तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का आदेश असंवैधानिक और बेहद अनैतिक: दुष्यंत दवे

Avanish Pathak

10 Aug 2022 9:49 AM GMT

  • तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का आदेश असंवैधानिक और बेहद अनैतिक: दुष्यंत दवे

    सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने लाइव लॉ के साथ एक साक्षात्कार में गुजरात दंगों के मामले (जकिया जाफरी बनाम गुजरात राज्य) में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तीखी आलोचना की है। उल्लेखनीय है कि उक्त मामले में फैसले के बाद सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व एडीजीपी आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार कर ‌लिया गया था।

    गुजरात दंगों की साजिश में शामिल होने के आरोप के मामले में राज्य के आला आधिकारियों को एसआईटी की ओर से दी गई क्लीन चिट के खिलाफ जाकिया जाफरी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को मुद्दे को हमेशा गरम रखने और विशेष जांच दल की ईमानदारी पर सवाल उठाने का "दुस्साहस" करने का दोषी ठहराया था। कोर्ट ने कहा था, "प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए"।

    अगले ही दिन, गुजरात एटीएस ने 2002 के दंगों के संबंध में जाली दस्तावेजों का उपयोग करके झूठी कार्यवाही दर्ज कराने का आरोप लगाते हुए एक मामले में तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट (जो पहले से ही एक अन्य मामले में कारावास की सजा काट रहे हैं) को गिरफ्तार कर लिया।

    दवे ने तीस्ता और श्रीकुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वह इससे बहुत परेशान हैं।

    उन्होंने कहा, "मैं तीस्ता, श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ मुकदमा चलाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बहुत परेशान हूं। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत गलत संदेश भेजा है। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने से दूत को गोली मारने जैसा कार्य किया है, जो लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए अच्छी खबर नहीं है।"

    दवे ने लाइव लॉ के प्रबंध संपादक मनु सेबेस्टियन के साथ एक साक्षात्कार में उक्त बातें कहीं।

    उन्होंने कहा,

    "मामले की सच्चाई यह है कि दंगे हुए थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आरोपों को परे रखें, फिर भी दंगे हुए थे। तथ्य यह है कि 5 दिनों के लिए सेना को नहीं बुलाया गया था और इसके परिणामस्वरूप बड़ी हिंसा हुई और हजारों निर्दोष लोगों की जान चली गई।

    निस्संदेह, पुलिस गोधरा कांड को रोकने में विफल रही थी। पुलिस को सावधान रहना चाहिए था, वे जानते थे कि गोधरा एक संवेदनशील जगह है, और इस बात के पर्याप्त संकेत थे कि हिंसा होने की संभावना है। यदि गोधरा हिंसा को पुलिस द्वारा नहीं रोका गया तो जो पुलिस अधिकारी ऐसा करने में विफल रहे, उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जानी चाहिए थी, जो कभी नहीं की गई।

    उन्होंने कहा कि उसके बाद हिंसा हुई, और तथ्य यह है कि आला अधिकारियों के आदेश के तहत निर्दोष कारसेवकों, जिन्होंने अपनी जान गंवाई थी, के शवों को खुले रास्ते से कई शहरों में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया, जिसका नतीजा यह रहा कि हजारों लोग अंतिम संस्‍कार में शामिल हुए और उसके तुरंत बाद हिंसा भड़क उठी।

    यदि कोई समझदार सरकार रही होती तो उसने जिम्मेदारी के साथ यह सुनिश्चित किया होता कि अंतिम संस्कार यथासंभव शांति से हो और दुर्भाग्यपूर्ण कारसेवकों को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार सम्मानजनक अंतिम संस्कार किया जाए। लेकिन ऐसा करना तो दूर, उनके शवों की परेड कराने की अनुमति दी गई, और इससे राज्य भर के लोगों में गुस्सा पैदा हुआ।"

    सीनियर एडवोकेट ने आगे कहा कि 1984 के सिखों के खिलाफ दंगों के तुरंत बाद भी पीड़ितों को नागरिक समाज से बहुत कम सहायता मिली थी हालांकि श्री फूलका जैसे साहसी वकीलों ने उनके मामलों को उठाया। उसकी तुलना में, 2002 में, कार्यकर्ता सामने आए और वास्तव में दंगा पीड़ितों की मदद की।

    "शुरुआत में अद्भुत काम करने वाले सदस्यों में से एक श्री हरीश साल्वे थे। कई मामलों में, वह गुजरात दंगों से संबंधित मामलों में एक न्याय मित्र के रूप में न्यायालय की सहायता कर रहे थे। बंद किए गए कई दंगों के मामलों को फिर से खोल दिया गया था। तीस्ता सीतलवाड़ लंबे समय तक एसआईटी और श्री साल्वे के संपर्क में रहीं।

    उन्होंने समाज की उल्लेखनीय सेवा की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीतलवाड़ के खिलाफ मुकदमा चलाने का दिया गया आदेश न केवल असंवैधानिक है, बल्कि मैं कहूंगा कि अत्यधिक अनैतिक है।"

    दवे ने कहा,

    "और यह एक बहुत ही गलत संकेत भेजता है। ऐसा करना सु्प्रीम कोर्ट के कामकाज का हिस्सा नहीं है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट को उनके प्रयासों की प्रशंसा करनी चाहिए थी। यह ठीक है, अगर वह अदालत को मनाने में विफल रही....काफी हद तक, अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला कि उसके आरोप सही नहीं थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसे फांसी दी जानी चाहिए"।


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