जीवन का अधिकार सभी अधिकारों की जननी है : मलावी सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड को असंवैधानिक करार दिया

LiveLaw News Network

2 May 2021 3:47 PM IST

  • जीवन का अधिकार सभी अधिकारों की जननी है : मलावी सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड को असंवैधानिक करार दिया

    मलावी के 'सुप्रीम कोर्ट ऑफ अपील' ने मृत्युदंड को असंवैधानिक घोषित किया है।

    कोर्ट ने 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा, "जीवन के अधिकार का सार स्वयं जीवन ही है - जीवन की शुचिता। जीवन का अधिकार सभी अधिकारों की जननी है। जीवन के अधिकार के बिना अन्य अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं है। मृत्युदंड न केवल (जीवन के) इस अधिकार को बेअसर करता है, बल्कि समाप्त भी कर देता है।"

    कोर्ट ने यह टिप्पणी चार्ल्स खोविवा नामक एक अपीलकर्ता की अपील मंजूर करते हुए की, जिसे मौत की सजा सुनाई गयी थी। न्यायमूर्ति डी एफ मौंगुलु द्वारा लिखे गये बहुमत के फैसले में मलावी के संविधान के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि संविधान में मौत की सजा के प्रावधान नहीं हैं, इसके उलट यह जीवन के अधिकार का भी ह्रास करता है।

    फैसले में लिखा गया है,

    "जीवन के अधिकार का उल्लंघन संविधान द्वारा प्रत्यक्ष और स्पष्ट रूप से निषिद्ध है। आपराधिक मामलों में मौत की सजा के प्रावधान वाली धाराएं 25 और 26 तथा अन्य धाराओं का सार है कि वे जीवन के अधिकार - खुद जीवन, जीवन की सभी शुचिताओं का उल्लंघन हैं। मलावी के सभी कानूनों में सर्वोच्च कानून 'संविधान' की धारा 45 (एक) के तहत मौत की सजा अनुमति योग्य नहीं है, क्योंकि यह जीवन के अधिकार का हनन है। उत्सुकतावश, जब विधायकों ने 2011 में दंड संहिता की धारा 25 को संशोधित किया था तो इसने शारीरिक दंड को हटा दिया था, क्योंकि संविधान की धारा 19 (दो) (बी) में इसे निषिद्ध कर दिया गया था, लेकिन संविधान की धारा 45 (एक) और (दो) (बी) के तहत जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किये जाने के प्रावधान के बावजूद मौत की सजा को बरकरार रखा गया था। यह केवल इस अवधारणा पर आधारित हो सकता है कि संविधान की धारा 16 के प्रावधान मृत्युदंड को मंजूरी दे रहा था। वह निष्कर्ष कई कारणों से अपुष्ट हैं, उनमें से कुछ के बारे में पहले स्पष्ट किया जा चुका है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि दंड कानून की धारा 25 (ए) और धारा 26 जिसमें मौत की सजा को विभिन्न सजाओं में से एक बताया गया है तथा धारा 38 (i) (देशद्रोह के लिए), 63 (i) (समुद्री डकैती के लिए), 133 (बलात्कार के लिए), 210 (हत्या के लिए), 217(ii) (a) (नरसंहार के लिए) तथा 309 (i) और (ii) (क्रमश: सेंधमारी एवं चोरी के लिए) को अधिकतम जेल की सजा के लिए "उम्रकैद" के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "यदि आजीवन कारावास अधिकतम सजा बन जाता है, जहां यह अनिवार्य नहीं है, तो इसे कल्पना से नहीं लगाया जा सकता, या सुरक्षित नहीं किया जा सकता क्योंकि ये अपराधों की सबसे खराब घटना थीं। इसलिए न्यायालयों द्वारा जेल की निर्धारित अवधि की सजा सुनाये जाने की संभावना है। जिन्होंने उम्र कैद या लंबी सजा का बड़ा हिस्सा काट लिया है तो उनकी सजा छोटी होने या तत्काल रिहाई की संभावना है।"

    मलावी दक्षिण पूर्वी अफ्रीका का एक देश है, जिसे पहले न्यासालैंड के रूप में जाना जाता था।

    केस : चार्ल्स खोविवा बनाम द रिपब्लिक और एमएससीए

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