजा के बदले 25 वर्ष के निश्चित कारावास की सजा सुनाई, और तीसरे में 14 साल तक बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा सुनाई।



    निष्पादन

    मुकेश, विनय शर्मा, अक्षय कुमार ठाकुर और पवन गुप्ता को मार्च 2020 में तिहाड़ जेल, नई दिल्ली में फांसी दी गई थी। इससे पहले जुलाई 2015 में याकूब मेमन की फांसी दी गई थी। इन चार कैदियों को सितंबर 2013 में विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। इनकी सजा की पुष्टि मार्च 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने की थी और बाद में मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने की थी। रिव्यू पिटीशन, क्यूरेटिव पिटीशन, दया याचिकाएं संबंधित कार्यवाही 2019 और 2020 की शुरुआत में तय की गई थी। 2020 में चार बार मौत का वारंट जारी किया गया, लेकिन दिल्ली की जिला न्यायपालिका ने मौत के वारंट को निष्पादित करने से पहले सभी कानूनी उपायों को समाप्त करने के दोषियों के अधिकार को बार-बार बरकरार रखा।

    विधायी विकास

    महाराष्ट्र विधानसभा ने शक्ति अधिनियम 2020 और महाराष्ट्र शक्ति आपराधिक कानून (महाराष्ट्र संशोधन) अधिनियम, 2020 के कार्यान्वयन के लिए विशेष न्यायालयों और मशीनरी पर विचार कर रही है, जिसमें आईपीसी और पोक्सो कानून के के प्रावधानों में संशोधन करके बलात्कार और एसिड हमले के लिए मौत की सजा को शामिल किया जाएगा। इसके अलावा, बिल में यौन हिंसा से संबंधित विभिन्न अपराधों के लिए सजा को बढ़ाने का विचार है और जांच प्रक्रिया को 15 दिनों तक सीमित करने और चार्जशीट दाखिल होने से 45 दिनों तक मामले का ट्रायन और निपटान करने का विचार है।

    आंध्र प्रदेश दिशा (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ विशेष अपराधों के लिए विशेष न्यायालय) विधेयक 2020, जो कि 2019 में पारित विधेयक का संशोधित संस्करण था, कथित तौर पर मृत्युदंड को हटा दिया गया है। वर्तमान में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है।

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