हत्या के मामले में पहली अपील इस प्रकार निस्तारित नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक अपील को चार पंक्तियों में खारिज करने पर कहा

LiveLaw News Network

14 Jan 2022 5:22 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 जनवरी) को कहा कि एक हत्या के मामले में सजा की पहली अपील को सामान्य शब्दों में और सिर्फ चार पंक्तियों में निष्कर्ष दर्ज करने के बाद खारिज नहीं किया जा सकता था। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को उचित विचार के लिए वापस भेज दिया।

    अभियोजन का मामला

    अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता के भाई की गर्दन और गाल पर कुल्हाड़ी से वार किया था, जिसकी मौत हो गई थी। एफआईआर में इसका मकसद पार्टियों के बीच उस समय कहासुनी को बताया गया, जब वे चार दिन पहले शराब के नशे में थे। एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर केस प्रॉपर्टी को कब्जे में ले लिया। अपीलकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया और उसने एक डिस्क्लोज़र स्टेटमेंट दिया, जिसकी सहायता से हथियार और कपड़े बरामद हुए, जो एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार खून से सने थे। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक मौत गर्दन पर चोट लगने के कारण रक्तस्रावी सदमे से हुई है।

    हाईकोर्ट का फैसला

    हाईकोर्ट ने निम्न व्यक्तियों के सं‌क्षिप्त गवाहियां दर्ज की- डॉक्टर, जिसने पोस्टमॉर्टम किया; सब-इंस्पेक्टर जिसने कांस्टेबल, ड्राफ्ट्समैन और फोटोग्राफर का बयान दर्ज किया; शिकायतकर्ता; मृतक के चाचा जो हत्या स्थल पर मौजूद थे; ड्राफ्ट्समैन, जिसने साइट योजना तैयार की; फोटोग्राफर; सब-इंस्पेक्टर, जिसने शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज कराई।

    कोर्ट ने एफएसएल रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया। इसके बाद, अभियोजन पक्ष के मामले को संक्षेप में बताते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने मामले को उचित संदेह से परे साबित कर दिया था और सबूतों के उचित मूल्यांकन पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया और उसे 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

    हाईकोर्ट ने कहा-

    "अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे अपीलकर्ता के खिलाफ अपना मामला साबित कर दिया है। विद्वान निचली अदालत द्वारा साक्ष्य का सही मूल्यांकन किया गया है। हमारे पास विद्वान निचली अदालत के तर्कसंगत फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।"

    अदालत ने जमानत और जमानती बांड को और रद्द कर दिया था और अपीलकर्ता को सजा के शेष भाग को भुगतने के लिए संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट यह देखकर परेशान था कि गवाहों की गवाही का संक्षेप में उल्लेख करने के बाद, हाईकोर्ट ने सबसे सामान्य शब्दों में निष्कर्ष को चार पंक्तियों में दर्ज किया था और निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता धारा 302 के तहत पारित दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की आयु 80 वर्ष से अधिक होने के कारण उसके पहले के आदेश द्वारा आत्मसमर्पण करने से छूट दी गई थी और हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही के दौरान उसे जमानत भी दे दी गई

    अदालत ने स्पष्ट किया कि अपीलकर्ता 22.04.2020 के आदेश के अनुसार जमानत पर रहेगा, लेकिन इस संशोधन के साथ कि उसे हर महीने के पहले सोमवार को दोपहर से पहले पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा।

    केस शीर्षक: मेहताब सिंह बनाम हरियाणा राज्य

    केस नंबर और तारीख: 2022 की आपराधिक अपील संख्या 41 | 6 जनवरी 2022

    कोरम: जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश

    अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह मलिक, अधिवक्ता श्री जितेश मलिक, सुश्री अनीशा दहिया और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड श्री सतीश कुमार

    प्रतिवादी के लिए वकील: एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, डॉ मोनिका गुसाईं


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